लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया के साथ एक समस्या यह है कि चारों स्तंभों के बीच यही इकलौता है जो मुनाफा खोजता है। भारत का समाज बहुत विविध, जटिल और विशिष्ट है लेकिन उसके बारे में जो मीडिया हमें खबरें दे रहा है, उस पर नियंत्रण और ज्यादा संकुचित होता जा रहा है। आपका समाज जितना विविध है, उतना ही ज्यादा एकरूप आपका मीडिया है। यह विरोधाभास खतरनाक है। बीते दो दशकों में हमने पत्रकारिता को कमाई के धंधे में बदल डाला है। यह सब मीडिया के निगमीकरण के चलते हुआ है। आज मीडिया पर जिनका भी नियंत्रण है, वे निगम पहले से ज्यादा विशाल और ताकतवर हो चुके हैं।