नई दिल्ली। मीडिया जगत में संपादकों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि मीडिया जगत में संपादकीय साहस, उच्च पेशेवर और नैतिक मानकों के प्रदर्शन के उदाहरण अब बहुत कम ही बचा है। साथ ही कुछ सालों में संपादकों की भूमिकाओं एवं स्थिति में भी बदलाव महसूस किया गया है। राजधानी दिल्ली में राज्यसभा टेलीविजन द्वारा ‘आज के मीडिया में संपादकों की भूमिका’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उद्घाटन भाषण देते हुए उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि मीडिया में संपादकीय साहस, उच्च पेशेवर तथा खबरों में नैतिक मानक बहुत कम ही देखने को मिलते हैं।
संपादक का दायित्व आम जनता की धारणा बनाना बनाने के साथ ही राष्ट्रीय बहस का एजेंडा भी तय करना है। कुछ समय पहले ही एक ऐसा समय था जब अखबारों के संपादक बौद्धिक दिग्गज होते थे, जो कि देश के लिए दिमाग का कार्य करते थे। उपराष्ट्रपति अंसारी ने आगे कहा कि पत्रकारिता की नैतिकता एवं मूल्यों को बनाए रखने के लिए एक संपादक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाठकों को दी जा रही जानकारी अथवा सामग्री सटीक एवं प्रासंगिक हो। साथ ही निष्पक्ष, स्वतंत्र, सम्मानजनक भी हो। कुछ सालों में संपादकों के भूमिकाओं एवं स्थिति में बदलाव आया है। मीडिया में एक संपादकीय और एक विज्ञापन के बीच अन्तर होना चाहिए। दोनों को अलग-अलग रखा जाना चाहिए। मीडिया में डिजिटल माध्यम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि डिजिटल माध्यम ने आज लोगों को अपने स्वतंत्र एवं विपरीत विचारों को रखने का स्थान उपलब्ध कराया है।
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इलेक्ट्रॉनिक हो या प्रिंट या वेब के अंतर्गत कार्यरत कुछ वरिष्ठ संपादकों और कुछ युवा पत्रकारों में नैतिकता और साहस का अथाह एवं अदम्य साहस कूट कूट कर भरा । ये उनका दुर्भाग्य कहे या समय की विडंबना या सिस्टम के अधीन कार्य करने की मजबूरी, कि उच्च पदों पर आसीन कुछ ‘चमचेबाजी में ईमानदारी’ और ‘कार्य निपटाने में कामचोरी’ की महारथ हासिल किए हुए दलालों के हाथों कुछ तो कठपुतली बन जाते है । बाकी टैलेंटर्स को 5 से 10 साल के भीतर ही घर वापसी करनी पड़ जाती है।