नवीन पांडेय-
काका के असमय चले जाने से वाकई हम सब स्तब्ध हैं। हिन्दी पत्रकारिता के एक महान संपादक, जो जितने विद्वान थे, उतने ही विनम्र और आत्मीय। जो जितने संस्कारवान थे, उतने ही आधुनिक । उनमें कुछ ऐसा आकर्षण था कि उनसे मिलने वाला हर इंसान दिल से जुड़ जाता था। उस दौर में जब बड़े हिन्दी अखबारों के संपादक बेहद खुर्राट हुआ करते थे, आदरणीय रामेश्वर पाण्डेय जी यानी काका ने सिखाया कि इंसानियत बनाए रखते हुए भी अच्छा बॉस कैसे बने रहा जा सकता है।
दैनिक जागरण से केवल पांच साल का अनुभव लेकर 1999 में अमर उजाला में उनके साथ जुड़ा तो तीन महीने के अंदर ही उन्होंने मुझे सिटी डेस्क प्रभारी जैसी बड़ी जिम्मेदारी दे दी, जो अमर उजाला में उन दिनों बहुत वरिष्ठ लोगों को दी जाती थी। आज से 25 साल पहले अमर उजाला में क्वालिटी कंट्रोल का ऐसा डंका था, कि वहां नौकरी पाना हर नए पत्रकार का सपना होता था।
तीन साल की उस पारी में काका से बहुत कुछ सीखने को मिला, जो बाद के सालों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत काम आया। जब पहली बार मैंने संपादक की जिम्मेदारी संभाली तो सबसे पहले उनका ही आशीर्वाद मांगा। मैं भी हमेशा उस कतार में रहा, जिनको उनका स्नेह मिलता रहा। ईश्वर उनको अपने श्री चरणों में स्थान दें। विनम्र श्रद्धांजलि। अलविदा काका।