अंजु शर्मा-

‘डार्लिंग्स’ देखी….बहुत अनरियलिस्टक लगी है न। टोटल फेंटेसी। लेकिन सुनिये आपको दो घटनाएँ बताती हूँ। दो दशक से भी पुरानी बात है। पति इंटेलिजेंस में अफसर। पत्नी बेहद खूबसूरत प्यारी सी, टिपिकल घरेलू हाउसवाइफ। पति एक नम्बर का काइयाँ और पियक्कड़ और पत्नी भारतीय नारी। भारतीय नारी बोले तो भला है बुरा है जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है। तो वो पीकर आता और बेचारी की दुर्गति करता। मार पीटकर बेचारी का हाल बुरा कर दिया।
अब पुलिस वाला था तो खूब समझाया, घर ससुराल सबने हस्तक्षेप किया पर नहीं, ढाक के वही तीन पात। फिर एक दिन भारतीय नारी के घरवालों ने मीटिंग की और जो अब तक ख़यालों में था अफसर साहब की वही गत बना डाली। मतलब जब नशे में धुत्त होकर वो घर लौटा तो उसे सहारा देकर बेड पर लिटाने और रोते हुए जूते खोलने वाला सीन आउट। उन दिनों घरों में आंगन में एकाध चारपाई पड़ी होती थी जो धूप सेंकने के काम आती थी। तो इनके भी लॉन में रखी थी एक कोने में।
तो साहब को उस पर डाला और सास और साले सालियों ने साहब को चारपाई के ऊपर रस्सियों में कस दिया। उसके बाद जमकर धुलाई की। तबियत से। अगले दिन होश आया तो पोर पोर दुख रहा था। कुछ कुछ अंदाज़ा रहा होगा पर साहब ने चुप्पी साध ली। इज्जत का सवाल था। इतिहास खुद को दोहराया करता है सुन रखा था साहब ने। इधर बीवी ने सीनियर्स के पास गुहार लगाई। सीनियर्स ने झाड़ पिलाकर नौकरी का डर दिखाया। अब तनख्वाह बीवी को मिलने लगी। इस बीच साहब को तबादले पर उत्तरपूर्व भेज दिया गया। सुधरना तो खैर क्या था पर बीवी के शरीर को रुई की तरह धुनना बन्द हो गया। इस बीच बच्चे बड़े हो गए। एक दिन पी पीकर साहब बहुत बुरे बीमार पड़े, और जल्दी ही कर खप गए। बीवी ने तीनों बच्चों के साथ बाकी की जिंदगी सुख से गुजारी।
दूसरे केस में ये होता कि तकरीबन हर तीसरी रात, घर से मारपीट की आवाज़ें आतीं। पूरी पूरी रात। लोग समझ जाते कि घर का मामला आज फिर फॉर्म में है क्योंकि जब भी कोई बीच बचाव की कोशिश करता उसे यही सुनने को मिलता- हमारे घर का मामला है। कोई बोलता भी क्या, अगली सुबह पति स्कूटर स्टार्ट करता, पत्नीजी उछलकर पीछे बैठतीं तो कभी पार्क घूमने जाते, तो कभी कचौड़ियां पैक कराकर लौटते। फिर बीवी बताती कि कमलानगर के फलां की कचौड़ी का तो जवाब नहीं। पीहर ससुराल वालों ने इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया।
पर एक दिन सीन पलट गया। तीन में से बड़ा लड़का जो अभी हाल ही में बालिग हुआ था, उसने नशे में माँ को पीटते पिता को एक उल्टे हाथ का झापड़ रसीद किया और कमरे में बंद कर दिया। माँ ने मिन्नतें की पर उसने दरवाजा न खोला न खोलने दिया। आखिरकार पीहर और ससुराल वाले सब जमा हो गये। मोहल्लेवाले तो पहले ही जमा थे। सारी भीड़ के सामने दरवाज़ा खुला और शेर भीगी बिल्ली बना बकरी के पीछे शरण ढूंढने लगा। छह फुट के 18 वर्षीय नौजवान के चेहरे पर लिखा था, इस बार छोड़ रहा हूँ, अगली बार….। तो इस कथा का भी अंत साहस की पूर्णाहुति से हुआ। अगले दो दिन साल में लड़कों ने घर की बागडोर अपने हाथों में ले ली और तानाशाह आजकल बस चुपचाप अपने कुत्ते को सैर कराया करता है। घर में असीम शांति है।
नेहा दुबे-
‘Darlings’ फिल्म में पुलिस थाने में बैठा इंस्पेक्टर एक बहुत ही खूबसूरत बात कहता है कि ‘मर्द औरत के साथ तभी ज्यादती करता है जब वो करने देती है, शुरुआत में ही रोक दे तो ऐसा कुछ हो ही ना’। बात बिलकुल सही है समाज से डर डर कर जीना भी क्या जीना। जब आपको कोई राक्षस की तरह मार रहा होता है, नौकर से भी बदतर हालत करता है। तब यही समाज आपको कहता है क्या करोगी या करोगे? अब शादी तो निभानी ही पड़ेगी।
इसमें सबसे बड़ी गलती मां बाप की होती है। जिनका एक सबसे बड़ा लाइन होता है हमने तुम्हारी शादी में इतना खर्च किया है दहेज दिया है। यहां आने की सोचना भी मत। जहां हो अपनी गृहस्थी संभालो। धिक्कार है ऐसे समाज पर।
मुझे कभी भी समाज समझ नहीं आया क्योंकि इस लायक लगा ही नहीं । “Struggle is Life, Silence is Death” स्वामी विवेकानंद का यह विचार मैंने क्लास 6th में स्कूल के मंच पर कहा था लेकिन पता नहीं था कि इसे अपने जिंदगी में उतार लूंगी। एक बार किसी ने पूछा था तुम किससे डरती हो? मैंने कहा खुद से। और सच में मैं दुनिया में सबसे ज्यादा सिर्फ खुद से डरती हूं।
जिंदगी का नाम चलती का गाड़ी होना चाहिए। क्या हुआ जो गलत इंसान से शादी हो गई। तोड़ने की इजाजत भी तो है। नौकरी नहीं मिले तो क्या हुआ शरीर और दिमाग में से जो बीके बेचो। दिमाग नहीं बिक रहा शरीर बेचो। लेकिन खुद की कीमत सोने से ऊपर रखो।
मैं प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों में होने वाले दोहन के खिलाफ हूं। हर उस जगह आवाज उठाओ जहां तुम्हे लगता हो बस अब हो गया। क्योंकि जितना सहोगी उतना रोज खुद को इंसान बनाने की श्रृंखला में कहने वाले तुम्हारा दोहन करेंगे। भागो मत लड़ो। दुनिया बहुत बड़ी है मनदीप या उसकी जैसी तमाम महिलाओं, तुम यूं हार मान जाओगी तो ऐसे राक्षसों का मनोबल बढ़ेगा। तोड़ों उन्हे, इतना तोड़ो कि वह खुद से प्रश्न करना शुरू कर दें। बाकि समाज कि भैंस की पूंछ।