-समरेंद्र सिंह-
आत्मश्लाघा में डूबा हुआ कोई भी जीव.. रवीश कुमार बन जाता है! रवीश कुमार को मौका मिलना चाहिए फिर वो बाकी सारे चैनलों पर कूद पड़ते हैं। उन्हें लगता है कि सारे चैनल मिल कर उनके खिलाफ साजिश करते हैं। एनडीटीवी और उनके कार्यक्रम प्राइम टाइम की टीआरपी साजिश के तहत ही कम की गई है। और चैनलों की इस साजिश में मोदी सरकार भी शामिल है। उन्हें ये भी लगता है कि वो रोज रोज ऐतिहासिक भाषण देते हैं और इतना ऐतिहासिक कि सारी पब्लिक बस उन्हें ही देखती और सुनती है। मगर साजिशन सौ में दो नंबर दिए जाते हैं।

यहां सवाल उठता है कि उनकी टीआरपी तो मनमोहन सरकार में भी रसातल में थी। तो क्या मनमोहन सिंह भी एनडीटीवी के पीछे पड़े थे? एनडीटीवी तो मनमोहन सिंह का अपना चैनल था। प्रणव रॉय के मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से बहुत अच्छे संबंध थे। उस दौर में राष्ट्रपति भी उनके अपने ही थे। राष्ट्रपति भवन में एनडीटीवी का जलसा होता था और उस जलसे में सारे कांग्रेसी नेता शामिल होते थे। तो क्या एनडीटीवी की चरण वंदना से खुश होने की जगह सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह नाराज रहते थे? इतने नाराज कि उन्होंने एनडीटीवी की टीआरपी गिरवा दी थी?
दरअसल एनडीटीवी में कुछ अपवादों को छोड़ कर सारे के सारे शेखचिल्ली हैं। लेढ़ा और ढकलेट हैं। टीवी क्या होता है उन्हें पता ही नहीं, न्यूज भी नहीं पता। बस भाषण देना जानते हैं इसलिए सब के सब भाषण देते हैं। कोई स्टूडियो में भाषण देता है कोई सड़क से मोबाइल के जरिए भाषण देता है। खबर कोई नहीं करता। खबर द वायर वाले करें, क्विंट वाले करें। इंडियन एक्सप्रेस करे और द हिंदू करे। कोई भी कर ले, मगर ये खबर नहीं करेंगे। बस दूसरों की खबरों पर भाषण देंगे।
फिर भी रवीश कुमार को लगता है कि इनकी लोकप्रियता नरेंद्र मोदी से भी अधिक है और पब्लिक सिर्फ इनके कार्यक्रम प्राइम टाइम का इंतजार करती है। अरे भई, यहां तो खुद बीजेपी वाले अपने युगपुरुष नरेंद्र मोदी के भाषण से उकता गए हैं। एक ही बात कितने दिन सुनें और क्यों सुनें? कोई आदमी मिठाई भी रोज रोज खाएगा तो उकता जाएगा या फिर डायबिटीज से मर जाएगा।
रवीश कुमार को ये भी लगता है कि इनके जलवों में माधुरी दीक्षित और सलमान खान से अधिक जादू है। और पब्लिक इनके पीछे पागल है। इनकी अदाओं के देखने के लिए इनके चैनल की स्क्रीन से चिपकी रहती है। अगर दूसरे चैनल वाले और सरकार साजिश नहीं रचती तो ये हर रोज नया इतिहास रच देते। सरकारें बनाते और गिराते।
आत्मश्लाघा में डूबा हुआ जीव ऐसा ही होता है। वो रवीश कुमार हो जाता है। उसे हर जगह मैं ही मैं दिखता है।
एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे पत्रकार समरेंद्र सिंह की एफबी वॉल से.
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Comments on “रवीश कुमार मौका मिलते ही बाकी सारे चैनलों पर कूद पड़ते हैं!”
Perhaps that’s why he has received the Magsaysay award ✌️✌️✌️
भाई साहब, आपने दिल जीत लिया … एकदम सटीक विश्लेषण कर के..
रविश जी को ये गलतफहमी अतिशयोक्ति के स्तर तक है कि बेरोजगारी, दलित ,गरीब की समस्याओं पर सिर्फ वो ही स्टोरी चलाते है और वही है जो इनकी आवाज उठाते है,बाकी सारे चैनल सरकार का गुणगान करते है। जबकि ऐसा है नही, कई सारे चैनल इन विषयों को उठाते रहते है लेकिन वो इस बात का दम नही भरते की वही एक रॉबिनहुड है ।
सच कोई नहीं सुनना चाहता है सर, उसके बाद वो इंसान आपकी तरह हो जाता है। और हां रवीश जी जैसा पत्रकार कोई नहीं, धन्यवाद।