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सरकारी कारनामों की खबरों से भरे हैं आज के अखबार… आज की दो खबरों से समझिये, प्रधानमंत्री अपने विरोधियों को कैसे देखते हैं! 

संजय कुमार सिंह-

अखबारों की समीक्षा : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा, शब्द (वन) के डिक्सनरी अर्थ का प्रयोग करें!

चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जो हुआ आप जानते हैं। कुल 36 वोट में आठ खारिज हो गये और सत्तारूढ़ भाजपा का उम्मीदवार विजयी घोषित कर दिया गया। नोटबंदी का मामला हो या अनुच्छेद 370 हटाने का, सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सुनवाई देर से होती रही है और इतनी देर हुई है कि मामला ऐकेडमिक महत्व का ही रह जाने जैसी बातें भी हो चुकी हैं। उसके बाद आये फैसले अगर फाइलों में दर्ज होने के लिए ही हों तो इलेक्टोरल बांड के एक बड़े मामले में देर से ही सही, सरकार के खिलाफ फैसला आया है। इससे साफ हो गया है कि सरकार ने चुनावी चंदा पाने के लिए असंवैधानिक उपाय किये थे। इसके तुरंत बाद चंडीगढ़ चुनाव का मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में आ गया और फैसले से पहले, सुनवाई के दौरान जो चर्चा हुई उसके मद्देनजर प्रधानमंत्री ने कल जो कहा वह सुप्रीम कोर्ट और पीआईएल के प्रति सरकार का नजरिया बताता है। 

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इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में छपी खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने कल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल में कलकी धाम का शिलान्यास किया। शीर्षक है, संत नए मंदिर बना रहे हैं, मैं राष्ट्र का पुनर्निर्माण कर रहा हूं। इस खबर का उपशीर्षक है, अगर सुदामा ने कृष्ण को चावल दिया तो सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल होती, रिश्वत लेने का फैसला आता। इस मुद्दे को स्पष्ट करने के लिए मैं पूरा वाक्य लिख देता हूं जो इस प्रकार था, “…. आज के युग में सुदामा श्रीकृष्ण को एक पोटली में चावल देते वीडियो निकल आती, सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल हो जाती और जजमेंट आता कि भगवान कृष्ण को भ्रष्टाचार में कुछ दिया गया और भगवान कृष्ण भ्रष्टाचार कर रहे थे।” यहां पीआईएल, इसकी जरूरत अथवा लाभ के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। संघ समर्थकों ने इसका कब, कहां कितना कैसा उपयोग किया है वह भी मुद्दा नहीं है। 

जांच का तो यह हाल है कि जज लोया की मौत की जांच नहीं हुई और जजों को ईनाम देने के मामले सर्वविदित है। पीआईएल पर प्रधानमंत्री की सोच और कृष्ण-सुदामा का उदाहरण महत्वपूर्ण है। खासकर इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद। इस आलोक में इलेक्टोरल बांड के लिए की गई व्यवस्था तथा उसके पक्ष में सरकारी दलील पढ़ना-जानना भी दिलचस्प होगा। लेकिन आज का मुद्दा यह नहीं है। मुद्दा इस संदर्भ में आज की बाकी खबरें हैं।

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टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को सिंगल कॉलम की एक छोटी खबर के रूप में छापा है जिसका शीर्षक है, सुदामा के उपहार को आज रिश्वत के रूप में देखा जाता। मुझे पता नहीं है कि यहां ‘आज’ से प्रधानमंत्री का क्या तात्पर्य है पर जब उन्होंने नाम लिखा सूट उपहार लिया था और उसे सिलवाकर पहना था तब भी आलोचना हुई थी और वह तकरीबन उनके कार्यकाल की शुरुआत का मौका था। अब वे अपने किस मित्र के किस उपहार की बात कर रहे हैं, जाने बगैर कुछ कहना ठीक नहीं होगा पर उपहार को ‘पोटली का चावल’ और सीसीटीवी के उसके फुटेज के आधार पर पीआईएल का मामला चंडीगढ़ चुनाव के नतीजों के संदर्भ में नहीं हो सकता है और वहां चुनाव अधिकारी ने ‘पोटली का चावल’ नहीं कैमरे के सामने कुर्सी सौंपी है। इसे इसी ढंग से लिया जाना चाहिये प्रधानमंत्री की कार्यशैली यही रही है कि वे कोई सवाल या बाधा पसंद नहीं करते हैं और नहीं मानते हैं कि वे कुछ गलत कर सकते हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि ये यह भी नहीं मानते हैं कि कोई दूसरा कुछ अच्छा या सही करता है। 

