पिछले 20 दिसंबर को अखबारों में एक खबर आई जिसके अनुसार झारखंड के पुलिस मुख्यालय द्वारा ‘मजदूर संगठन समिति’ नामक मजदूरों का एक संगठन को प्रतिबंधित करने के लिए राज्य के गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे को प्रस्ताव भेजा गया है। इस मजदूर संगठन पर माओवादियों के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया गया है। जैसा कि खबर आने के मजदूर संगठन समिति में जिस प्रतिक्रिया का होना लाजिमी था वही हुआ। संगठन के केन्द्रीय महासचिव बच्चा सिंह ने पुलिस मुख्यालय के इस कपोल कल्पित आरोप को खारिज करते हुए एक प्रेस बयान जारी कर साफ कहा कि राज्य की पुलिस पूरी तरह संघ पोषित भाजपा सरकार के इशारे पर काम कर रही है।
इस सरकार ने प्रशासन के ओहदेदारों में संघीय धारा के लोगों को रख छोड़ा है, ताकि राज्य में कोई भी प्रगतिशील एवं जनवादी ताकतें जो जन सवालों को लेकर जनता को गोलबंद करती रहीं हैं, पुलिस प्रशासन की दमनकारी रवैये के खिलाफ आंदोलन करती रहीं हैं, शासन तंत्र की अलोकतांत्रिक नीतियों का खिलाफत करती रहीं हैं, को फर्जी मामलों फंसाया जा सके, नक्सल उन्मूलन के नाम पर मनमाने तरीके से किसी भी निर्दोष की हत्या की जा सके और जनता इनके खिलाफ उफ तक ना करे।
मसंस के महासचिव ने कहा कि पिछले कई वर्षों से समिति मजदूरों एवं अन्य जन सवालों को लेकर लगातार आंदोलन करता रहा है और प्रबंधन द्वारा अंतत: मजदूरों की जायज मांगों को मानना पड़ा है तो उसकी सबसे बड़ी वजह है कि मसंस पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीके से और बिना प्रबंधन की दलाली किए मजदूरों की जायज मांगों की पूरी ईमानदारी के साथ लड़ाई लड़ता रहा है।
मधुबन में डोली मजदूरों की जायज मांगें हों या चंद्रपुरा व बोकारो थर्मल में डीवीसी की मनमानी के खिलाफ मजदूर आंदोलन या बोकारो में विस्थापितों की मांगों लेकर आंदोलन हो सभी मोर्चों पर मसंस जनता व मेहनतकशों के साथ रही है अत: आंदोलन की सफलता भी मिली है।
जन सवालों को लेकर भी मजदूर संगठन समिति हमेशा तत्पर रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण गिरिडीह के मधुबन स्थित ढोलकटा गांव का रहने वाला एक डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन द्वारा गोली मारकर की गई हत्या के खिलाफ पिछले पांच माह से चल रहा जनआंदोलन है।
उल्लेखनीय है कि गत 9 जून को ढोलकटा गांव का रहने वाला आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की सीआरपीएफ कोबरा बटालियन द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई और उस हत्या को नक्सली मुठभेड़ का नाम दे दिया गया। पुलिस द्वारा प्रचारित किया गया कि 20 लाख का इनामी नक्सली मारा गया है। इतना ही नहीं राज्य के डीजीपी डीके पांडेय द्वारा बिना किसी तहकीकात के इस हत्या में शामिल कोबरा बटालियन और झारखंड पुलिस को जश्न मनाने के लिए एक लाख रूपए दिए गये।
मगर जब भाकपा माले के स्थानीय नेताओं, मसंस और सांवता सुसार बैसी द्वारा मोतीलाल की इस हत्या की जांच की गई तो मामला कुछ और ही निकला। पता चला कि मोतीलाल का नक्सलियों से दूर दूर तक का कोई रिश्ता नहीं था। पुलिस के दावे को माओवादियों ने भी सिरे से खारिज करते अखबारों को भी प्रेस बयान जारी कर कहा कि मोतीलाल का हमारे संगठन से कुछ लेना देना नहीं है उसका संगठन से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा है।
फिर क्या था क्षेत्र के जनमानस में इस हत्या को लेकर गुस्सा इतना भड़का कि सत्ता पक्ष को छोड़कर सात जनसंगठनों एवं राजनीतिक दलों ने मिलकर दमन विरोधी मोर्चा का गठन किया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रीयों में हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी सहित कई विधायक—सांसद भी शामिल हुए।
यह सच है कि इस आंदोलन में मजदूर संगठन समिति की मुख्य भूमिका रही। जिसके तर्क में बच्चा सिंह कहते हैं कि मोतीलाल एक आदिवासी डोली मजदूर था और मसंस का सदस्य भी था तो नैतिक रूप से भी समिति की जिम्मेवारी बनती है कि हम किसी तरह के दमन का विरोध करेंऔर हम कर रहे हैं।
वे बताते हैं सभी जांच पड़ताल से कहीं से भी साबित नहीं हो पाया है कि मोतीलाल नक्सली था, अत: पुलिसिया दमन का भंडा फूटते ही राज्य की पुलिस बौखला गई है वे कहीं से साबित नहीं कर पाए हैं कि मोतीलाल माओवादी था। ऐसे में इलाके का गुस्सा मसंस के नेतृत्व में पुलिस प्रशासन पर फुट पड़ा है और इसी गुस्सा का कारण है राज्य की पुलिस मसंस को प्रतिबंधित करने की कुचेष्टा कर रही है। मगर मसंस इनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देगा हम लगातार जनआंदोलन से इनके करतुतों का पर्दाफाश करते रहेंगे।
मसंस के महासचिव कहते हैं कि पारसनाथ जैन धर्मावलंबियों का विश्व में सबसे बड़ा तीर्थस्थल है। यहां कई बड़ी बड़ी संस्थाएं हैं। जिनके द्वारा मजदूरों का काफी श्रम शोषण होता रहा था। मगर जबसे मसंस का यहां गठन हुआ है मजदूरों के श्रम शोषण पर विराम लगा है संस्थाओं की मनमानी पर अंकुश लगा है। दूसरी तरफ इन धर्मावलंबियों में बड़े बड़े उद्योगपति शामिल हैं जिनका भाजपा सरकार से अच्छे रिश्ते हैं इन्हें मजदूरों में एकता बिल्कूल पसंद नहीं है यही कारण है कि मसंस पर सभी की कुदृष्टि है। दूसरी तरफ डीवीसी को बंद करके निजी कंपनियों को देने की साजिश हो रही है, जिसे लेकर मसंस लगातार आंदोलनरत है। तमाम हालातों को लेकर शासन प्रशासन को मसंस से खुंदक है। इन्हीं सब कारणों से मसंस को प्रतिबंधित करने की साजिश रची जा रही है। अत: मसंस इनकी साजिश को कामयाब नहीं होने देगा।