महेश शर्मा-
ये रमेश अवस्थी वही वाले तो नहीं हैं जिनकी खास लोगों को दी गयी ‘आम’ पार्टी मशहूर है। चर्चा में रहती है. 40 साल के पत्रकारिता जीवन में मैंने सचमुच इन्हें नहीं देखा न ही कभी मिला. जबकि खांटी कनपुरिया हूँ. पत्रकारिता में इनके योगदान का भी मुझे अंदाज़ा नहीं है. इनके टिकट में भाजपा नेतृत्व का कानपुर से जीत का ओवर-कॉन्फिडेंस झलकता है! यानी जीत पक्की.
इनका एक इनविटेशन कार्ड फेमम हुआ करता है जिसमे मुनव्वर राना का यह शेर छपा रहता था कि ‘इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते/हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते.’
तो रमेश भैया बौर फर आयी है. अमिया आने लगी हैं. ‘आम’ पार्टी को अबकी आम कर दीजियेगा. खास न रखियेगा. चुनाव है. शेर भी ऐसा लिखवा दीजियेगा, ‘इंसान के हाथों की बनाई भी खाते हैं/हम आम के मौसम में मिठाई भी खाते हैं.’
देखें महेश शर्मा की पोस्ट पर आए कुछ कमेंट..
स्वामी उमेश रामाश्रयी-
ये सहारा वाले हैं. जनता इन्हें नकार देगी सहारा में बहुतों का पैसा डूबा है. कानपुर भूलता नहीं आर्थिक अपराध.
राज तिलक-
यह टिकट इस बात की उदघोषणा भी है कि घर में सतत टांग खिचाई और सिर फुट्टौव्वल चल रहा है, जिसका समाधान संभव नहीं. घर का वारिस, घर के बाहर से आयातित करना पड़ रहा है. कानपुर बीजेपी के पास दांव लगाने के लिए कोई निर्विवाद चेहरा नहीं बचा है.
संजीव मोहन-
सारे भाजपाई भी केवाईसी अपडेट कर रहे हैं बेचारे, जाना न पहचाना, पर मजबूरी है लड़ाना.
धर्मेंद्र त्रिपाठी-
मैं व्यक्तिगत रूप से इनसे दो बार मिला हूं. शहर के एक पत्रकार कम छोटे भाई ने मिलवाया था. इनको कहीं पर मदद की जरूरत थी. अब तो खैर वह पत्रकार भी इनसे दूर हो गया क्योंकि यह सहारा परिवार के काफी नजदीक हो गए. खुद को अमर सिंह के रूप में स्थापित करना चाहते हैं. यह टिकट इनको नहीं मिला है? बाकी बहुत सी बातें इस प्लेटफार्म पर लिखना या बताना उचित नहीं है?
महेश शर्मा कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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