ऐसे में आज के अखबारों के शीर्षक बताते हैं कि देश का हाल कितना बुरा है। किसानों की मांग नहीं सुनी जा रही है उसका हल निकालने की कोशिशों की चर्चा नहीं है और ना ही वार्ता नाकाम हो जाने की आलोचना। कहा जा सकता है कि सरकार की छवि ऐसी नहीं रह गई है कि उसकी बातों पर यकीन किया जाये। इसका कारण मोदी की गारंटी का प्रचार और पहले के वादा का जुमला हो जाना भी हो सकता है। ऐसे में जरूरी नहीं है कि किसानों की सारी मांगने तुरंत मांगने लायक हों ही और चूंकि सरकार का भरोसा नहीं है इसलिए किसानों की मांग नहीं निपट रही है। अखबार इसे ऐसे पेश करने की बजाय किसानों के खिलाफ माहौल बताने में लगे हैं और शायद इसी क्रम में आज इंडियन एक्सप्रेस ने पंजाब के किसान लिखा है। दूसरे अखबारों ने किसान और किसान यूनियन लिखा है तब शीर्षक में पंजाब लिखने का कारण समझना मुश्किल नहीं है। 

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आज के अखबारों की खबरों की चर्चा करने से पहले कुछ शीर्षक का उल्लेख करना चाहूंगा। ज्यादातर खबरें दूसरे अखबारों में भी है, कुछ मामले में लगभग इसी शीर्षक से लेकिन मैं एक ही शीर्षक लूंगा या फिर वो जो अलग दिखते हैं और अलग अर्थ में हैं जैसे पंजाब के किसान और किसान यूनियन। इस चर्चा में आज बताउंगा का कौन सी खबर कैसे खास है। 

द हिन्दू 

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1. “सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा, वन (फॉरेस्ट) के डिक्सनरी अर्थ का प्रयोग किया जाये” 

2. मेयर चुनाव के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधियों की खरीद-बिक्री को मुद्दा बनाया 

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3. केंद्र-केरल सरकार का वार्ता नाकाम; सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई करेगी 

4. केजरीवाल ने उत्पाद शुल्क नीति में ईडी के छठे सम्मन को नजरअंदाज किया, कहा कानून के अनुसार नोटिस का जवाब दे रहा हूं।   

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टाइम्स ऑफ इंडिया 

1. सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव के बैलट पेपर मांगे, चुनाव अधिकारी से कहा उनके खिलाफ मुकदमा चल सकता है 

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2. सुप्रीम कोर्ट ने संदेशखाली मामले की जांच कराने की मांग करने वाली पीआईएल को खारिज किया कहा, इसकी तुलना मणिपुर से न करें

3.अखिलेश ने कहा, सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिये जाने से पहले राहुल की यात्रा में शामिल नहीं होउंगा  

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4. किसान यूनियनों ने एमएसपी और फसलों के विविधीकरण को जोड़ने की सरकार की पेशकश खारिज की 

इंडियन एक्सप्रेस 

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1. पंजाब के किसानों ने सरकार की पेशकश खारिज की, दिल्ली मार्च फिर शुरू करेंगे 

2. छह महीने की छूट छह साल चली, उल्लंघनों के साथ 100 परियोजनाएं क्लीयर 

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3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बैलेट पेपर कोर्ट में लायें, फिर से गिनें  

4. संत नये मंदिर बना रहे हैं, मैं राष्ट्र निर्माण कर रहा हूं : प्रधानमंत्री मोदी  

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हिन्दुस्तान टाइम्स 

1. अमेठी में आमना-सामना जब राहुल की यात्रा हारे हुए दुर्ग में पहुंची

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2. सर्वोच्च अदालत ने सरकार से कहा, वन की परिभाषा न बदले

3. अधिकारों का दुरुपयोग : कोचर की गिरफ्तारी पर कोर्ट ने कहा 

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द टेलीग्राफ 

1. तीन साल पुराने एम्स का उद्घाटन करेंगे मोदी 

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2. शाहजहां मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की

