राष्ट्रीय सहारा के नोएडा स्थित मुख्यालय पर कल रात से बारिश में भीगते हुए प्रबंधन से सात महीने के बकाया वेतन भुगतान की मांग को लेकर धरना दे रहे सहारा कर्मचारी दूसरे दिन भी डटे हुए हैं। सहारा समूह के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनो के काम-काज ठप कर मीडियाकर्मी अब बिना वेतन के काम के मूड में नही हैं। उन्होंने ‘वेतन नहीं तो काम नहीं’ का पंफलेट चिपका दिया है और प्रबंधन से पूरे वेतन के भुगतान की तारीख़ तय करने की मांग कर रहे हैं । पूरी रात धरने पर जमे रहे सौ से अधिक सहाराकर्मियों में फूट डालने के मकसद से प्रबंधन ने उर्दू सहारा कर्मियों को सैलरी का आश्वासन दिया लेकिन एकता बरकरार रखते हुए उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया। आंदोलनकारियों ने प्रबंधन द्वारा दिए गए खाद्य पदार्थ भी लेने से मना कर दिया।
बारिश के बावजूद धरने पर जमे हुए सहारा के कर्मचारी
धरनास्थल के आसपास अपनी प्रमुख मांग का पंफलेट चिपकाकर विरोध जारी
आंदोलन स्थल पर जमा सहारा कर्मचारी
गौरतलब है कि सुब्रत राय के जेल जाने के बाद इस ग्रुप की हालत लगातार गिरती जा रही है। काफी समय से प्रबंधन और सहारा कर्मियों में आए दिन वेतन को लेकर विवाद होता चला आ है। आधी सैलरी, वह भी कभी कभी मिल रही है। ऊपर से कर्मचारियों को प्रबंधन की तरफ से कंपनी से निकालने की धमकियां भी दी जा रही हैं।
सहारा इंडिया कांम्पलेक्स सेक्टर 11 में धरने पर बैठे कर्मचारियों ने प्रबंधन से बात करने का प्रयास किया लेकिन कोई ठोस जवाब न पाकर वे काफी गुस्से में हैं। बातचीत के दौरान सहारा उर्दू के चैनेल हेड नें एक कर्मचारी को टर्मिनेट करने की धमकी भी दी। प्रबंधन की तरफ से बात कर रहे राजेश सिंह ने पहले 25 तारीख को सेलरी आने की बात कही थी लेकिन सच तो ये है कि सीवी सिंह और राजेश सिंह के आश्वासनों पर अब सहारा कर्मी भरोसा करने के मूड में नही हैं। वो प्रबंधन से सेलरी को रेगुलराईज करने अथवा उनका हिसाब करने को कहकर धरने पर बैठ गए हैं।
सहारा के आंदोलित कर्मचारियों का कहना है कि पिछले दस महीनों से सिर्फ हालात सुधरने का आश्वासन दिया जा रहा है और हमारी हालत बद से बदतर हुई जा रही है। पिछले कई महीनों से मकान का किराया और बच्चों के स्कूल फीस भरने में भी दिक्कतें आ रही हैं। जैसे तैसे घर-गहस्थी का गुजारा चला रहे थे मगर अब हद हो गई है।
आंदोलित कर्मियों का कहना है कि कल रात से धरने पर बैठे-बैठे उनकी हालत खराब हो रही है। बारिश में भीगकर भी वे वेतन भुगतान की मांग को लेकर डटे हुए हैं। अभी तक ‘आज तक’ के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर विधवा विलाप कर रहे तथाकथित मीडिया मठाधीश इस हालात पर ऐसे चुप्पी साध गए हैं, जैसे कहीं कुछ हो ही नहीं रहा हो। पत्रकार की मौत पर उत्तर प्रदेश को चिट्ठी लिखने वाले चिट्ठीबाज पत्रकार रवीश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपेयी, क्या खुद की पब्लिसिटी और वाहवाही पाने के लिए लेटरबाजी कर रहे हैं ? आखिर जो जिंदा पत्रकार हैं उनको उनका हक दिलाने में उनके पेट में दर्द क्यों नही हो रहा?
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