Amitabh Shrivastava-
नेटफ्लिक्स पर हंसल मेहता की वेब सीरीज़… ‘स्कूप’ बढ़िया है। ‘स्कैम’ के बाद यह ओटीटी पर उनका दूसरा शानदार काम है। एक दशक पहले, 2011 में मुंबई के धाकड़ क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे ( जे डे ) की हत्या में आरोपी महिला पत्रकार जिग्ना वोरा की किताब ‘बिहाइंड बार्स इन बाइकुला: माई डेज़ इन प्रिज़न’ से प्रेरित इस वेब सीरीज़ में मुंबई पुलिस और अंडरवर्ल्ड के गठजोड़ की कहानी तो है ही, पत्रकारिता पर भी चुभते सवाल उठाए गये हैं जो ‘वाट लगाने ‘ वाली मौजूदा टीवी पत्रकारिता के दबदबे वाले हालात के मद्देनजर बहुत ज्यादा प्रासंगिक और जरूरी हैं ।


सनसनीखेज एक्सक्लूसिव खबरों, बाइलाइन, फ्रंट पेज की सुर्खियों के लिए पत्रकारों की आपसी मारामारी,संस्थानों की गलाकाट प्रतियोगिता, मुनाफा कमाने के लिए सरकार और बाजार से ताल मिलाने के चक्कर में पत्रकारिता की नैतिकता को ताक पर रख देने की प्रवृत्ति को स्कूप बहुत सधे ढंग से सामने लाती है, किसी मेलोड्रामा के बगैर। एक पात्र एक जगह कहता है- कोई भी और कुछ भी धंधे से ऊपर नहीं है।
स्कूप के जरिये हंसल मेहता दर्शक को परत दर परत यह दिखाते चलते हैं कि एक भ्रष्ट व्यवस्था में लोकतंत्र का चौथा खंभा कहलाने वाला मीडिया किस तरह एक सड़ते हुए मलबे का ढेर बन गया है और किस तरह पत्रकारिता धंधा बन गई है और पत्रकारिता से जुडे लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते घटिया समझौते कर रहे हैं जिनसे इस सम्मानजनक पेशे की गरिमा काफी हद तक नष्ट हो चुकी है।
कहानी की मुख्य पात्र जागृति पाठक(करिश्मा तन्ना) नाम की एक क्राइम रिपोर्टर है । जागृति तेज-तर्रार महत्वाकांक्षी पत्रकार है, तेजी से आगे बढ़ना चाहती है। तलाकशुदा है, एक बच्चे की मां है और मुंबई में अपनी मां, नाना-नानी और मां के साथ रहती है। पुलिस के बड़े अफसरों और अंडरवर्ल्ड के बीच उसके सूत्र हैं जिनके जरिये वह झन्नाटेदार खबरें निकाली रहती है और अपने बाकी प्रतिद्वंद्वियों से आगे रहती है जिसके लिए उससे जलने वाले भी बहुत हैं।
उसका संपादक इमरान(मोहम्मद जीशान अयूब) उसे सावधान करता रहता है लेकिन उसे सपोर्ट भी करता है। फ्रंट पेज पर बाइलाइन, एक्सक्लूसिव खबर ही जागृति के हिसाब से दमदार पत्रकारिता है, भीतर के पन्नों पर छपी खबरों का कोई महत्व नहीं होता। उधर, जयदेब सेन( प्रसेनजित चटर्जी) एक तजुर्बेकार क्राइम रिपोर्टर है जिसकी अंडरवर्ल्ड में अच्छी घुसपैठ है। जयदेब सेन की हत्या हो जाती है। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन पर हत्या कराने का शक जाता है और जागृति को सेन की हत्या की साजिश के आरोप में मकोका के तहत गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता है।
