Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

आदिवासियों को जमीन से बेदखल किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को लगाई फटकार

लाखों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को बेदखल करने के मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को जमकर फटकार लगाई। उच्चतम न्यायालय ने इस बाबत ब्योरा 12 सितंबर तक दाखिल करने का आदेश दिया और उसी दिन मामले की सुनवाई होगी। इससे पहले 28 फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने अपने 13 फरवरी के उस आदेश पर रोक लगा दिया था, जिसमें लाखों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को बेदखल करने का निर्देश दिया गया था, जिनके वर्ष 2006 के वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत वन भूमि अधिकारों के दावे खारिज कर दिए गए थे।

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ को यह बताया गया कि 7 राज्यों व 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगा गया ब्योरा नहीं दिया है। इस पर पीठ ने कहा कि उस समय बेदखली हो रही थी तो सब कोर्ट आ गए लेकिन अब किसी को उन लोगों की चिंता नहीं है। केंद्र सरकार भी पहले सोती रही और फिर आखिर में जाग गई। पीठ ने ये भी कहा कि मीडिया रिपोर्ट से पता चला है कि 9 राज्यों ने वर्ष 2006 के वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत वन भूमि अधिकारों के दावों की जांच में तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। पीठ ने सभी को चेतावनी दी है कि वो सारा ब्योरा 12 सितंबर तक दाखिल कर दें। उसी दिन पीठ मामले की सुनवाई भी करेगी।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने हालांकि यह कहा था कि वन भूमि पर अतिक्रमण करने वाले “शक्तिशाली और अवांछनीय” लोगों के लिए कोई दया नहीं दिखाई जाएगी। पीठ ने स्वीकार किया था कि वनवासी अनुसूचित जनजाति (एफडीएसटी) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) के वन अधिकारों के दावों को अंतिम रूप देने से पहले एफआरए के तहत ग्राम सभाओं और राज्यों के अधिकारियों द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता को अस्वीकार कर दिया गया था जिसके चलते 16 राज्यों के 11 लाख से अधिक एसटी और ओटीएफडी को शीर्ष अदालत के 13 फरवरी को निष्कासन के आदेश का खामियाजा भुगतना पड़ा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उच्चतम न्यायालय ने आरोपों का जवाब दाखिल करने के लिए राज्यों को 4 महीने का समय दिया था और यह बताने को कहा था कि दावों को खारिज करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई। पीठ ने राज्यों से वन भूमि में रहने वाले वर्गों का ब्योरा भी मांगा था। वहीं इस दौरान न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने केंद्र और राज्यों को कड़ी फटकार भी लगाई थी। उन्होंने कहा कि जब कोर्ट आदेश पारित कर रहा था तो सब सो रहे थे। किसी ने भी इस पर आवाज नहीं उठाई। इस पर महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट से माफी भी मांगी थी।

इससे पहले केंद्र और गुजरात राज्य ने उच्चतम न्यायालय से यह आग्रह किया था कि वह 13 फरवरी के उस आदेश को संशोधित करे जिसमें लाखों अनुसूचित जनजातियों, आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को बेदखल करने का निर्देश दिया गया जिनके वन अधिकार कानून 2006 के तहत वन भूमि अधिकारों के दावों को खारिज कर दिया गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

केंद्र ने 13 फरवरी के आदेश में सुधार का अनुरोध करते हुये न्यायालय से कहा था कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून, 2016 लाभ देने संबंधी कानून है।केंद्र ने यह भी कहा था कि राज्यों ने लाखों आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के दावे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना खारिज कर दिए। केंद्र ने 12 सितंबर, 2014 के अपने पत्र का संदर्भ दियाथा , जिसमें वामपंथी उग्रवाद की चपेट में आए राज्यों में आदिवासी आबादी और वनवासियों के साथ हुए अन्याय की बात की गई है। केंद्र ने कहा था कि ऐसे राज्यों में जनजातीय आबादी भी अधिक है। इन जनजातियों और वनवासियों के वन भूमि दावे ज्यादातर राज्यों द्वारा खारिज कर दिए गए हैं।ये बेहद गरीब और निरक्षर लोग हैं, जिन्हें अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं है। इनकी मदद के लिये उदारता अपनाई जानी चाहिए।

इस पर न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे वनवासियों के दावे को अस्वीकार करने की पूरी प्रक्रिया का विवरण दे और साथ हलफनामा भी दाखिल करें। इससे पहले पीठ ने 21 राज्यों को आदेश दिया था कि करीब 11.8 लाख उन वनवासियों को बेदखल किया जाये जिनके दावे अस्वीकार कर दिये गये हैं। केंद्र की इस याचिका पर पीठ ने राहत प्रदान की, लेकिन वह इस बात से नाराज थी कि केंद्र सरकार इतने लंबे समय तक वह ‘सोती’ क्यों रहीं और 13 फरवरी के निर्देश दिये जाने के बाद उसे न्यायालय आने की सुध आयी। हालांकि पीठ ने यह भी कहा कि किसी भी परिस्थिति में ‘ताकतवर लोगों’ को वन भूमि या वनवासियों के परंपरागत अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करने दिया जायेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement