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सियासत

राहुल पप्पू मोदी जीनियस!

संजय झा-

एक इंसान जो देश और दुनिया के अनेकों मंचों पर अंग्रेज़ी और हिंदी में लगातार सवालों के सामने हो , पीठ न दिखा रहा हो उसे संसद में बोलने से रोकने के लिये पूरी सरकार लग जाय वह पप्पू है और दूसरा इंसान जिसका मीडिया पर पूरा कंट्रोल हो , सोशल मीडिया पर लाखों ट्रोल हों लेकिन नौ साल में एक बार भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने की हिम्मत न जुटा पाए, रेडियो और टीवी पर कोरियोग्राफ़ किया हुआ भाषण दे , मंचों से टेलीप्राम्पटर पर लिखा हुआ भी ग़लत सलत दोहराए वह जीनियस! कमाल है न!

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संजय कुमार सिंह-

राहुल गांधी का आरोप तो स्वयं सिद्ध है! अखबार नहीं बतायें तो कोई क्या करे? आरोप लोकतंत्र खत्म करने की कोशिशों का है और इंडियन एक्सप्रेस की ये दो खबरें इसकी जल्दबाजी बता रही हैं। राहुल गांधी ने विदेश में जो भी कहा (अव्वल तो अंग्रेजी में जो नहीं बोला उसपर बवाल है फिर भी), उस पर उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका तो मिलना ही चाहिए। बोलने ही नहीं दोगे तो कोई माफी कैसे मांगेगा? राहुल गांधी कल संसद में नहीं बोल पाए और बाद में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि सांसद होने के नाते मंत्रियों के आरोपों का जवाब वे संसद में देंगे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि, “सरकार डरती है, मुझे संसद में बोलने नहीं देगी”। शाह टाइम्स में आज यह खबर लीड है और इसका उपशीर्षक है, “सरकार के चार मंत्रियों ने जो आरोप लगाए उनका जवाब देना चाहता हूं”। मेरा मानना है कि भाजपा अपनी चालों में फंस गई है। माइक बंद करने का असर है। वह नहीं चाहती कि राहुल गांधी को बोलने का मौका मिले क्योंकि अब माइक बंद करने का रास्ता नहीं बचा है।

ऐसे में आरोपों का जवाब सुने बिना (देश तो सुन लेगा) उन्हें संसद से निलंबित करने के कदम का क्या मतलब लगाया जाए? पुलिस को उन्हें नोटिस भेजने की इतनी जल्दी क्यों हैं? जवाब चाहे जो हो, दिया जाए या नहीं, खबर से साफ है कि राहुल गांधी का आरोप (कम से कम उनके मामले में) स्वयंसिद्ध है। इंडियन एक्सप्रेस ने जो खबर छापी है और अभी तक जो खबरें छपती रही हैं उससे साफ है कि देश के कानून मंत्री संसद को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं। है कि नहीं इसपर अभी फैसला नहीं हुआ है और पहले के फैसले क्या हैं वह अलग मुद्दा है। लेकिन मौजूदा स्थितियों में इस खबर के अनुसार उन्होंने कह दिया तो इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है (सरकार की इच्छा यही है) और कानून मंत्री ने कह दिया है कि यह मामला अब सांसद के विशेषाधिकार से आगे का है।

इस तरह राहुल गांधी पर जो कहने का आरोप है उसका जवाब देने का मौका दिए बगैर कार्रवाई करना चाहते हैं और फैसला कर चुके हैं। अगर राहुल गांधी के मामले में यह स्थिति है, इतने चर्चित मामले में यह हाल है तो आम लोगों का हाल आप समझ सकते हैं और राहुल गांधी ने जो कहा है वह अपने लिए तो नहीं ही कहा है। आम नागरिकों के बारे में भी कहा है जिसे विदेश जाने से रोक दिया जाता है, पासपोर्ट बनने (नवीकरण) में देर की जाती है और जो भाग गए उनकी तो क्या बात करूं। कल मिलाकर, इस खबर से यही लगता है कि सरकार बहुत जल्दी में है और क्यों है यह समझना मुश्किल नहीं है। हालांकि मेरा मानना है कि 2024 जीतेगी तो और फंसेगी, और पोल खुलगी पर वह अलग मुद्दा है। दूसरे अखबारों ने इसे भले इतनी प्रमुखता से नहीं छापा है लेकिन राहुल गांधी वाली खबर के बिना इस एक खबर या तथ्य से राहुल के खिलाफ माहौल तो बनाया ही जा रहा है।

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इंडियन एक्सप्रेस में राहुल गांधी वाली खबर का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, राहुल का जवाब – मुझे बोलने दिया जाता है कि नहीं या चुप कर दिया जाता है, लोकतंत्र की परीक्षा है। इसी के साथ इंट्रो है, टीएमसी जेपीसी के पक्ष में नहीं है, कांग्रेस पर हमला। वैसे तो लोकतंत्र में यह आम है और अलग पार्टी की अलग राय हो सकती है। उसे मौके-बेमौके रखा जा सकता है। किसी भी दूसरी पार्टी को इस तरह लंगी भी मारी जा सकती है लेकिन मोदी सरकार जिस ढंग से काम कर रही है और पश्चिम बंगाल में एक मंत्री की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह ममता बनर्जी के सुर बदले हैं उससे यह सामान्य नहीं लगता है। और जो स्थितियों को समग्रता में देखते हैं वो समझ रहे हैं। भले आम वोटर न समझे और भाजपा को बहुमत मिल जाए तो उसे अपनी चाल सही लगे। इसलिए मेरा मानना है कि मुख्य काम अखबारों का है जो निष्पक्षता से पाठकों को सच बतायें तो जनता अपने नेताओं और पार्टी के बारे में भी अपने विवेक से फैसला लेगी। इसलिए, मीडिया को साथ लेकर सरकार जो कर रही है वह देश के साथ संविधान के साथ गद्दारी है। लोकतंत्र का विरोध तो है ही। खुल्लम खुल्ला है।

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