ज्वांइट पुलिस कमिश्नर हर्षवर्धन श्रॉफ ( हरमन बावेजा) इस खेल में शामिल है। जेल की अमानवीय यंत्रणा जागृति को एहसास दिलाती है वह अपनी महत्वाकांक्षा के चलते पत्रकारिता की डगर पर कैसे भटक गई थी। वह जिस मीडिया का हिस्सा थी, वह भी उसके खिलाफ हो जाता है। हत्या की आरोपी बनने के साथ ही समाज के नजरिये में आए बदलाव से उसका स्टार रिपोर्टर वाला नशा भी हिरन हो जाता है। उसका परिवार और बेटा अपमान झेलते हैं जिसका तनाव भी जागृति को परेशान करता है। लंबी अदालती लड़ाई के बाद उसे जमानत मिलती है।
खुद को तीसमारखां समझने वाले तमाम पत्रकारों के लिए स्कूप में सबक है कि खबर देने वाले हर सूत्र का अपना एजेंडा होता है। खबरें योजनाबद्घ तरीके से प्लांट कराई जाती हैं। सावधान नहीं रहे तो मोहरा बनने का खतरा रहता है।
सीरीज के अंत में गौरी लंकेश से लेकर सिद्दीक कप्पन और गौतम नवलखा समेत तमाम पत्रकारों की तस्वीरें लगाकर हंसल मेहता ने उन पत्रकारों के प्रति सम्मान भी जताया है जो पत्रकारिता के लिए मारे गये, गिरफ्तार कर लिए गए या गायब हो गये। यह एक फिल्मकार के तौर पर हंसल मेहता की संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हंसल मेहता मौजूदा दौर के उन गिने-चुने फिल्मकारों में हैं जो सिनेमा को प्रतिरोध के माध्यम की तरह भी इस्तेमाल करते हैं और व्यवस्था से अपने असंतोष को मुखर होकर व्यक्त करने से हिचकते नहीं हैं। शाहिद और अलीगढ़ जैसी फिल्मों से मशहूर हुए हंसल मेहता ने पत्रकार सुचेता दलाल की किताब के आधार पर स्कैम 1992 सीरीज बनाई थी जिसमें हर्षद मेहता के किरदार के बहाने भ्रष्ट अर्थतंत्र का चेहरा उजागर किया था। स्कूप में हंसल ने पत्रकारिता और पत्रकारों को आइना दिखाया है। अंत में जिग्ना वोरा भी स्क्रीन पर आती हैं । जिग्ना एशियन एज में डिप्टी ब्यूरो चीफ थीं। स्कूप में अखबार का नाम एशियन एज की जगह ईस्टर्न एज है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसा किरदार भी दिखता है।
जागृति की मुख्य भूमिका में करिश्मा तन्ना का काम अच्छा है। धाकड़ क्राइम रिपोर्टर जयदेब सेन की छोटी सी भूमिका में प्रसेनजित चटर्जी हैं जो हाल ही में अमेजन प्राइम पर वेब सीरीज जुबिली में हिमांशु राय से मिलतेजुलते किरदार में दिखे थे।। उसूलों के पाबंद एडिटर इमरान के किरदार में मोहम्मद जीशान अयूब ने शानदार काम किया है। प्रतिद्वंद्वी संपादक की भूमिका में हैं तनिष्ठा चटर्जी। जागृति के रिश्तेदार की भूमिका में देवेन भोजानी ने बहुत प्यारा काम किया है। करन व्यास के संवाद स्कूप की जान हैं। #scoop
Ritesh Mishra- नेटफकिक्स पे एक सिरीज़ है- स्कूप (scoop). पत्रकारिता पे इतनी कायदे की फ़िल्म या सिरीज़ अभी तक नहीं बनी भारत में. जिगना वोरा की किताब मैंने नहीं पढ़ी लेकिन फ़िल्म के संवाद एक पत्रकार , खासकर एक क्राइम रिपोर्टर , के लिए सबक है. हंसल मेहता को धन्यवाद. फ़िल्म के अंत में बस्तर के दो पत्रकार संतोष यादव और लिंगाराम कड़ोपी का ज़िक्र है. दुःखद ये है संतोष के पास आजकल काम नहीं है. बहुत परेशान भी हैं. मैं कुछ दिन पहले उनसे मिला था और प्रयास भी किया कि उनको काम मिल जाय मगर अफसोस नहीं मिला अभी तक।