संजय कुमार सिंह-
उड़ीशा में हाल में हुई भयंकर रेल दुर्घटना के बाद तमाम मामलों पर भले सरकार चुप है और अपने मन की कर रही है पर टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर का खंडन रेलवे ने तुंरत कर दिया।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी एक खबर और फिर ट्वीट में कहा कि भारत की 98 प्रतिशत रेल लाइनें 1870 से 1930 के बीच बनीं थीं। 5 जून को शाम 4:10 पर किये गए इस ट्वीट को 629 बार रीट्वीट किए जाने तथा 2659 लाइक्स मिलने के बाद रेलवे के एक प्रवक्ता ने ट्वीट किया, हम टाइम्स ऑफ इंडिया की इस खबर को निराधार और तथ्यों से परे मानकर खारिज करते हैं।
प्रवक्ता के अनुसार 1950-51 में 59315 किलोमीटर रेल लाइन थी जो 2022-23 में 1,07832 किलोमीटर थी। निश्चित रूप में देश में पटरियों का काफी विकास हुआ है और रेलवे के आंकड़े पर यकीन नहीं करने का कोई कारण नहीं है। तब टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर वाकई निराधार लगती है।
ट्वीटर पर टाइम्स ऑफ इंडिया का पक्ष तो नहीं मिला लेकिन कुछ लोगों ने कहा है, हमें नहीं पता था कि रेलवे का कोई प्रवक्ता है। हम समझते थे सब प्रधानमंत्री देखते हैं। दूसरी ओर, सरकार के समर्थक ट्रोल तो हैं ही।
यह अलग बात है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने दुर्घटना से संबंधित कई और खबरें दी हैं जिनपर ना प्रवक्ता का जवाब है और ना ही ट्रोल नजर आ रहे हैं। और ऐसी खबरों में सबसे ताजा खबर है, किसी का शव किसी और का समझकर किसी और को दे दिया जाना। कहने की जरूरत नहीं है कि पहचान से संबंधित नियमों का पालन ठीक से नहीं होने के कारण प्रभावित परिवारों को होने वाली इस भावनात्मक परेशानी का कोई इलाज नहीं है ना उसकी किसी तरह भरपाई की जा सकती है। तथ्यात्मक गलती तो सुधारी जा सकती है और उसपर रेलवे की फुर्ती देखने लायक है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की ही खबर से पता चला था कि एक जिन्दा व्यक्ति को भी मुर्दों में रख दिया गया था। यह दिलचस्प है कि जिस ट्वीटर हैंडल से टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का खंडन किया गया है उसी से एएनआई की दुर्घटना से संबंधित खबर को रीट्वीट किया गया था। यही नहीं, 24 अप्रैल के एक ट्वीट से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया था मुंबई-अहमदाबाद एचएसआर कॉरीडोर के 50 किलोमीटर वायाडक्ट का निर्माण पूरा हुआ तो उसे भी इसी हैंडल से ट्वीट किया गया था। और ऐसे में वंदेभारत ट्रेन पर प्रधानमंत्री का ट्वीट, रीट्वीट होने से कैसे छूट सकता है।