समरेंद्र सिंह-
उनके पास ईश्वर है, हमारे पास एसपी बाला की आवाज है – जीत हमारी होगी!
मैंने प्यार किया 1989 में आयी थी। तेजाब, कयामत से कयामत तक 1988 की फिल्में हैं और आशिकी 1990 में रिलीज हुई थी। इन फिल्मों ने एक पूरी पीढ़ी को बचपन में ही जवान बना दिया था। इनके गीतों ने मोहब्बत करना और मोहब्बत का इजहार करना सिखाया। कुछ लोगों को यह भी सिखाया कि दिल में मोहब्बत को चुपके से सहेज कर कैसे रखा जाता है।
उन फिल्मों को देख कर और उनके गीतों को सुन कर ही एहसास हुआ था कि किसी को देखकर आंख चमक उठे, दिल की धड़कन तेज हो जाए, रूह बेचैन हो जाए तो समझिए मोहब्बत हो गई है। वैसे उन दिनों ऐसी मोहब्बतें अक्सर ही हो जाया करती थीं। मेरे एक दोस्त को तो कॉलेज में 17 बार इश्क हुआ था। दो बार तो “साजन” फिल्म बन गई थी। हर बार उसी ने त्याग किया। जवानी में इस किस्म का त्याग महान होता है। जीवन के त्याग से भी अधिक महान। ये और बात है कि हम दोस्तों ने कभी उसके महान त्याग की कद्र नहीं की। ये साले दोस्त भी बहुत बड़े कसाई होते हैं।
उन फिल्मों के कामयाब होने में उनके गानों का बड़ा हाथ था। दूर कहीं से भी उन फिल्मों का कोई गीत सुनाई दे जाए तो आंखों के आगे सारी मोहब्बतें मंडराने लगती थीं। इनमें भी एसपी बालासुब्रमण्यम की आवाज तो कमाल की थी। सलमान को सलमान खान बनाने में उस आवाज का बड़ा योगदान है। सलमान को एक्टिंग आती ही नहीं थी। वो तो एसपी बाला की आवाज थी जो उनके खराब अभिनय को भी ढंक लेती थी।
वो आवाज ऐसे लहराती थी, जैसे जवानी लहराती है। जैसे गेंहू की बालियां लहराती हैं। जैसे हवा के चलने पर बांस के तने झूमने लगते हैं। गाने लगते हैं। ये आवाज ऐसी थी कि इसे सुनने के बाद लगता था कि मोहब्बत के सिवाय दुनिया में कोई और काम होना ही नहीं चाहिए। ऊपर वाले ने बहुत नाइंसाफी की है। थोड़ा सा गला दे दिया होता तो मैं भी गीत गाते हुए, झूमते-नाचते हुए जीवन बिता देता। ईश्वर से नफरत की एक वजह ये भी है। उस ससुरे ने सिर्फ धन के बंटवारे में ही नहीं, हर जगह बेईमानी की है। किसी को ऐसा गला दिया है कि लोग जमाने का गम भूल जाते हैं। उसमें डूब जाते हैं। और कुछ मेरे जैसे कंगाल भी हैं, जिन्हें अपनी ही आवाज सुन कर सदमा लग जाता है।
हमने तानसेन के बारे में पढ़ा और सुना है। लेकिन तानसेन कैसा गाते थे यह नहीं पता। उन दिनों रिकॉर्ड करने की सुविधा होती तो तानसेन जिंदा होते। बैजू बावरा के साथ उनके मुकाबले की रिकॉर्डिंग तो ऐतिहासिक रहती। हजारों साल तक लोग उस मुकाबले तो सुनते और लुत्फ उठाते। अभी बस उसके बारे में पढ़ते हैं और अपनी कल्पना से कुछ गढ़ने की कोशिश करते हैं।
शब्द, आवाज और चेहरे में – शब्द और आवाज का महत्व ज्यादा है। चेहरा तो गौण है। उसमें कुछ भी नहीं धरा। पर शब्दों में बहुत कुछ है। आवाज में तो जादू होता है। किसी भी व्यक्ति को उसके शब्द ही जिंदा रखते हैं। ठीक उसी तरह किसी आवाज में अगर जादू है तो वह आवाज जिंदा रहेगी। चेहरे मर जाएंगे। समय की दहलीज पार करने की शक्ति चेहरों में नहीं हैं। वह शक्ति शरीर में भी नहीं है। सिर्फ शब्दों में और आवाज में ही वो शक्ति है जो समय की सीमा को पार कर सके।
इसलिए आज से 50-100 साल बाद अमिताभ बच्चन, सलमान खान, आमिर खान, शाह रुख खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन जैसों को पब्लिक भूल जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना को आज की पब्लिक भूल गई है। लेकिन तलत महमूद जिंदा हैं। मुकेश कुमार, किशोर कुमार और मोहम्मद रफी जिंदा हैं। बेगम अख्तर, फरीदा खानम जिंदा हैं।
एसपी बालासुब्रमण्यम भी जिंदा रहेंगे। जब तक इंसान के सीने में दिल रहेगा और वह दिल धड़कता रहेगा, तब तक वो जिंदा रहेंगे। आने वाली पीढ़ियों को मोहब्बत सिखाते रहेंगे। और जब कभी दूर से उनकी आवाज सुनाई देगी – तो कदम खुद ब खुद थम जाएंगे। आंखें चमक उठेंगी। कुछ चेहरे आंखों के आगे घूमने लगेंगे और दिल दिवाना कुछ भी मानने से इनकार कर देगा। दिल कमाल की चीज है। इसे मोहब्बत के आगे दुनिया की कोई रस्म नहीं पसंद। ये दिल ही है जो इंसान को मोहब्बत के लिए बगावत करना सिखाता है। ईश्वर भी इंसान के दिल से ही डरता है। शायद इसीलिए धर्म की सारी बंदिशें दिल पर लगाई जाती हैं।
खैर, बंदिश लगाने वालों के पास उनका खुदा है, धर्म ग्रंथ हैं तो मोहब्बत करने वालों के पास एसपी बालासुब्रमण्यम की आवाज है। मोहब्बत करने वाले इस आवाज के जरिए दुनिया की सब बंदिशें तोड़ते रहेंगे। मैंने पीनी छोड़ दी है, वरना आज की शाम मैं एसपी बालासुब्रमण्यम के गीत सुनता और स्कॉच के दो पैग लगाता। अब गीत के साथ चाय की चुस्की लेनी पड़ेगी। सोचता हूं कि गैर नशीली “तोडी” बना लूंगा। नशे की कमी एसपी बालासुब्रमण्यम आवाज पूरी कर देगी। ओह! क्या हसीन शाम होगी! एसपी बाला की नशीली आवाज, गैर नशीली तोडी… और कुछ कातिल यादें!