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प्रियंका टिक्कू को गद्दी पर बिठाकर पीटीआई की सत्ता अपने हाथ में रखना चाहते हैं एमके राज़दान!

यशवंतजी
नमस्कार,

आशा करती हूँ आप कुशल होंगे. Bhadas4media पर प्रकाशित PTI की एक स्टोरी पढ़ी. काफी सटीक थी, पर ये पूरी कहानी नहीं है. पूरी कहानी कुछ और है बल्कि यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि समझिए एक तरह से PTI की कब्र खोदी जा रही है और उसे सुपुर्दे खाक प्रियंका टिक्कू ही करेंगी. दरअसल प्रियंका टिक्कू पीटीआई के सीईओ और एडिटर इन चीफ एम के राज़दान की बहुत ख़ास हैं और ये कोई गुप्त बात भी नहीं है. राज़दान साहब पीटीआई को अपनी जागीर समझते हैं और जब पीटीआई बोर्ड ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया तो वे प्रियंका टिक्कू को वहां बिठाना चाहते है. ये बात पीटीआई में सबको पता है पर अपनी नौकरी किसको प्यारी नहीं होती. मैं ये सब आपको इसलिए लिख पा रही हूँ क्योंकि मैं वहां से अब इस्तीफ़ा दे चुकी हूं.

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यशवंतजी
नमस्कार,

आशा करती हूँ आप कुशल होंगे. Bhadas4media पर प्रकाशित PTI की एक स्टोरी पढ़ी. काफी सटीक थी, पर ये पूरी कहानी नहीं है. पूरी कहानी कुछ और है बल्कि यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि समझिए एक तरह से PTI की कब्र खोदी जा रही है और उसे सुपुर्दे खाक प्रियंका टिक्कू ही करेंगी. दरअसल प्रियंका टिक्कू पीटीआई के सीईओ और एडिटर इन चीफ एम के राज़दान की बहुत ख़ास हैं और ये कोई गुप्त बात भी नहीं है. राज़दान साहब पीटीआई को अपनी जागीर समझते हैं और जब पीटीआई बोर्ड ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया तो वे प्रियंका टिक्कू को वहां बिठाना चाहते है. ये बात पीटीआई में सबको पता है पर अपनी नौकरी किसको प्यारी नहीं होती. मैं ये सब आपको इसलिए लिख पा रही हूँ क्योंकि मैं वहां से अब इस्तीफ़ा दे चुकी हूं.

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प्रियंका टिक्कू की वजह से सिर्फ मैं ही नहीं, पिछले डेढ़ साल में 9-10 लोगों ने पीटीआई छोड़ा है. टिक्कू, विदेश मंत्रालय कवर करती हैं और आप इस मंत्रालय के किसी भी रिपोर्टर से उसके बारे में पूछ सकते हैं. उसका पूरा पत्रकारिता का तजुर्बा करीब 19 साल का है जिसमे 5 साल उसने कोई काम ही नहीं किया, क्योंकि उस दौरान वह अपने पति के साथ अमेरिका में थी. शायद आपको भी पता होगा कि पीटीआई में कई एडिटर लेवल के लोग हैं जिनका तजुर्बा प्रियंका टिक्कू से कई गुना ज़्यादा है.

पीटीआई में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने वहां 20 साल से ज़्यादा काम किया है और रिपोर्टिंग व डेस्क दोनों का उनको खूब तजुर्बा है पर राज़दान साहब को तो पीटीआई से कोई मतलब नहीं है, उनको तो अपना आदमी बैठना है जिससे उनकी सत्ता बनी रहे, चाहें वहां लोग नौकरी छोड़ कर जाते रहें और संस्थान बर्बाद ही क्यों ना हो जाए. प्रियंका अपने रिपोर्टरों पर ऐसे चिल्लाती है जैसे वो उनके ज़र खरीद ग़ुलाम हों. मैंने भी काफी सुना, पर जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई, तो इस्तीफ़ा दे दिया. ज़रा सोचिये, आपका ब्यूरो चीफ आपको दिल्ली चुनाव कवर करने के लिए बोले और उसको ये भी न मालूम हो कि दिल्ली में कितनी विधान सभा की सीटें हैं तो आपको कैसा लगेगा. कुछ ऐसा ही हो रहा है पीटीआई के नेशनल ब्यूरो में.

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हालात तो ये हैं कि नेशनल ब्यूरो से करीब करीब सारे अच्छे रिपोर्टर नौकरी छोड़ चुके हैं और उसका कारण मैडम प्रियंका हैं. यशवंतजी, मेरा आप से बस इतना विनम्र निवेदन है कि अगर आप ये सच भी भड़ास पर डाल देंगे तो आप मुझ जैसे उन लोगों पर बड़ा एहसान करेंगे जिन्होंने अपना चैन और सुख इस महिला की वजह से खोया था. आपने भी अपने प्रोफेशनल करियर में ऐसे लोगों को देखा होगा जो सिर्फ चाटुकारिता कर कर के आगे बढ़ते हैं और उनको आगे बढ़ाने के लिया कई लोगों को या तो किनारे कर दिया जाता है या साफ़ कर दिया जाता है. बस हमारा भी ऐसा ही कुछ दर्द है और मेरा पूरा विश्वास है की आप इस को पूरी तरह से समझेंगे. एक बार फिर यह आशा करते हुए आप से विदा लेती हूँ की आप हमारी कहानी भी अपनी वेबसाइट के द्वारा जनता के सामने लाएंगे.  एक और निवेदन है कि अगर आप मेरा नाम गुप्त रखेंगे तो बड़ी कृपा होगी.

धन्यवाद

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एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

मूल खबर….

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पीटीआई के एडीटर इन चीफ पद के लिए प्रियंका टिक्कू मुख्य दावेदार

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