जितेंद्र यादव-
हमलोगों के गुरु दैनिक जागरण गाजीपुर के पूर्व ब्यूरोचीफ व वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर दीक्षित सर को कोरोना ने लील लिया, भगवान अब हद हो गई….कोरोना का नाश कर दो…आप बहुत याद आएंगे सरजी।
सत्येंद्र पीएस-
उफ्फ… रत्नाकर दीक्षित नहीं रहे। अभी क्या कुछ सुनना और क्या कुछ देखना बाकी है, समझ में नहीं आता। लम्बे समय तक दैनिक जागरण, वाराणसी में कार्यरत रहे। उनकी वह बेलौस हंसी कभी नहीं भूल पाऊंगा। साथ में पढ़ते थे। उस समय हीरो होंडा सीडी 100 से आते थे।
उनकी पत्नी उत्तमा उन दिनों बीएचयू के फाइन आर्ट्स में पढ़ाई करती थीं। एक बेटा भी था और वह उनके बाबूजी के साथ रहता था। पिताजी आरएसएस के एक स्कूल में पढ़ाते थे 600 रुपये तनख्वाह पर।
रत्नाकर ने उस दौर में बनारसी साड़ी से लेकर पत्नी की बनाई पेंटिंग तक बेचकर रोजी रोटी कमाने की कवायद की।
पत्रकारिता में आए तो अपने मधुर व्यवहार से खूब सम्बन्ध बनाए। इस बीच भाभी की भी नौकरी आगरा में लग गई। आर्थिक दुर्दशा खतम हो गई।
बाद में भाभी की नौकरी बीएचयू में लग गई और रत्नाकर भी बनारस जागरण से जुड़ गए। अभी कुछ महीने पहले फ़ोन पर बात हुई तो कहने लगे कि भाई अब नौकरी न कर पाएंगे।
मैंने पूछा कि नेतागीरी में हाथ आजमाने का इरादा है क्या! तो यही बोले कि बताऊंगा, कुछ अपना करने का इरादा है।
आज मित्र अश्विनी जी से बात कर रहे थे तो फेसबुक पर सूचना आई कि रत्नाकर दीक्षित नहीं रहे। मुझे विश्वास नहीं हुआ। अकबका सा गया। आधी रात को बनारस के 4-5 मित्रों को फोन मिला डाला। आखिरकार अजय राय जी से बात हो पाई और उन्होंने इतना ही कहा कि आपने सही सुना है। 5 दिन से भर्ती थे,आज निधन हो गया।
ऐसे नहीं जाना था यार। बनारस में आप ही तो एक मजबूत स्तम्भ थे, पढ़ाई के दिनों के संघर्षों के साथी थे।
अभी भी वह दिन याद है जब आपके पास एक ही पंखा था और हम, आप और भाभी जी एक ही कमरे में खा पीकर सोए थे। अब आपकी वह भुतही हंसी कैसे सुन पाऊंगा! अब तो वह दिन आए थे जब आपको थोड़ा सुख से जीवन बिताना था, खुलकर जीना था। यह भी कोई जाने की उम्र होती है दोस्त।
अवनींद्र कुमार सिंह-
एक बार फिर झंकझोर देने वाली खबर आई है। वाराणसी से वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर दीक्षित भी नहीं रहे। वह भी कोरोना से जंग हार गए, कई हमारे अपने पास से बड़ी शांति से चले जा रहे, हम सब असहाय महसूस कर रहे, चाहकर भी किसी को नहीं रोक पा रहे। दो दिन पूर्व ही उन्हें बीएचयू में भर्ती करवाया गया था, जिसकी जानकारी वह फेसबुक के माध्यम से खुद दिए थे, मुह में ऑक्सिजन कैप था। पोस्ट पर लिखा था ‘ मै कोरोना की चपेट में आ गया हूँ, आप सब लोग सुरक्षित रहे।
रत्नाकर दीक्षित का फेसबुक वॉल लॉक हो गया है। पहली बार मै उनसे तब मिला था जब वह जागरण में बलिया ब्यूरो थे, उसके बाद गाजीपुर सहित कई जनपदों में जागरण के जिला प्रभारी रहे। कुछ दिन पहले वह जागरण छोड़कर सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए थे। जागरण छोड़ते समय वह वाराणसी दफ्तर में थे, विभिन्न मुद्दों पर उनकी लेखनी चहती थी, खासकर राजनीतिक मुद्दों पर कटाक्ष किया करते थे। उनकी कुछ बाईलाइन खोजकर निकाला हूँ। एक तस्वीर मिली जो उनके जागरण वाराणसी दफ्तर में होली के समय की है। जिसमे राकेश पांडेय भईया (प्रयागराज संपादक), प्रमोद यादव भाई साहब व उनके अन्य सहयोगी है। एक बहादुर और लड़ाकू व्यक्तित्व इतनी जल्दी हार जाएगा, यह विश्वास नहीं होता। लेकिन हम सब विवश है परमात्मा के आगे। असामायिक निधन से गहरा आघात लगा है।
हे ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करो साथ ही परिवार को संबल दो। अब बस करो ईश्वर, सहन नहीं होता। हर घण्टे किसी अपने के खोने का दर्द अब बर्दाश्त नहीं होता। सोशल मीडिया खोलने से डर लगने लगा है, किसी की प्रोफाइल पिक्चर की तस्वीर भी अचानक देखकर कलेजा धक्क से कर जाता है। रत्नाकर दीक्षित को अंतिम प्रणाम और ईश्वर से प्रार्थना अपने चरणों में स्थान दे।