मनीषा पांडेय-
रॉकेट बॉयज बहुत सुंदर सीरीज है. आजादी की लड़ाई और आजादी के बाद नए भारत के निर्माण की पृष्ठभूमि में चल रही होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई की कहानी.
बड़े प्यार से, दिल से, अकल से बनाई है. देखते हुए कई बार भावुक हुई, डूबी-उतराई, आंख डबडबाई. कहानी से तार जुड़ा.
लेकिन उस कहानी को देखते हुए पहले ही एपिसोड में जो दूसरी कहानी मेरे जेहन में चल रही थी और उस कहानी में नहीं सुनाई गई है, वो कहानी मैं सुनाना चाहती हूं.
एक 22 साल की लड़की थी. 1933 में उसने बैंगलौर के साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट में साइंस रिसर्च फैलोशिप के लिए अपने हाथ से लिखकर एक एप्लीकेशन भेजी. एप्लीकेशन उस इंस्टीट्यूट के हेड सी.वी. रमन के पास पहुंची. उन्होंने यह कहकर खारिज कर दी कि औरतों में विज्ञान पढ़ने की प्रतिभा नहीं होती. वो आजादी की लड़ाई का दौर था. गांधी के सत्याग्रह का दौर. लड़की सी.वी. रमन के दफ्तर के बाहर सत्याग्रह पर बैठ गई.
आखिरकार सी.वी. रमन को उस लड़की को दाखिला देने के लिए राजी होना पड़ा. लेकिन ये करने से पहले उन्होंने लड़की के सामने तीन शर्तें रखीं-
- वो पहले एक साल प्रोबेशन पर रहेगी. उस परमानेंट नहीं किया जाएगा.
- उसे देर रात, आधी रात या जिस भी वक्त बुलाया जाएगा, उसे आना होगा. वो मना नहीं कर सकती.
- लड़की को तीसरी ताकीद ये की गई थी कि चूंकि पूरे साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट में वो अकेली लड़की है तो उसकी मौजूदगी से लैबोरेटरी का माहौल खराब नहीं होना चाहिए.
शर्तें अपमानजनक थीं, लेकिन लड़की तुरंत राजी हो गई. और इस तरह वो इस देश के इतिहास में देश के पहले और सबसे बड़े साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट में दाखिला पाने वाली पहली महिला बनी.
उसका नाम था कमला सोहनी. साइंस में डॉक्टरेट की डिग्री पाने वाली पहली भारतीय महिला, जिसे बाद में कैंब्रिज ने अपने यहां रिसर्च के लिए बुलाया.
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रॉकेट बॉयज में मैं देख रही थी होमी भाभा और साराभाई के लिए सीवी रमन की उदारता और दोस्ताना. मर्द मर्दों की प्रतिभा का सम्मान करते थे, उनको मौके देते थे, उनकी गलतियों को माफ करते थे, उनकी मदद करते थे, उनके सिर पर हाथ रखते थे.
औरतों को कुछ भी आसानी से नहीं मिला. उन्हें हर कदम पर लड़ना पड़ा, खुद को साबित करना पड़ा.
होमी भाभा और साराभाई के खाते में कमला सोहनी के मुकाबले बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हैं, लेकिन सी.वी. रमन के दफ्तर के बाहर सत्याग्रह पर बैठी उस लड़की की उपलब्धि मेरी नजर में कम कीमती नहीं, जिसने उस इंस्टीट्यूट में लड़कियों के दाखिले का दरवाजा खोल दिया था.
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ये सीरीज बनाने वालों ने एक जरूरी और सुंदर कहानी सुनाई है.
लेकिन कहानियां और भी बहुत सारी हैं उस बाकी की आधी आबादी की, जो इस तरह से कभी न लिखी गईं, न सुनाई गईं. जिन पर फिल्में नहीं बनीं. जो इतिहास में ढंग से दर्ज नहीं हुईं.
हमारा इतिहास लिखा ही नहीं जाएगा तो हमें कैसे पता चलेगा कि हमारा सफर कितना ज्यादा मुश्किल था. इसलिए कितना ज्यादा कीमती है.