शेखर त्रिपाठी शुगर कंट्रोल कर लेते तो गैंगरीन न होता और असमय न जाते

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Shambhunath Shukla :  शशांक शेखर त्रिपाठी का जाना अंदर तक हिला गया. उसके बेटे शिवम से बात हुई तो समझ ही नहीं आया क्या बात की जाए, कैसे उसका दुःख बटाया जाए! भला यह भी कोई उम्र होती है जाने की. कुल 55 की उम्र में शेखर चला गया. शेखर भी कानपुर के उसी गाँधी स्मारक इंटर कालेज में पढ़ा था, जहाँ पर मैं. जब मैं 12वां कर रहा था तब वह छठे में पढ़ने आया था. लेकिन हम मिले तब, जब बेहमई कांड पर उसकी स्टोरी रघुवीर सहाय के ‘दिनमान’ में छपी थी.

इसके बाद मैं दिल्ली आ गया और शेखर लखनऊ, वाराणसी, लखनऊ होते हुए दिल्ली आया. आज, दैनिक जागरण, आजतक, हिंदुस्तान से होते हुए दैनिक जागरण डॉट कॉम में. वह असल जीवन में भी पत्रकार था, सिर्फ उसका बाना ही नहीं. हमारी आखिरी मुलाकात संतोष तिवारी के निधन पर कांस्टीट्यूशन हाल में हुई शोकसभा में हुई थी.

खुशदिल और खुशमिजाज़ शेखर इतनी जल्दी ही चला जाएगा, ऐसा सोचा तक नहीं था. संतोष के जाने के कुछ ही महीने बाद शेखर का जाना रुला गया. शेखर को सुगर थी, लेकिन उसने सुगर पर कंट्रोल करने की कोशिश नहीं की. उसे गैंगरीन हो गया. और आज गाजियाबाद, कौशाम्बी स्थित यशोदा अस्पताल में उसका निधन हो गया. बहुत याद आओगे शेखर!

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की एफबी वॉल से.

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