उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आर्थिक अपराधियों के भागने को ‘राष्ट्रीय चलन’ बताने की सीबीआई की दलील ठुकराते हुये कहा कि विजय माल्या सहित कई ऐसे व्यक्तियों के देश से भाग जाने की वजह से ही इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उच्चतम न्यायालय ने आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम को जमानत देते हुये कहा कि अन्य अपराधियों के आचरण की वजह से एक आरोपी को जमानत देने से इंकार करने का कोई एक समान फार्मूला नहीं हो सकता है।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में दो महीने हिरासत में बिताने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया लेकिन वह अभी रिहा नहीं हो सकेंगे क्योंकि इससे संबंधित धन शोधन के मामले में वह प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) की हिरासत में हैं।
जस्टिस आर भानुमति जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस समय हमारे लिये यह संकेत देना जरूरी है कि हम सालिसीटर जनरल की इस दलील को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि आर्थिक अपराधियों के ‘‘भागने के जोखिम’’ को एक राष्ट्रीय चलन के रूप में देखा जाना चाहिए और उनके साथ उसी तरह पेश आना चाहिए क्योंकि चुनिन्दा अन्य अपराधी देश से भाग गये हैं।
पीठ ने कहा कि किसी आरोपी के भागने के जोखिम का आकलन असंबद्ध मामलों से प्रभावित हुये बगैर ही मामले विशेष के आधार पर करना होगा। पीठ ने कहा कि उसकी राय में दूसरे अपराधियों के आचरण की वजह से हमारे समक्ष आये मामले में जमानत देने से इंकार करने का यह आधार नहीं हो सकता, यदि पेश मामले में मेरिट के आधार पर व्यक्ति जमानत का हकदार है। पीठ ने कहा कि अत: हमारी राय में भागने के जोखिम सहित अन्य बिन्दुओं से किसी दूसरे मामलों से प्रभावित हुये बगैर ही विचार करना चाहिए और वह भी ऐसी स्थिति में जब यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल हो।
पीठ ने पी चिदंबरम की जमानत याचिका खारिज करने के 30 सितंबर के फैसले को निरस्त करते हुये अपने निर्णय में ‘भागने के जोखिम’ की सीबीआई की दलील अस्वीकार करते हुये ये टिप्पणियां कीं। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा था कि हम इस व्यक्ति के साथ किसी अन्य की तुलना नहीं कर रहे हैं लेकिन इनमें से ही एक तो संसद सदस्य था।’निश्चित ही मेहता का इशारा विजय माल्या के बारे था जिन पर बैंकों का नौ हजार करोड़ रूपए बकाया था और वह 2016 में विदेश भाग गया था।
पीठ ने अपने 27 पेज के फैसले में कहा कि अपीलकर्ता के भागने का जोखिम नहीं है और जमानत की शर्तो के मद्देनजर उसके सुनवाई से भागने की संभावना नहीं है। साथ ही पीठ ने सीबीआई की वह याचिका भी खारिज कर दी जिसमें उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष को चुनौती दी गयी थी जिसमें कहा गया था कि चिदंबरम के भागने का खतरा और साक्ष्यों से छेड़छाड़ की भी संभावना नहीं है।
कांग्रेस के 74 वर्षीय वरिष्ठ नेता चिदंबरम को केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने 21 अगस्त को उनके जोर बाग स्थित आवास से गिरफ्तार किया था। सीबीआई की पूछताछ के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। डपीठ ने मंगलवार को पूर्व मंत्री पी चिदंबरम की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय के 30 सितंबर का फैसला निरस्त करते हुये उन्हें जमानत देने का निर्णय सुनाया।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने यह मामला 15 मई, 2017 को दर्ज किया था। यह मामला 2007 मे वित्त मंत्री के रूप में पी चिदंबरम के कार्यकाल में विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड द्वारा आईएनएक्स मीडिया को 305 का विदेशी निवेश प्राप्त करने की मंजूरी में हुयी कथित अनियमितताओं से संबंधित है। इस बीच, सोमवार को विशेष अदालत ने इस मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल आरोप पत्र का संज्ञान लिया है। इस आरोप पत्र में चिदंबरम, उनके पुत्र कार्ति और 12 अन्य आरोपी है। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने भ्रष्टाचार निवारण कानून और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध मानी गई गतिविधियों को अंजाम दे कर सरकारी कोष को नुकसान पहुंचाया।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.