अभी कुल जमा दो ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के खिलाफ है और प्रधानमंत्री सुदामा को कृष्ण के उपहार की बात करने लगे हैं तो आप समझ सकते हैं कि, “ना खाऊंगा ना खाने दूंगा” की उनकी घोषणा कितनी खोखली है और क्यों भारतीय जनता पार्टी को वाशिंग मशीन पार्टी कहा जाने लगा है या लोग याद दिलाते हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का दावा करने वाले ने न सिर्फ भाजपा को कांग्रेस युक्त बना लिया है बल्कि शब्दों के अर्थ भी खुद तय कर लिये हैं। जाहिर है, यह सब बहुमत के कारण हो पाया है और नहीं होना चाहिये था। मुझे लगता है कि स्थिति बहुत खराब है और जो है उसमें निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं और भाजपा येन-केन प्रकारेण जीत भी सकती है। इसलिए उसपर प्रतिबंध लगना चाहिये लेकिन अभी वह मुद्दा नहीं है। 

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अभी मुद्दा चुनाव है और नमूना चंडीगढ़ के मेयर का चुनाव है। इसलिए भी कि प्रधानमंत्री ने इसके खिलाफ पीआईएल पर तंज कसा है। यह अलग बात है कि उनके समर्थक भी पीआईएल करते रहते हैं। लेकिन 36 में आठ वोट खारिज किये भी जाने थे तो परिणाम नहीं घोषित किया जाना चाहिये था खारिज किये गये वोटो की संख्या के मद्देनजर पुनर्मतदान का आदेश दिया गया होता तो स्थिति दूसरी होती। अब जब मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया तो दल-बदल से बहुमत की दिखाने की कोशिश और गलत है तथा सब पकड़ा गया है। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार हुआ है। पहले भी हुआ है, मीडिया ने कायदे से रिपोर्टिंग नहीं की, सुप्रीम कोर्ट ने अपने स्तर पर स्वमेव मामला सुनने के लिए हाथ में नही लिया इसलिए यह स्थिति बनी जिसे नजरअंदाज करना सुप्रीम कोर्ट के लिए भी संभव नहीं रहा और सरकार की छवि को भारी नुकसान हुआ। 

आज की तीसरी खबर, “केंद्र-केरल सरकार की वार्ता नाकाम; सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई करेगी”, है। यहां मुद्दा यह है कि केरल सरकार ने केंद्र पर आरोप लगाया है कि वह उसके वित्तीय मामलों में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप करता है। इस मतभेद को दूर करने के लिये दोनों पक्षों के बीच वार्ता का हल नहीं निकला क्योंकि जैसा बताया गया है, केंद्र सरकार चाहती है कि 11,000 करोड़ रुपये के बदले उसके खिलाफ याचिका वापस ले ली जाये और जैसा कि केंद्र सरकार के वकील ने कहा है, यह संभव नहीं है कि (आप यानी केरल) वार्ता करें और मुदमेबाजी भी। दूसरी ओर, केरल ने कहा है कि जो 11,000 करोड़ देने की बात है वह तो उसका है ही। हालांकि, केंद्र के वकील ने कहा है कि वे इसे बढ़ाकर 48,049 करोड़ रुपये भी कर सकते हैं। इस मामले में इन तथ्यों के बाद किसी टिप्पणी की जरूरत नहीं रह जाती है। 

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मैं लिखता-बताता रहा हूं कि राहुल गांधी, उनकी न्याय यात्रा और कांग्रेस की खबरें अमूमन पहले पन्ने पर नहीं छपती है। आज जब शीर्षक इंडिया गठबंधन के खिलाफ है तो खबर पहले पन्ने पर है। अखिलेश ने कहा, सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिये जाने से पहले राहुल की यात्रा में शामिल नहीं होउंगा – टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में शीर्षक है, अमेठी में आमना-सामना जब राहुल की यात्रा हारे हुए दुर्ग में पहुंची। कहने की जरूरत नहीं है कि स्मृति ईरानी का कल अमेठी में होना बहुत कुछ कहता है पर खबर वह सब नहीं है। जो है वह इतना ही है कि इंडिया गठबंधन या न्याय यात्रा की खबर भी पहले पन्ने पर है। 

