Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पत्रकारिता में आज 80 फीसदी स्‍टेनोग्राफर हैं जो धीरे-धीरे कॉरपोरेट स्‍टेनोग्राफर होते जा रहे हैं : पी साईनाथ

Abhishek Srivastava : हिरोशिमा-नगासाकी पर बम गिराए जाने के बाद The Times of India ने अपने 11 नंबर पेज पर शीर्षक लगाया था, “Excellent results in raid on Nagasaki” और इसके नीचे एक और ख़बर थी जिसका शीर्षक था, “Uranium shares go up 90 points after Hiroshima.” इस घटना पर पूरी दुनिया में वाइट हाउस से जारी प्रेस रिलीज़ आधारित जो पत्रकारिता की गई, उसने पत्रकारिता में उसी वक्‍त दो स्‍कूल बना दिए- एक पत्रकारों का और दूसरा स्‍टेनोग्राफरों का। आज पत्रकारिता में 80 फीसदी स्‍टेनोग्राफर हैं जो धीरे-धीरे कॉरपोरेट स्‍टेनोग्राफर होते जा रहे हैं। ये कहना है जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ।

#PSainath

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिल्ली के कॉन्‍सटिट्यूशन क्‍लब में आयोजित एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान पी. साईनाथ ने पत्रकारिता को लेकर कई अन्य बातें भी बताईं, जिसमें से एक यूं हैं…. हिरोशिमा-नगासाकी पर अमेरिकी बमबारी का जश्‍न मनाते हुए जब न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के (अमेरिकी सैन्‍य विभाग प्रायोजित) पत्रकार विलियम लॉरेन्‍स ‘बम के सौंदर्य की तुलना बीथोवन की सिम्‍फनी के ग्रैंड फिनाले’ से और बमबारी से पैदा हुए ‘मशरूम की आकृति के धुएं के गुबार की तुलना स्‍टैच्‍यू ऑफ लिबर्टी’ से कर रहे थे, ठीक उस वक्‍त सिर्फ एक फ्रीलांसर पत्रकार था जिसने इस घटना का सच सामने लाने के लिए अपने खर्च पर हिरोशिमा जाने का फैसला किया। ऑस्‍ट्रेलिया के इस पत्रकार का नाम था विल्‍फ्रेड बर्चेट। उसकी बेहतरीन रिपोर्टिंग ‘द डेली एक्‍सप्रेस’ में छपी।

विल्‍फ्रेड बर्चेट की रिपोर्टिंग का वैश्विक मीडिया के समक्ष खण्‍डन करने के लिए टोक्‍यो में अमेरिकी मैनहैटन प्रोजेक्‍ट के ब्रिगेडियर जनरल थॉमस फैरेल ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेन्‍स रखी। बर्चेट को पता चला कि प्रेस कॉन्‍फ्रेन्‍स उसी के ऊपर है, तो वह वहां पहुंच गया। उसने ब्रिगेडियर से कुछ सवाल किए। सवालों से असहज होकर ब्रिगेडियर ने उससे कहा कि वह जापान के साम्राज्‍यवादी प्रोपेगेंडा का शिकार हो गया है। बाहर निकलते ही एलाइड ताकतों के प्रमुख के निर्देश पर उसका पासपोर्ट ज़ब्‍त कर लिया गया, उसे हिरासत में ले लिया गया और हिरोशिमा-नगासाकी बमबारी की रिपोर्टिंग पर प्री-सेंसरशिप लगा दी गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

छूटने के बाद दोबारा जब बर्चेट ने पासपोर्ट बनवाया तो फिर से गुप्‍तचर एजेंसियों ने उसे चुरा लिया। इसके बाद वह आजीवन बिना पासपोर्ट के रहा। बर्चेट ने अपनी आत्‍मकथा ‘पासपोर्ट’ के नाम से लिखी और हिरोशिमा में लगे विकिरण के असर से बेहद गरीबी में जीते हुए बगैर किसी नागरिकता के उसका निधन हुआ। उधर, अमेरिकी सैन्‍य विभाग द्वारा प्रायोजित न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के पत्रकार को दुनिया के सामने बम का सौंदर्य बखान करने के लिए पुलित्‍ज़र पुरस्‍कार से नवाज़ा गया। तभी से दुनिया भर की पत्रकारिता में दो ध्रुव कायम हो गए- लॉरेन्‍स की और बर्चेट की पत्रकारिता। अब आपको तय करना है कि आप क्‍या बनना चाहेंगे- विलियम लॉरेन्‍स या विल्‍फ्रेड बर्चेट?

(P Sainath, कॉन्‍सटिट्यूशन क्‍लब, दिल्‍ली, 30.08.2014)

Advertisement. Scroll to continue reading.

पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

इसे भी पढ़ सकते हैं…

Advertisement. Scroll to continue reading.

Inequality the Fastest Growing Sector in India : P Sainath

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement