Satyendra PS : शशांक शेखर त्रिपाठी के बारे में कुछ रोज पहले सूचना मिली थी कि वह यशोदा हॉस्पिटल में एडमिट हैं। मैंने बहुत गंभीरता से इसलिए नहीं लिया कि बगल में ही मकान है, कोई छोटी-मोटी प्रॉब्लम होगी। अस्पताल गया तो पता चला कि स्थिति गम्भीर है और लगातार 10 दिन से अस्पताल में ही हैं। बनारस में 2005 के आसपास मैं शेखर जी से मिला था जब वह हिदुस्तान अखबार के स्थानीय संपादक थे।
दरअसल किसी फोटोग्राफर और रिपोर्टर से बीएचयू के सुरक्षाकर्मियों ने हाथापाई कर ली थी। सभी पत्रकार जमा थे। मुझे आश्चर्य हुआ यह देखकर कि कुलपति के खिलाफ नारेबाजी को खुद शेखर जी ने लीड किया। जब कुलपति ने अकेले मिलने को बुलाया तो उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया। शेखर जी लगातार संपादक रहे हैं। उनको मैं अभी भी उसी स्पिरिट और जोश में देखना चाहता था जैसा करीब एक दशक पहले, बीएचयू में देखा था।
यशोदा हॉस्पिटल में साईं बाबा की प्रतिमा रिसेप्शन पर ही लगी दिखी। मरीज उन्हें भी सहारा के रूप में देखते हैं। कामना थी कि शेखर जी उसी जोश में फिर उठ खड़े हों, जैसे कि वे पहले थे। लेकिन ऐसा हो न सका। शेखर जी के असमय चले जाने से काफी दुखी महसूस कर रहा हूं। श्रद्धांजलि।
वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से.
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शेखर त्रिपाठी शुगर कंट्रोल कर लेते तो गैंगरीन न होता और असमय न जाते