यशवंत सिंह-
ये मेरे गाँव के बग़ल का पड़ोसी गाँव है। पढ़ लीजिए। महामारी ने गाँवों को श्मशान में तब्दील करना शुरू कर दिया है। गाँव वालों के लिए न अस्पताल है न सलाह है न डाक्टर है और न कोई शासन प्रशासन है। ये अपनी नियति पर छोड़ दिए गए हैं। मरें तो मरें। जिएँ तो जिएँ।
Lko- उत्तरप्रदेश के गांवों में स्थिति गम्भीर-
गाजीपुर जिले से ख़बर-
ग्राम प्रधान ने DM को लिखा पत्र –
मेरे ग्रामसभा में कोरोना से मरने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है, अबतक 16 की मौत- प्रधान !!
इस लिस्ट को ध्यान से देखिए। ज़्यादातर मरने वालों के नाम आर्थिक रूप से कमजोर / गरीब तबके के हैं जो दिहाड़ी न करें तो खाना न मिले। मतलब एक तरफ़ भूख है, दूसरी तरफ़ मौत!
पंचायत चुनावों के बाद गांवों की स्थिति बहुत भयावह है। वहां न जांच है, न डाक्टर है न इलाज है। बेचारे झोलाछाप जरूर उनके लिए मददगार बने हुए हैं। बाकी तो अनेक गांव श्मशान में तब्दील हो गए हैं। सौ से ज्यादा प्रधान पद के प्रत्याशी स्वर्गवासी हो गए हैं। यहां दोबारा चुनाव हो रहा हैं। अनेक चुने हुए प्रधान और जिला पंचायत सदस्य चले गए हैं। चार विधायक भी पंचायत चुनावों की भेंट चढ़ गए हैं। सब कुछ भगवान भरोसे है।
यूपी के एक अन्य गाँव की कहानी पढ़िए-
ब्रजेश मिश्रा-
गांव, ग्रामीण, मजरा, पुरवा में मौत का नंगा नाच चल रहा है। उत्तरी लखनऊ की सीमा से लगे 2 गांव में हफ्ते भर के भीतर 125 लोग मारे गए। घर-घर चारपाई बिछी है। झोलाछाप इलाज है। न टेस्ट है न दवा। और न कोई पूछने वाला। बुखार खांसी सीने में जकड़न की शिकायत करते लोग मर रहे हैं। गांव-गांव कोरोना है।