लखनऊ : तमाम लोगों के मन में पिछले दस दिनों से यह सवाल घूम रहा था कि आखिर हिन्दुस्तान को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने पाबंदी लगाई क्यों? इस सवाल का स्पष्ट जवाब न तो एचसीबीएल दे रहा है, न रिजर्व बैंक ने ही कोई खुलासा किया। लेकिन अब जवाब मिल गया है। कैनविज टाइम्स के हाथ लगे कुछ दस्तावेजों के मुताबिक एचसीबीएल पर सहारा समूह के साथ मिलकर उसके लिए काला धन सफेद करने के कारण पाबंदिया लगाई गई हैं। यही नहीं, रिजर्व बैंक ने बकाएदा नोटिस देकर एचसीबीएल का बैंकिंग लाइसेंस रद किए जाने की कार्यवाही भी शुरू कर दी है।
रिजर्व बैंक ने कुछ सन्दिग्ध ट्रांजेक्शंस के पाए जाने पर एचसीबीएल को अपने राडार पर ले लिया। छानबीन शुरू हुई तब पता चला एचसीबीएल बड़े पैमाने पर सहारा समूह के सन्दिग्ध लेनदेन में शामिल हुआ है। हजारो करोड़ रुपये इधर से उधर कर दिए गए। जिसके लिए एचसीबीएल की बैंकिंग सुविधा का तो इस्तमाल हुआ ही, साथ ही पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में मौजूद एचसीबीएल के चालू खाते का भी जमकर इस्तमाल किया गया। बैंक अपने ही यहां हुए तमाम सन्दिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट को देने में भी असफल रहा। जबकि मनी लांड्रिंग निरोध अधिनियम-2002 में उल्लेखित एंटी मनी लांड्रिंग मानकों के तहत रिपोर्ट देना नितांत जरूरी था।
आरबीआई ने पाया कि 1 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2013 तक 100 करोड़ से लेकर 700 करोड़ रुपये तक की रकम सहारा इंडिया ग्रुप द्वारा एचसीबीएल के पीएनबी में स्थित चालू खाते में जमा कराई गई। वह भी तब, जबकि 31 मार्च 2013 को एचसीबीएल की बैलेंस शीट का आकार मात्र 223.07 करोड़ का था। वर्ष 2013 की आखिरी तिमाही में सबसे अधिक रकम जमा करने वाले टॉप 50 में से ज्यादातर जमाकर्ता सहारा इंडिया ग्रुप के कर्मचारी व सहारा के फर्म मालिकों के परिवारी जन थे। इसके साथ ही आरबीआई ने एचसीबीएल का व्यापार व्यवहार एकमात्र कॉर्पोरेट कम्पनी से होने के कारण इसके को-ऑपरेटिव स्वरूप का समाप्त हो जाना बताते हुए, पूछा है कि इन तमाम वजहों को दृष्टिगत रखते हुए उसका बैंकिंग लाइसेंस क्यों नहीं रद किया जाना चाहिए। 13 अप्रैल को आरबीआई की ओर से भेजे गए इस कारण बताओ नोटिस का जवाब एचसीबीएल को 18 मई तक देना है।
लखनऊ के हिंदी दैनिक कैनविज टाइम्स के रिपोर्टर लेखक चंदन श्रीवास्तव से संपर्क : chandan2k527@yahoo.co.in