Manish Srivastava : यूपी के प्रशासनिक अफसर खुद को नादिरशाह न समझें… योगी जी! आपके जैसे संवेदनशील मुख्यमंन्त्री के राज में डीएम-एसपी जैसे प्रशासनिक अफसर खुद को नादिरशाह समझने की भूल कर रहे हैं। पत्रकारों से व्यक्तिगत खुन्नस है तो आइए। सरेआम फांसी दे दीजिये। अगर सरकार की तथ्यों सहित आलोचना ही सबसे बड़ा गुनाह है तो सबसे पहले मैं सूली चढ़ने को सहर्ष तैयार हूं। लेकिन पहले से मामूली वेतन पाकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे छोटे जिलों के पत्रकारों पर तानाशाही बन्द करवाइए।
हिम्मत है तो लखनऊ से नोएडा तक फैले बेहिसाब करोड़पति पत्रकारों को पकड़िए। इनकी सम्पत्तियों की जांच कराकर जब्त कीजिये। लेकिन जिलों के संसाधनविहीन छोटे पत्रकारों को कथित कहकर कहीं भी उठाकर बन्द करवाना बन्द कराइये। इनकी आवाज़ सत्ताधीशों तक पहुंचाने वाला कोई नहीं है। जो गलत करें, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करें। आपको पूरा अधिकार है।
अब इसी प्रकरण की नजीर देखिए। आपके अफसरों ने ही मिर्जापुर में प्राथमिक विद्यालय के मासूम बच्चों को पहले मिड-डे-मील में नमक-रोटी खिलाई। फिर देशभर में फजीहत के बाद कल देर रात एक एफआईआर दर्ज कराते हुए उसी स्थानीय पत्रकार पवन जायसवाल को नामजद कर दिया। जिसने नकारा सरकारी तंत्र का वीडियो बनाकर सत्य से समाज को रूबरू कराया था, उस पर सरकारी कार्य में बाधा समेत कई आरोपों की धाराएं लगा दी गईं। सरकार की छवि खराब करने की दुहाई दे रहे। मुकदमा डीएम के आदेश पर दर्ज करवाया गया है। डीएम की अध्यक्षता में ही जांच कमेटी बनी थी। जबकि इस प्रकरण में मुख्यमंत्री की सख्ती पर ही सहायक अध्यापक, समन्वयक, बीईओ को निलंबित कर दिया गया था और बेसिक शिक्षा अधिकारी को प्रयागराज से संबद्ध कर दिया गया।
चार अफसरों पर सारी कार्रवाई हवा में ही कर दी गयी थी क्या? अगर योगी जी न कहते तो जांच न होती और उल्टे पत्रकार पर ही तब एफआईआर भी न दर्ज होती। डीएम मिर्जापुर अनुराग पटेल तो मानो नादिरशाह ही बन गए हैं। तभी इनके निर्देश पर खंड शिक्षा अधिकारी द्वारा थाने में तहरीर दी गयी कि रोटी-नमक प्रकरण में जान बूझकर, प्रायोजित तरीके से छलपूर्वक, वीडियो बनाकर वायरल करते हुए सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न की गई है। मतलब पत्रकार खुद नमक रोटी बच्चों को खिलाने की साज़िश का हिस्सा था और खुद ही वीडियो भी बनाकर वायरल भी कर दिया।
एक मर्तबा आपके अफसरों की बात मेरे जैसा छोटा पत्रकार मान भी लें तो इसमें वीडियो बनाने वाले पत्रकार का क्या कसूर है। जिसे अब कथित कहा जा रहा, उसने अपना काम किया। पूरे प्रदेश में मिड डे मील के क्या हालात हैं, आप खुद दौरे करके हकीकत देखिए। भई हद है। एफआईआर का मजमून देख कोई गधा भी समझ जाए कि अफसरों ने डैमेज कंट्रोल की सुनियोजित साज़िश का खाका खींचा है। तहरीर के आधार पर पुलिस ने आरोपी राजकुमार पाल, पत्रकार पवन जायसवाल और एक अज्ञात के खिलाफ संबंधित धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया है। आधार स्थानीय अफसरों की रिपोर्ट को बनाया जा रहा है। ये जांच और रिपोर्ट कैसे तैयार होती है, मैं अच्छे से जानता हूँ।
कल देर रात ही मैंने प्रयास किया था कि डीएम मिर्जापुर से बात हो, लेकिन बड़े साहब का नम्बर नॉट रीचेबल है, हां एसपी ने जरूर उसी समय बात की थी, बोले आप डीएम साहब से बात कर लीजिए। हमने तो तहरीर ली है। नमक रोटी खिलाने के पीछे साज़िश है। थानाध्यक्ष ने भी मुझसे मुकदमा दर्ज होने की पुष्टि देर रात ही कर दी थी। लेकिन मैंने सुबह तक इंतजार करना मुनासिब समझा कि समाचारपत्रों की खबरें देखने के बाद पोस्ट करूँगा।
जिस वीडियो को अफसर आधार बना रहे हैं कि उसमें ग्राम प्रधान का सहायक और पत्रकार बोल रहे कि इसे वायरल करना है तो ये कोई बड़ी बात नहीं है। कोई भी ऐसा वीडियो वायरल ही करेगा वरना छोटे जिलों में ऐसे नकारेपन दब ही जाया करते हैं योगी जी पत्रकारों का काम सरकारी तंत्र की खामियां दिखाना है। ऐसे में एक छोटे स्थानीय पत्रकार को कथित बताकर उल्टे मुकदमे में लपेटा जाएगा तो इस तरह कोई भी पत्रकार सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करने से पहले ही हथियार डाल देगा कि मुकदमा उसी पर दर्ज होना तय है। ये बेहद संगीन प्रकरण है जिसकी व्यापक जांच होनी चाहिए।
योगी जी! इस तरह उत्तरप्रदेश में पत्रकारों के लिए आपातकाल की स्थितियां न पैदा होने दीजिए। हाल ही में नोएडा प्रकरण में जो कुछ एसएसपी वैभव कृष्ण ने किया। उसकी खिलाफत/तरफदारी मेरे द्वारा कतई नहीं की गई। आपके प्रिय नोएडा एसएसपी वैभव कृष्ण ने जिनके ऊपर गैंगेस्टर लगाया, उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्यों को कोर्ट में पेश करके पुलिसिया कार्रवाई को अब सत्य भी साबित करें। पत्रकारिता में ब्लैकमेलिंग का धुर विरोधी मैं भी हूँ। लेकिन भ्रष्ट सरकारी अफसर भी गैंग बनाकर ही आम जनता से उनकी गाढ़ी कमाई और सरकारी बजट की खुली लूट करते हैं ये किसी से छुपा नहीं है। इन पर आजतक आपकी पुलिस ने गैंगेस्टर क्यों नहीं लगाया और न ही कभी लगाया जाएगा।
मैं तो कहता हूं जो भी अफसर-पत्रकार भ्रष्टाचार में लिप्त हो, तत्काल गैंगेस्टर से सख्त कानून लगाइए। लेकिन अपने अफसरों को तनिक समझाइए। नादिरशाह बनने का वहम दिल से निकाल दें, अन्यथा हमारे जैसे पत्रकारों को भी जेल भेजिए या फांसी पर लटकवा दीजिये। लेकिन सत्य की राह से आपका सरकारी तंत्र अंतिम सांस तक एक इंच भी डिगा न पाएगा। सत्ताधीश ये समझ लें कि अगर बेबाक पत्रकारिता के लिए अघोषित आपातकाल जैसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी तो कड़ा प्रतिकार होगा। अभी मेरे जैसे न जाने कितने रीढ़वादी पत्रकारों ने घुटने नहीं टेके हैं और न ही कभी टेकेंगे.
देखें संबंधित वीडियो-
लखनऊ के पत्रकार मनीष श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
FAREED SHAMSI
September 3, 2019 at 10:23 pm
मिडडे मील के नाम पर सभी जगहा ये ही हाल है, डरो मत जायसवाल जी, आप निरंतर अपना कार्य ईमानदारी के साथ करते रहिए कोई भी आपका बाल बांका नहीं कर पाएगा और पत्रकारों पर जो मुकदमे लगते हैं वह सबको पता है उनके पीछे की असलियत क्या होती है तो इसलिए आप बिल्कुल भी ना डरे निर्भीक होकर अपने कार्य को अंजाम दें।
प्रकाश
September 4, 2019 at 4:56 pm
ये मिडे मिल घोटाला है जिसमें हो सकता है डीएम ने काफी पैसा बनाया है इसलिए इन डीएम साहब की जांच भी सीबीआई से होनी चाहिए क्योंकि लगता है डीएम अपने घोटाले को छुपाना चाहता है इस केस से ये ही प्रतित होता है।
Abhishek jai mishra
September 4, 2019 at 5:08 pm
बेबाक लिखावट ही असली पत्रकार की पहचान होती है। 8 साल ले करियर में पहली बार है कि आपात काल जैसा महसूस हुआ।
लेकिन क्या डर है, नहीं
लेकिन क्या कोई रुकेगा, नही
ये तो होता आया है, आगे भी होता रहेगा। अफसरों को ही घुटनो पर लाएंगे। जो सच है वही लिखेंगे।
अभिषेक जय मिश्रा
अमर उजाला मुरादाबाद