दिलीप खान-
भारत में पत्रकारिता के पतन का स्तर इतना है कि अब इसको लेकर कोई भी विशेषण छोटा पड़ जाता है. फिर भी, आज सुप्रीम कोर्ट में Umar Khalid की सुनवाई के दौरान जो ज़िरह हुई, वह सबको जानना चाहिए. अब ये बातें रिकॉर्ड में हैं. आधिकारिक हैं.
अदालत में उमर के वकील त्रिदीप पायस ने कहा कि उन्हें टीवी चैनल (की साज़िश) ने फंसाया है. दो वीडियो क्लिप का हवाला देकर पुलिस ने उमर को गिरफ़्तार किया था. रिपब्लिक टीवी ने महाराष्ट्र में उनके दिए गए भाषण को ‘देशविरोधी’ कहते हुए आरोप लगाया था कि उमर दंगा भड़का रहे हैं.
रिपब्लिक टीवी से कहा गया कि आप पूरा फ़ुटेज दीजिए. रिपब्लिक ने जवाब दिया कि उसके पास रॉ फ़ुटेज है ही नहीं. उसका कोई रिपोर्टर घटनास्थल पर गया ही नहीं था. रिपब्लिक को फ़ुटेज कहां से मिला? बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय के ट्वीट से.
मतलब, बीजेपी के झूठ वाले कारखाने के मुखिया ने एक छोटा-सा वीडियो रिलीज़ किया. उसे बीजेपी के इशारे पर चलने वाले एक चैनल ने ब्रॉडकास्ट किया. फिर, बीजेपी (केंद्र सरकार) के अंदर काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने ‘मीडिया फ़ुटेज’ का हवाला देकर उमर पर UAPA लगा दिया!
अदालत में आज एक फ़्रेज का इस्तेमाल किया गया- डेथ ऑफ़ जर्नलिज़्म. यानी पत्रकारिता की हत्या. देश में हर कोई जानता है कि पत्रकारिता की हत्या कब की हो चुकी है. ख़ासकर टीवी में. वहां ज़ॉम्बिज़ की फ़ौज अब देश के भीतर नफ़रत भरने का काम कर रही है.
हमें मालूम है कि उमर को देर-सबेर छूटना ही है. बेल भी मिलेगी और बाइज़्ज़त बरी भी होंगे. इस आत्मविश्वास का कारण? कारण ये कि मैं उमर को जानता हूं. मुझे उसकी हद पता है. ये भी जानता हूं कि अमरावती में उमर ने भाषण में क्या-क्या कहा था.
पहले जेएनयू, फिर भीमा-कोरेगांव और फिर दिल्ली दंगा! 5 साल से उमर जैसे होनहार और ऊर्जावान लड़के को इस सरकार ने चैन से जीने नहीं दिया है.
उधर, भीमा-कोरेगांव वाले अलग केस में कैसे NIA की चार्जशीट में से ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साज़िश’ वाला पैराग्राफ़ ग़ायब हो गया है, ये तो आप लोगों ने पढ़ ही लिया होगा.
सरकार एक सुर्रा छोड़ती है. मीडिया उसे हवा देता है. लोग उसे सच मान लेते हैं. फिर, पुलिस को सबूत नहीं मिलता, फिर सरकारी वकील कमज़ोर पड़ जाते हैं. फिर, अदालत फ़टकार लगाती है और फिर चार-पांच साल में गिरफ़्तार किए गए लोग छूट जाते हैं. लेकिन, तब तक 4-5 साल गुज़र जाते हैं. इन वर्षों का कोई हिसाब-किताब नहीं होता!
