Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

सत्ता की शह पर टारगेट बनाए जा रहे सरकारी शिक्षण संस्थान

नई दिल्ली। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में आंदोलनरत विद्यार्थियों को पुलिस द्वारा पीटने, छात्राओं के टायलेट में घुसने पर भी उनको न बख्शने, बीएचयू में एक मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का विरोध करने और अब जेएनयू में घुसकर विद्यार्थियों और शिक्षकों को नकाबपोशों द्वारा पीटने की घटना। यह देश में हो क्या रहा है? इन तीनों मामलों में जो बातें निकलकर आ रही हैं इसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि बिगड़े माहौल के पीछे सत्ता और उससे जुड़े संगठनों का हाथ है।

हालांकि जेएनयू में मारपीट मामले में गृह मंत्री अमित शाह ने मामले में जल्द रिपोर्ट मांगी है। पुलिस के भी नकाबपोशों को पहचानने कर बात सामने आ रही है। पर क्या केंद्र सरकार ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बने अराजकता के माहौल को शांत करने का प्रयास किया। न केवल सीएए के विरोध में हो आंदोलन बल्कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बिगड़े माहौल को शांत करने के बजाय केंद्र सरकार ने अपने एजेंडे के प्रति हठधर्मिता ही दिखाई। प्रधानमनंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से रामलीला मैदान में हुई भाजपा की रैली में घायल छात्र-छात्राओं के प्रति हमदर्दी न दिखाकर पुलिस को शाबाशी दी उससे तो यही लगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जामिया में जिस तरह से आंदोलनरत विद्यार्थियों को टारगेट बनाया गया उससे तो यही लगा कि जैसा पुलिस ने तहत ऐसा किया। इसे सरकार का विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति उपेक्षित रवैया ही कहा जाएगा कि आंदोलन को समाप्त करने केलिए सरकार की ओर से पहल न होने की वजह से जामिया दिल्ली का दूसरा जंतर-मंतर बन चुका है। बीएचयू में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी इस बात को मुद्दा बना लिया था कि एक मुस्लिम शिक्षक संस्कृत क्यों पढ़ा रहा है। इस मुद्दे को लेकर बीएचयू में लंबे समय तक आंदोलन चला पर सरकार की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।

जेएनयू में अचानक की गई भारी फीस वृद्धि के विरोध में जब बड़ा आंदोलन हुआ तो सरकार में बैठे लोगों ने इसका यह कहकर विरोध किया कि जेएनयू में सस्ता निवास और सस्ती शिक्षा के लिए वहां छात्र-छात्राएं लबें समय तक टिके रहते हैं। जेएनयू में भाजपा समर्थकों ने गरीब बच्चों को मिल रही सस्ती शिक्षा का विरोध करना शुरू कर दिया। जेएनयू की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की गई कि जैसे वह अय्याशी का केंद्र बनकर रह गया हो। जेएनयू के साथ ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्र-छात्राओं के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया गया पर केंद्र सरकार की ओर से पुलिस पर कार्रवाई करने के बजाय उनको शाबादी दी गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देश में कुकुरमुत्ते की तरह खुले निजी शिक्षण संस्थानों के चलते वैसे ही शिक्षा का कबाड़ा किया जा चुका है अब जो कुछ बचा-कुचा था वह जेएनयू, जामिया के साथ दूसरे अन्य सरकारी संस्थानों को टारगेट बनाकर कर दिया जा रहा है। देश में जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को मिलने वाली सहूलियतें और बौद्धिकता के मामले में अव्वल माने जाते रहे हैं। उनमें तर्क-वितर्क करने की शक्ति होती है और केंद्र में बैठे लोग नहीं चाहते कि उनके खिलाफ कोई आवाज उठे। वह तो हर किसी को भेड़ की तरह हांकने पर उतारू हैं। यही वजह है कि दोनों ही संस्थान न केवल पूंजीपतियों बल्कि सरकार के भी निशाने पर हैं। इन सब बातों से तो ही ऐसा लग रहा है कि जैसे देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा हो कि गरीब बच्चे पढ़-लिखकर आगे न जाने पाएं।

निजी संस्थानों को बढ़ावा देने तथा सरकारी शिक्षण संस्थानों का टारगेट बनाने की सरकार की नीति गरीब बच्चों को न केवल लगातार पीछे धकेल रही है बल्कि सरकारी शिक्षण संस्थानों को भी टारगेट बनाया हुआ है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मोदी सरकार के करीबी श्रीश्री रविशंकर ने तो सरकारी स्कूलों से नक्सलियों के तैयार होने की बात तक कह दी थी। वह बात दूसरी है कि उनकी खुद की एक यूनिवर्सिटी है। वैसे तो हर सरकार सरकारी शिक्षण संस्थानों के उपेक्षा कर निजी शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देती आई हैं पर मोदी सरकार ने तो जैसे सरकारी शब्द ही खत्म करने की मन बना लिया हो। वैसे तो वह हर किसी का निजीकरण करने पर उतारू हैं पर शिक्षण संस्थानों के तो जैसे वह तो वह हाथ धोकर पीछे पड़ गये हों। दिल्ली यूनिर्विसटी में भी एबीवीपी ने भगत सिंह की प्रतिमा के साथ ही सावरकर की प्रतिमा स्थापित करने की मांग, जिसका दूसरे छात्र संगठनों ने विरोध किया।

देश में चल रही मोदी सरकार में तो शिक्षा को लेकर गजब माहौल बना दिया गया है। जहां देश में सस्ती शिक्षा के लिए आंदोलन होने चाहिए थे वहीं लोग जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सस्ती शिक्षा का विरोध करने लगे हंै। उनका तर्क है कि जब उनके बच्चे महंगे शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे हैं तो जेएनयू जैसा सस्ता शिक्षण संस्थान क्यों ? एक ओर लोग महंगी शिक्षा को कोसते हुए अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल कह रहे हैं तो दूसरी ओर सस्ती शिक्षा का विरोध कर रहे हैं। यह सब जातिवाद, धर्मवाद और आर्थिकवाद के वशीभूत होकर किया जा रहा है। दरअसल मोदी सरकार में पूंजीवाद और धर्मवाद का बोलबाला जमकर हो रहा है। मोदी सरकार में भी विभिन्न पदों पर बैठे लोग भी इसी मानसिकता के हैं। इस सरकार में सम्पन्न वर्ग को ध्यान में रखकर सारे काम हो रहे हैं। रेलवे के निजीकरण के नाम पर चली पहली ट्रेन ‘तेजस’ सबसे बड़ा उदाहरण है। एक ओर मोदी सरकार में रोजी-रोटी का बड़ा संकट देश परआ खड़ा हुआ है वहीं दूसरी ओर यह सरकार सरकारी संस्थानों को संरक्षण देने के बजाय उनको खत्म करने पर उतारू है। मोदी सरकार का यह रवैया शिक्षा नीति का भी कबाड़ा कर दे रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक सी.एस. राजपूत सोशल एक्टिविस्ट हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement