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सेक्स रैकेट्स के पालनहार बने अखबार, वर्गीकृत विज्ञापनों से गंदी सूचनाओं की तिजारत

आज तकरीबन हर बड़ा अखबार जो वर्गीकृत विज्ञापन छापता है, उसमें मनोरंजन या फिर पार्ट टाइम जॉब को लेकर इस्तिहार दिए जाते हैं। उनमें अमूमन मसाज पार्लर या फिर फ्रेन्डशिप क्लब के बारे में भी बताया जाता है। असलियत में ये सभी जिस्म के सौदागरों के विज्ञापन होते हैं, जिसका मीडिया के माध्य से प्रचार कर सैक्स रैकट्स को खुलेआम चलाया जा रहा है।

आज तकरीबन हर बड़ा अखबार जो वर्गीकृत विज्ञापन छापता है, उसमें मनोरंजन या फिर पार्ट टाइम जॉब को लेकर इस्तिहार दिए जाते हैं। उनमें अमूमन मसाज पार्लर या फिर फ्रेन्डशिप क्लब के बारे में भी बताया जाता है। असलियत में ये सभी जिस्म के सौदागरों के विज्ञापन होते हैं, जिसका मीडिया के माध्य से प्रचार कर सैक्स रैकट्स को खुलेआम चलाया जा रहा है।

ये बेशर्मी कोई नई भी नहीं, लेकिन ये सवाल अखबार पढ़ने वाले आम पाठकों के मन में हमेशा उठता रहता है कि क्या हमारे देश में अब कानून व्यवस्था नाम की, सेंसर नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। प्रेस परिषद, न्याय पालिका, संसद, क्या किसी को ये मालूम नहीं कि अखबार क्या कर रहे हैं। क्यों ऐसे घिनौने विज्ञापन रोज छाप रहे हैं। मीडिया तो खैर प्रेस्टीट्यूट कहा ही जाने लगा है। 

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दैनिक जागरण ,अमर उजाला, हिन्दुस्तान राष्ट्रीय सहारा आदि सभी बड़े पेपरो में इन जैसे विज्ञापनों की भरमार है। नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ये बड़े बड़े मीडिया हाउस चंद कागज के टुकडों के लिये अपना ईमान तक बेच देते हैं। बस पैसा आना चाहिए, चाहे विज्ञापन जैसा भी हो।

इन्ही विज्ञापनों के जरिये ही लगभग हर शहर में सैक्स का धंधा जोरों से पनप रहा है। विज्ञापन देने वाला शख्स हर शहर में अपनी शाखा खोल कर सैक्स रैकट का संचालन कर रहा है। कोई भी अखबारों में प्रकाशित वर्गीकृत विज्ञापनों के पन्ने पर नजर दौड़ाने के बाद अखबारो की नैतिकता का सहज ही अंदाजा लगा सकता है। 

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नितिन कुमार ई-मेल संपर्क [email protected]

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