पंकज चतुर्वेदी-
एक राजनीतिक दल के आईटी सेल से मिले वीडियो को टीवी चैनल चलाते रहे। उसी के आधार पर दिल्ली पुलिस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे की साजिश की झूठी कहानी लिख ली।
आज उमर खालिद की जमानत अर्जी पर बहस के दौरान मीडिया और पुलिस का यह घटिया चेहरा उजागर हो गया।
उमर खालिद की ओर से अमरावती, महाराष्ट्र में दिए गए भाषण को रिपब्लिक वर्ल्ड नाम के चैनल ने यू ट्यूब पर दिखाया था। वकील त्रिदीप पायस ने जिरह के दौरान कहा, “भाषण के बाक़ी हिस्सों को क्यों छोड़ दिया गया। 23 जून को चैनल को नोटिस भेजा गया कि वे टीवी चैनल और यू ट्यूब पर चली फ़ुटेज सामने रखें।”
इस मामले में चैनल की ओर से दिए गए जवाब को पढ़ते हुए खालिद के वकील ने कहा कि ये ऐसे पत्रकार हैं जो कभी भाषण सुनने ज़मीन पर नहीं जाते लेकिन इसे दिखाते वक़्त बहुत ख़ुश होते हैं।
वकील के मुताबिक़, चैनल ने अपने जवाब में कहा है कि उनके पास भाषण की रॉ फ़ुटेज नहीं है और उन्होंने इसे बीजेपी के सदस्य के ट्वीट से लिया है। इस पर अदालत ने पूछा कि क्या बिना सत्यापित किए ही वीडियो को चला दिया गया।
वकील के मुताबिक़, चैनल ने अपने जवाब में कहा था कि इस फ़ुटेज को उनके कैमरामैन ने रिकॉर्ड नहीं किया बल्कि इसे बीजेपी के नेता अमित मालवीय ने ट्वीट किया था। वकील ने जोरदार ढंग से बहस करते हुए कहा कि यह पत्रकारिता की नैतिकता नहीं है बल्कि उसकी मौत है।
वकील ने अदालत के सामने उमर खालिद के उस भाषण का पूरा वीडियो भी चलाया और इसके बाद न्यूज़ 18 के द्वारा चलाए गए भाषण की वीडियो ट्रांसक्रिप्ट पर भी बहस की। इस मामले में न्यूज़ 18 को भी नोटिस भेजा गया था और कहा गया था कि वह उमर खालिद के भाषण की रॉ फ़ुटेज उपलब्ध कराए।
यही नहीं एक गवाह दो अलग अलग मामलों में एक ही घटना पर अलग अलग गवाही देता है और जांच अधिकारी ध्यान नहीं देता। असल में यह चार्जशीट झूट, साजिश और फ़र्ज़ी जांच की सी ग्रेड स्क्रिप्ट है।
सौमित्र राय-
दिल्ली की एक अदालत में उमर ख़ालिद की जमानत याचिका पर आज सुनवाई में दिल्ली पुलिस की चमड़ी उधड़ गई।
उमर के वकील त्रिदीप पायस ने दिल्ली नरसंहार मामले में पुलिस के FIR और उमर के कथित भाषण को गोदी मीडिया चैनलों से उधार लिया गया साबित कर दिया।
उन्होंने साफ कहा कि दिल्ली पुलिस के पास न्यूज़ 18 और रिपब्लिक चैनल के फुटेज के सिवा कुछ नहीं है।
दिल्ली पुलिस ने न्यूज़ 18 से रॉ यानी असली फुटेज मांगा था, लेकिन चैनल के पास जो फुटेज है, वह किसी बीजेपी नेता ने मुहैया करवाई है।
पायस की दलील थी कि रिपब्लिक चैनल ने अपनी वीडियो फुटेज अमित मालवीय (बीजेपी IT सेल) के ट्वीट से उठाई थी।
पायस ने आज कोर्ट में अमित मालवीय के ट्वीट से उस वीडियो को चलाया और फिर खालिद के अमरावती में दिए गए भाषण को पूरा ओरिजिनल में चलाया।
खालिद के भाषण में एहतेज़ाद शब्द का जज ने अर्थ पूछा। पायस ने बताया कि खालिद लोकतांत्रिक अधिकारों की बात कर रहे हैं।
पायस ने अदालत में यह साबित कर दिया कि दिल्ली पुलिस ने खालिद की मूल वीडियो पेश ही नहीं की।
सुनवाई 3 और 6 सितंबर को फिर होगी।
इस पूरी बहस को एक लाइन में समेटें तो- मीडिया एक वायरस है और दिल्ली पुलिस उससे संक्रमित है।
श्याम मीरा सिंह-
उमर ख़ालिद केस में हुई आज की सुनवाई पढ़ रहा हूँ. पुलिस से पूछा गया उमर ख़ालिद के ख़िलाफ़ सबूत कहाँ हैं? पुलिस बोली सबूत तो न्यूज़ चैनलों की फ़ुटेज हैं. न्यूज़ चैनलों से पूछा गया वीडियो का सोर्स कहाँ है? चैनल बोले हमें नहीं पता, हमने तो भाजपा नेताओं के ट्विटर से ली हैं.
FIR का कारण महज़ एक भाषण, ये भी आधा काटकर चलाया गया. उमर के वकील पूछते हैं आधा ही क्यों चलाया और आधा क्यों काटा, जिसमें उमर देश की एकता-अखंडता की बात कर रहे हैं. लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं. न पुलिस, न न्यूज़ चैनल, न न्यायपालिका. पर पता सबको है.
पता सबको है कि उमर निर्दोष है, पता जज को भी है, पता पुलिस को भी है, पता सरकारी वकील को भी है, पता कोर्ट की सुनवाई पढ़ने वाले एक-एक आदमी को है कि उमर निर्दोष है….. लेकिन सब चल रहा है. चौराहे पर ट्रैफ़िक लाइट पर बत्तियाँ लाल-पीली होते ही स्कूटर की रफ़्तार से दिल्ली
आगे बढ़ जाती है
बबलू चक्रबर्ती
August 23, 2021 at 9:31 pm
मीडिया के भरोसे को मजबूत और पत्रकारिता के भविष्य को बेहतर बनाने हेतु गम्भीरता जरूरी है ।
Ashish
August 24, 2021 at 6:57 am
भारत देश के मूल्यों का पतन हो रहा है