-बद्री पी सिंह-
मीडिया का दोगलापन… टीवी पर मेरा प्रिय कार्यक्रम पुराने गाने तथा दक्षिण भारतीय फिल्मों का हिंदी रूपांतरण देखना है।बीच- बीच में ब्रेक मे हिन्दी समाचार भी देख लेता हूं।आजकल चैनलों पर सुशांत सिंह का कब्जा है ,मन बदलने के लिए बीच- बीच में चीन का सफाया,उत्तरी कोरियाई तानाशाह की मृत्यु या पागलपन, पाकिस्तान का भीख का कटोरा भी दिखाया जाता है।
कल नौ बजे जी न्यूज चैनल पर सुधीर चौधरी रिया का साक्षात्कार दिखाने वाले एक चैनल को बिना नाम लिए पानी पी पी कर कोस रहे थे । चैनल का नाम पता करने हेतु देश का सबसे निष्पक्ष तथा निर्भीक चैनल “रिपब्लिक भारत” टटोला। वाकई मजा आ गया। यह एंकर पिछले का बाप निकला। यह भी उस चैनल की ऐसी धज्जियां उड़ा रहा था जैसे कि उसने दाउद इब्राहिम की शान में कसीदे कहे हों।
वह बार बार चीख रहा था कि रिया का साक्षात्कार दिखाना देश के १३० करोड़ जनता का अपमान है।मेरी उत्सुकता चरम पर आ गई,मैंने कई चैनल टटोल कर देश का सबसे बड़ा चैनल “आजतक “को खोज ही लिया जिस पर रिया का साक्षात्कार चल रहा था जिसे थोड़ी देर तक मैंने देखा, मुझे उसमें कुछ ग़लत नहीं दिखा।रिया सुशांत राजपूत के विषय में बताते हुए अपनी बात रख रही थी। कुछ मिनट बाद मैं मस्ती चैनल पर अन्नू कपूर को सुनने लगा।
मुझे बड़ा अजीब लगा कि कुछ हफ्ते पहले सुशांत राजपूत की मृत्यु को बालीवुड की आपसी गुटबाजी, माफिया दादागिरी से इन खबरिया चैनलों ने जोड़ा था, फिर सुशांत के पिता के मुकदमे लिखाने के बाद सबों ने रिया को धोखेबाज, चालबाज, काला जादू करने वाली, नशीला पदार्थ देने वाली, धीमा जहर देनेवाली, सारा पैसा हड़पने वाली, घरवालों से बात न कराने वाली, कमीनी, ऐय्याश आदि विशेषणों से नवाजते हुए सीबीआई जांच की भूमिका तैयार की। अब सीबीआई जांच का आदेश होने पर भी इनका चैनल सदैव दहाड़ता हुआ रिया के विरोध में कहता है कि यह इनकी इक्सक्लूजिव रिपोर्ट है,यह खबर सबसे पहले इन्हीं के चैनल पर दी जारही है,आदि। जब कि वही खबरें सभी चैनलों पर चल रही होती हैं। सभी चैनल रिया का ट्रायल कर उसे फांसी के फंदे तक ले जाने को दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। यदि सीबीआई ने रिया को अपनी जांच में दोषी नहीं माना, तो ये सीबीआई की भी ऐसी ही दुर्गति करेंगे।
प्राकृतिक न्याय में सभी पक्षों को सुनकर ही निष्कर्ष निकालना चाहिए।एक पक्षीय जानकारी पर निर्णय लेने से अन्याय होने का खतरा होता है।जब अधिकांश चैनल रिया को दोषी घोषित कर रहे हैं तो यदि किसी चैनल ने उसका पक्ष जानने का प्रयास किया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा,कौन सा अवैधानिक,अनैतिक, अमानवीय कार्य हुया? आधिकारिक जांच तो सीबीआई की है, उसी की जांच स्वीकार की जाएगी, फिर खबरिया चैनलों में यह गृहयुद्ध क्यों? क्या मुलजिम अपनी बात सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकता? क्या संविधान का कोई आर्टिकल उसे ऐसा करने से रोकता है? या किसी चैनल का एकाधिकार या दादागिरी है कि जो वह दिखाते,वहीं खबर सब चैनल दिखायें? खबरिया चैनलों की महाबहस सुनें, एक विषय के पक्ष में दूसरा विपक्ष में, विशेषज्ञ दोनों को धमकाता तथा एंकर तीनों को लड़ाया है। इसी बहस में ऐसा विषयांतर होता है कि बहस शुरू होती है गरीबी की रेखा पर और समाप्त होती है रेखा की गरीबी पर। हर चैनल के अपने वक्ता जो बगैर सुने अपनी बकवास करते रहते हैं और एंकर बीच में आग में घी डालते हुए बहस समाप्त की घोषणा करता है।
कुछ एंकर इतने बदमिजाज हैं कि वक्ता को बोलने नहीं देते जबतक कि वह उनकी बात का समर्थन न करें।वक्ता भी लतखोर हैं बार बार उन चैनलों पर बहस करने पहुंचे रहते हैं जहां से वे बेआबरू किए जाते हैं ।कोई भी बहस संजीदगी, स्पष्टता, निष्पक्षता और संयम से हो ही नहीं पाती। कारण एक है और वह है एंकर और उनकी लतखोर टीम।
क्या प्रजातंत्र का यह चौथा खंभा भी अन्य तीन खंभों की तरह दरक रहा है? यदि हां, तो इस देश में प्रजातंत्र का भविष्य खतरे में है।
पुलिस सेवा से रिटायर अधिकारी बद्री पी सिंह की एफबी वॉल से।