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उत्तर प्रदेश

राम मंदिर चंदा घोटाला को सरल शब्दों में समझें

राजेंद्र चतुर्वेदी-

एक मित्र का आदेश है कि हम उन्हें राम मंदिर जमीन घोटाले के बारे में सरल शब्दों में समझाएं। उनका कहना है कि उन्होंने इस घोटाले के बारे में फेसबुक पर बहुत कुछ पढ़ लिया है लेकिन उनकी समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है।

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तो हमने उन्हें जो समझाया, वह इस तरह है।

हमने उनसे कहा कि सबसे पहले आप बैनामा के बारे में जानिए। जब हम अपनी किसी अचल संपत्ति को बेचते हैं तो खरीदने वाले को उसकी रजिस्ट्री करते हैं।

इसे यूं भी कह सकते हैं कि जब हम किसी की कोई अचल संपत्ति खरीदते हैं तो उसकी रजिस्ट्री कराते हैं।

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अगर खरीदने वाला तत्काल रजिस्ट्री कराने की स्थिति में नहीं होता तो एग्रीमेंट करा लेता है, जिसमें इस बात का उल्लेख किया जाता है कि बेचने वाले को कब तक पूरा पैसा चुका दिया जाएगा और रजिस्ट्री करा ली जाएगी। एग्रीमेंट नोटरी वाले स्टाम्प पर हो जाता है।

यदि बेचने वाले को जल्दी है तो वह तीसरी पार्टी को बैनामा कर देता है। जिसके नाम बैनामा किया जाता है, वह बेचने वाले का प्रतिनिधि माना जाता। वह उस सम्पत्ति को बेचने का कानूनन अधिकारी हो जाता है।

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बैनामा को पॉवर ऑफ अटॉर्नी भी कहते हैं और बैनामा धारी उस सम्पत्ति का नामांतरण भी अपने नाम करा सकता है। इसलिए बैनामा की बिल्कुल वही प्रक्रिया होती है जो रजिस्ट्री की होती है।

यानी बैनामा कराने वाले और बेचने वाले यानी बैनामा करने वाले, दोनों को रजिस्टार के सामने पेश होना पड़ता है। कम से कम दो ऐसे गवाहों की जरूरत भी पड़ती है जो दोनों पार्टियों को जानते हों।

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यानी हू बहू रजिस्ट्री जैसा ही होता है। हां, रजिस्ट्री और बैनामा में एक फर्क भी है। रजिस्ट्री में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्टाम्प ड्यूटी चुकानी पड़ती है यानी तयशुदा कीमत के स्टाम्प पर ही रजिस्ट्री लिखी जाती है।

जबकि बैनामा में स्टाम्प ड्यूटी कम लगती है यानी कम रकम के स्टाम्प पर बैनामा लिखा जाता है।

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यहां तक आपकी समझ में मूल बात आ गई होगी कि बैनामा धारी सम्पत्ति को बेच भी सकता है।

अब समझिए कि अयोध्या वाले मामले में झोल कहां हुआ।

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जमीन के मालिकों ने दो करोड़ रुपए में एक पार्टी को जमीन का बैनामा कर दिया।

इसके ठीक 10 मिनट बाद ही बैनामा धारी पार्टी ने जमीन रामजन्म भूमि मंदिर ट्रस्ट को बेच दी और वह भी साढ़े 18 करोड़ में।

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यानी बैनामा कराने वालों ने जो सम्पत्ति दो करोड़ में खरीदी, उसी सम्पत्ति को साढ़े 18 करोड़ में बेचा। यानी दो-पांच मिनट में उन लोगों ने ठीक साढ़े 16 करोड़ रुपए कमा लिए।

यहां यह सवाल उठाया जा सकता है कि अगर कोई व्यक्ति इतना कलाकार है कि वह दो-पांच मिनट में ही किसी जमीन के सौदे में साढ़े 16 करोड़ रुपए कमा लेता है तो इसमें किसी को क्या दिक्कत है?

