कोरोनाकाल में बड़े अखबारों के हालात इतने खराब हो गए हैं कि अब रिपोर्टरों पर विज्ञापन लाने का दबाव डाला जा रहा है। यूपी हो या राजस्थान, हर कहीं अखबार वाले अपने रिपोर्टरों को विज्ञापन लाने का टारगेट देने लगे हैं.
कानपुर से खबर है कि दैनिक जागरण के प्रबंधकों के इशारे पर मालिकों ने अब संपादकों को अपने रिपोर्टरों को बिजनेस टारगेट देने के लिए मजबूर कर दिया है. हर रिपोर्टर को एक्सक्लूसिव विज्ञापन लाने के लिए कहा गया है. एक्सक्लूसिव विज्ञापन मतलब जिसका विज्ञापन पहले से दैनिक जागरण में न प्रकाशित हो रहा है. रिपोर्टरों का बिजनेस टारगेट फिक्स कर दिया गया है. इस घटनाक्रम से अब ये कहा जा सकता है कि दैनिक जागरण जैसे अखबारों की बची खुची आत्मा भी पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इनके लिए अखबार बस पैसे उलीचने का साधन भर हैं और रिपोर्टर इस धन उगाही अभियान के टूल बन गए हैं.
ऐसी ही सूचना दैनिक जागरण मेरठ से भी आ रही है। यहां रिपोर्टर अपनी नौकरी और बाल बच्चों का वास्ता देकर शहर में विज्ञापन वसूलते फिर रहे हैं।
चलते हैं राजस्थान. उदयपुर में 14 दिसंबर को राजस्थान पत्रिका के स्थापना दिवस पर रिपोर्टर्स और फोटोग्राफर्स को संपादक ने बुलाकर टारगेट दे दिया कि आपको दो दो लाख रुपए के विज्ञापन लाने हैं. अब इस महामारी में नौकरी करनी है तो संपादक को भी विज्ञापन के लिए दबाव बनाना जरूरी हो गया. रिपोर्टरों ने भी खबरों को छोड़कर विज्ञापन देने वालों के चक्कर लगाना शुरू कर दिए.
यही हाल भास्कर में हुआ. 19 दिसंबर को राजस्थान में भास्कर के स्थापना दिवस पर रिपोर्टर्स की मीटिंग बुलाकर बकायदा विज्ञापनों का टारगेट दिया गया. एक दिन तो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का इंटरव्यू प्रकाशित किया गया, बायलाइन थी हर्ष खटाना की. दो दिन बाद भाजपा का फुल पेज विज्ञापन प्रकाशित हुआ. तब समझ आया कि माजरा किया है. अब नवज्योति में भी उदयपुर एडिशन के स्थापना दिवस पर रिपोर्टर्स पर विज्ञापन का इस हद तक दबाव बनाया जा रहा है कि नौकरी करनी है तो विज्ञापन तो लाने ही होंगे.
कोरोना काल के बाद रिपोर्टरों पर बिजनेस लाने के लिए दबाव बनाना, रिपोर्टरों को बिजनेस के लिए टारगेट देना एकदम नया घटनाक्रम है. पहले ये सब काम चुनाव के दिनों में होता था, लुकछिप कर. अब ये सब कुछ खुलेआम और आन द रिकार्ड होने लगा है.