गिरफ्तारी – अधिकारों का दुरुपयोग

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आज की एक और महत्वपूर्ण खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में है। इसका शीर्षक है, “अधिकारों का दुरुपयोग : कोचर की गिरफ्तारी पर कोर्ट ने कहा”। आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक और सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की गिरफ्तारी पर बांबे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह दिमाग लगाये बगैर कानून को वाजिब सम्मान दिये बिना की गई कार्रवाई है जो अधिकारों के दुरुपयोग की तरह है। आप जानते हैं कि फिल्म अभिनेता शाहरुख खान  बेटे को भी एक मामले में गिरफ्तार किया गया और उसे कई दिन हिरासत में रहना पड़ा जबकि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं था। 10 साल में देश भर में ऐसे कई मामले मिलेंगे जबकि सरकार ने अपने जरूरी काम नहीं किये हैं उसकी सूची अलग है। फिर भी राज्यों के लिए नीति बनाने के मामले में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जेल में हैं। सब सरकार के विरोधियों का मामला है। सरकार के समर्थकों के खिलाफ कोई नहीं। यहां तक कि एक डिजाइनर का पैसा मार जाने के आरोपी सरकार समर्थक पत्रकार को गिरफ्तार किया गया तो उसे हफ्ते भर में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई जबकि रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली से उत्तर प्रदेश गये पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार किया गया तो साल भर बाद जमानत मिली और उसके बाद भी रिहा होने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लग गया।  

आज की खबरों में एक और खबर की चर्चा जरूरी है। मीडिया में संदेशखाली की ज्यादतियों का जिक्र खूब हो रहा है। कल ही मैं व्हाट्सऐप्प पर आया एक वीडियो देख रहा था जो पता नहीं किस चैनल अथवा यू ट्यूब का था और एंकर रिपोर्टर कौन थे पर पुरुष रिपोर्टर महिला एंकर को जो आरोप बता  रहा था वही सार्वजनिक प्रदर्शन के योग्य नहीं थे। सुनकर लगा कि ऐसा एक बार से ज्यादा हुआ तो कैसे हुआ और तब सब लोग कहां थे। जो भी हो, आज खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई या अदालत की निगरानी में एसआईटी से कराने की अपील को खारिज कर दिया। मामला तृणमूल पार्टी के नेता शेख शाहजहां से संबंधित है जो ईडी के छापे और ईडी टीम पर हमले के बाद से फरार हैं। लोगों का कहना है कि इसके बाद ही वहां की महिलाओं को उनके खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत हुई। 

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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार एनसीडब्ल्यू की प्रमुख रेखा शर्मा ने कहा है कि उन्हें संदेशखाली की महिलाओं से 18 शिकायतें मिली थीं। इनमें दो बलात्कार की शिकायत हैं। खबर में नहीं बताया गया है कि यह कब की बात है और उन्होंने तभी मामला सार्वजनिक क्यों नहीं किया या शिकायत पर क्या कार्रवाई की। शर्मा ने इन शिकायतों को संदेशखाली थाने को ही दे दिया है। टीएमसी ने आरोप लगाया है कि एनसीडब्ल्यू का दौरा राजनीति से प्रेरित था। दूसरी ओर, राज्य पुलिस ने इलाके से रिपोर्टिंग कर रहे एक टीवी पत्रकार को गिरफ्तार किया है और भाजपा ने इसपर तीव्र प्रतिक्रिया जताई है।  

कुल मिलाकर, आज के अखबार सरकारी मनमानी की खबरों से भरे हुए हैं। इनमें ज्यादातर खबरें अदालतों की हैं और अखबारों में पहले ही छपी होतीं तो लोगों को परेशान नहीं होना पड़ता। सरकार को भी मनमानी की आजादी नहीं मिलती लेकिन वह अलग मुद्दा है। फिर भी चर्चा जरूरी थी क्योंकि प्रधानमंत्री ने पीआईएल (जनहित याचिका) पर जो कहा वह मनमानी के अधिकार की उनकी चाहत और बाकी खबरों से उनके समर्थकों की कार्यशैली और व्यवस्था की हालत का पता चलता है। इसमें चुनाव लड़ने और जीतने के लिए सरकार को अगर अपने काम गिनाने चाहिये तो वह (खासकर प्रधानमंत्री) विपक्ष की आलोचना करते हैं और वह भी निराधार। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर छपी ऐसी ही एक खबर के शीर्षक का अंश है, कांग्रेस का अस्तित्व सिर्फ एक परिवार के लिए है। एक परिवार से प्रधानमंत्री का संदर्भ चाहे जो हो उन्हें संघ परिवार के बारे में बताना चाहिये। प्रेस कांफ्रेंस करते तो उनसे पूछा जाता। पर वे सिर्फ मन की बात करते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में सरकारी मंच का दुरुपयोग कर रहे हैं तो करें लेकिन मीडिया भी उनकी सेवा में बिछ गया है। पता नहीं यह संघ परिवार के लिए है या सिर्फ उनके लिये। आज एक मामला अरविन्द केजरीवाल और ईडी की जांच व समन का भी है। इसकी चर्चा फिर कभी।     

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