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लेकिन दिक्कत है, क्योंकि राम मंदिर ट्रस्ट के एक सम्मानित ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्रा जी बैनामा पर गवाह हैं।

बैनामा पर गवाह होने का मतलब यह है कि अनिल मिश्रा जी जमीन का बैनामा करने वालों और कराने वालों, दोनों ही पार्टियों से परिचित थे, वरना तो वे कानूनन गवाह बन ही नहीं सकते थे।

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ये तथ्य फिर से याद कर लीजिए कि बैनामा कराने वालों ने जमीन की कीमत कुल दो करोड़ रुपए चुकाई।

जो अनिल मिश्रा जी बैनामा पर गवाह बने थे, वही अनिल मिश्रा जी रजिस्ट्री पर भी गवाह बने। रजिस्ट्री बैनामा कराने वालों ने की, और मंदिर ट्रस्ट वालों ने कराई। मंदिर ट्रस्ट वालों ने बैनामा कराने वालों को साढ़े 18 करोड़ रुपए चुकाए।

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अनिल मिश्रा जी चूंकि बैनामा पर भी गवाह थे और रजिस्ट्री पर भी, इसलिए उन्हें पता था कि जो जमीन बैनामा कराने वालों ने दो करोड़ में खरीदी, उसे वे मंदिर ट्रस्ट को साढ़े 18 करोड़ में बेच रहे हैं। यानी साढ़े 16 करोड़ का मुनाफा कमा रहे हैं।

जिस दिन बैनामा हुआ, उसी दिन रजिस्ट्री हुई। यानी बैनामा कराने वालों ने उसी दिन साढ़े 16 करोड़ रुपए कमाए। और जिस राम मंदिर ट्रस्ट से कमाए, उसी ट्रस्ट के ट्रस्टी अनिल मिश्रा ने उन्हें कमा लेने दिए।

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ट्रस्ट के ये साढ़े 16 करोड़ रुपए बचाए जा सकते थे। अनिल मिश्रा जी दो करोड़ रुपए में बैनामा करने वाली पार्टी से दो करोड़ रुपए में ही मंदिर ट्रस्ट को जमीन की सीधी रजिस्ट्री भी करा सकते थे।

मिश्रा जी ने ऐसा नहीं किया तो क्यों नहीं किया? मिश्रा जी ने भगवान राम के पैसे बचवाये क्यों नहीं?

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अब आगे की कहानी…

मंदिर ट्रस्ट ने जो सफाई दी, वह वही है जो आरएसएस के संस्कारित स्वयंसेवक करते हैं। पहले एक झूठ बोलो, फिर उस झूठ को सही साबित करने के लिए दूसरा, फिर दूसरे को सही साबित करने के लिए तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां……।

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उनकी तरफ से जो मुख्य झूठ बोला गया है, वह यह है कि जमीन तो वर्षों पहले खरीद ली गई थी, उसका बैनामा अभी कराया गया है।

इसे झूठ हम इसलिए कह रहे हैं कि ट्रस्ट ने ये बात मौखिक रूप से कही है, कोई अदालती प्रमाण पेश नहीं किया।

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वर्षों पहले ट्रस्ट ने दो करोड़ रुपए की जमीन बिना कानूनी लिखत पढ़त खरीद ली, क्या यह बात हजम करने योग्य है?

क्या यह हैरत की बात नहीं है कि वर्षों पहले दो करोड़ में जमीन बेचने वाले वर्षों बाद रजिस्टार के सामने पेश हुए और बैनामा करके चले गए, उन्होंने बड़े हुए रेट के हिसाब से पैसे नहीं मांगे?

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साफ है कि घोटाले को ढंकने के लिए झूठ बोला जा रहा है और अभी इस तरह के हजारों झूठ और सुनने के लिए तैयार रहिए। विभिन्न डिजाइन वाले झूठ, रंग बिरंगे झूठ।


जे सुशील-

इससे बढ़िया अच्छे दिन और क्या होंगे कि ग्यारह मिनट में सोलह करोड़ का मुनाफ़ा कमा रहा है कोई और ठसके से कह रहा है कि दाम बढ़ गया तो क्या किया जाए.

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तरस उन लोगों पर आता है जिन्हें इसमें भी कुछ ग़लत नहीं दिखता है. वैसे मालवीय जी ने ट्रोल आर्मी को क्या निर्देश दिए हैं चंपत राय के बचाव में.

FACT: ज़मीन ख़रीदी गई दो करोड़ में 18 मार्च को. ग्यारह मिनट बाद वहीं ज़मीन बेची गई राम जन्मभूमि बोर्ड को अठारह करोड़ में. कोई महान आत्मा समझाए कि ग्यारह मिनट में दाम कैसे बढ़ा इतना. कम से कम एक साल का ग़ैप कर लेते तो डिफ़ेंड करना आसान होता.

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