Sangam Pandey-
मेरे द्वारा संपादित ये दो किताबें पिछले महीने ही प्रकाशित हुई हैं। घनश्याम दास बिरला वाली किताब का नाम कुछ ऐसा है कि यह किसी को अभिनंदन ग्रंथ सरीखी मालूम दे सकती है, पर वैसा बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि यह कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के लिए किया गया एक विस्तृत शोधकार्य है, जिसमें बिरला घराने के पूर्वजों से लेकर उनके शुरुआती व्यापार और फिर शीर्ष उद्योगपति बनने तक की दास्तान को तथ्यों के साथ पूरी प्रामाणिकता में पेश किया गया है।
गाँधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं से 47 के पहले और 47 के बाद बिरला के रिश्तों की शक्ल क्या थी उसे इस पुस्तक के जरिए स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। लेकिन इन सबसे ज्यादा दिलचस्प हैं मारवाड़ियों का बिजनेस स्ट्रक्चर, जिसमें बिरादरी का पहलू बहुत अहम था। बिरादरी का अनुशासन कायम रखने की कई कहानियाँ इसमें काफी पठनीय हैं। कुल मिलाकर यह किताब एक उपन्यास की मानिंद है, जिसे पढ़ना एक पूरे दौर से रूबरू होना है।
तसलीमा नसरीन की किताब हंस में पिछले दस सालों से छप रहे उनके स्तंभ के चयनित लेखों का संग्रह है, ‘जो प्रायः किसी तात्कालिक अनुभव या अनुभूति पर लिखे गए हैं। जिसमें कोई सार्वजनिक विडंबना, कोई निजी दुख, कोई अंतरराष्ट्रीय प्रसंग, कोई यात्रा विवरण, कोई स्मृति आदि काफी बिखरे हुए विषय शामिल हैं। लेकिन तसलीमा नसरीन की जीवन दृष्टि वो चीज है जो इन बिखरे विषयों को आपस में जोड़ देती है। साफ दिखता है कि तीस साल के निर्वासित जीवन में जहाँ एक ओर उन्होंने बहुत कुछ खोया है वहीं उनकी दृष्टि उत्तरोत्तर अधिक ठोस होती गई है।
यह भारतीय उपमहाद्वीप में करियर बनाने के काम आने वाली उस हुनर-नुमा बौद्धिकता से काफी भिन्न है जो कई तरह के अंतर्विरोधों को पचाए रखते हुए विद्वता में मशगूल रहती है, और जिसमें कहन और जीवन के साम्य की कोई बाध्यता नहीं होती। तसलीमा नसरीन का जीवन उनके विचारों का प्रमाण है। और यह पुस्तक पिछले वर्षों के दौरान रहे उनके जीवन के ब्योरों का ही संकलन है।’
दोनों ही किताबें ऑनलाइन खरीदी जा सकती हैं।