व्यापमं महाघोटाले की जांच जैसे ही सीबीआई के हाथों में सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी, तब से ही मध्यप्रदेश से लेकर दिल्ली तक भाजपा में जबरदस्त बेचैनी साफ देखी और महसूस की जा सकती है। अपने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को बार-बार क्लीन चिट देने की हड़बड़ी भी साफ नजर आ रही है और व्यापमं से जुड़े सवालों के जवाब देने के लिए भाजपा ने अपने केन्द्रीय और राज्य मंत्रियों को मैदान में उतारा है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर सीबीआई जांच शुरू होते ही क्लीन चिट देने की ये हड़बड़ी क्यों है?
क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि जांच की शुरुआत में ही क्लीन चिट दे डालो ताकि सीबीआई पर भी दबाव बने, क्योंकि अंतत: सीबीआई है तो केन्द्र सरकार का सरकारी तोता ही, जो पहले कांग्रेस के पिंजरे में था और अब भाजपा के पिंजरे में है। इसी कारण बार-बार ये मांग की जाती रही है कि व्यापमं महाघोटाले की सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही हो।
पहले तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने हर संभव प्रयास किए कि व्यापमं महाघोटाला फाइलों में ही दफन हो जाए और दिखावे की जांच चलती रहे। यही कारण है कि सीबीआई को जांच सौंपे जाने का पत्र लिखने के 24 घंटे पहले तक शिवराज किसी सूरत में इसकी जांच सीबीआई को सौंपने को तैयार नहीं थे और बार-बार रटारटाया जवाब देते रहे कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में एसटीएफ और एसआईटी मॉनिटरिंग जो जांच चल रही है उससे वे खुद और उनकी पार्टी पूरी तरह संतुष्ट है, मगर जब व्यापमं महाघोटाले का देश और दुनिया में जबरदस्त हल्ला मचा और यह तय हो गया कि 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट इसकी जांच सीबीआई को सौंप देगा तब शिवराज से लेकर पूरी पार्टी की जबरदस्त किरकिरी होगी, लिहाजा उससे बचने और मचे हल्ले को ठंडा करने के लिए 7 जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने प्रधानमंत्री के निर्देश पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को फोन किया और व्यापमं महाघोटाले की जांच सीबीआई से करवाने का पत्र लिखने को कहा, जिसके आधे घंटे के भीतर ही शिवराज ने ताबड़तोड़ प्रेस कांफ्रेंस बुलाई, जिसमें हाईकोर्ट को सीबीआई जांच का पत्र लिखने की घोषणा करते हुए विशेष विमान से ये पत्र जबलपुर भिजवा भी दिया।
हालांकि हाईकोर्ट ने इस मांग को यह कहकर ठुकरा दिया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसके बाद शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी सीबीआई जांच करवाने का अनुरोध पत्र सौंप दिया। चूंकि तमाम याचिकाकर्ताओं की भी यही मांग थी, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को इसकी जांच सौंप दी और अभी 13 जुलाई से सीबीआई की 40 सदस्यीय टीम ने भोपाल पहुंचकर व्यापमं महाघोटाले के सैंकड़ों टन दस्तावेजों को अपने कब्जे में लेकर जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी और दूसरी तरफ शिवराज से लेकर पूरी प्रदेश भाजपा में खलबली मच गई। ललित मोदी प्रकरण के चलते चूंकि भाजपा के देशभर में फजीते हुए और उसके बाद व्यापमं महाघोटाला भी देश और दुनिया में गूंजा, जिससे प्रधानमंत्री से लेकर पूरी पार्टी की छवि जनता में तार-तार होने लगी। यही कारण है कि पहले तो मोदीगेट मामले में भाजपा ने सुषमा स्वराज से लेकर वसुंधरा राजे को क्लीन चिट थमाई और इसी तरह की हड़बड़ी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के मामले में भी दिखाई और सीबीआई जांच शुरू होते ही क्लीन चिट देने की तत्परता साफ नजर आ रही है।
केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर राज्य के मंत्रियों और तमाम पदाधिकारियों द्वारा प्रदेशभर में प्रेस कांफ्रेंस ली जा रही है, जिसमें शिवराज को क्लीन चिट देते हुए यह भी दावा किया जा रहा है कि सीबीआई जांच से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा साथ ही कांग्रेस का भी मुंह यह जांच बंद कर देगी। अब यहां सवाल यह है कि जांच शुरू होते ही भाजपा को यह इलहाम कैसे हो गया कि सीबीआई इस पूरे मामले में शिवराज सहित अन्य संदिग्ध भाजपा या संघ के चेहरों को क्लीन चिट दे देगी? क्या यह एक तरह से सीबीआई पर अभी से दबाव बनाने की सुनियोजित रणनीति नहीं है, क्योंकि अंतत: सीबीआई केन्द्र सरकार के अधीन ही आती है, जहां पर भाजपा का राज है। इतिहास बताता है कि सीबीआई केन्द्र के इशारों पर ही नाचती रही है, जिसके चलते 2-जी स्पैक्ट्रम और कोयला महाघोटाले की जांच के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई को आड़े हाथों लेते हुए उसे सरकारी पिंजरे में बंद तोता बताया था। कमोवेश अभी भी सीबीआई की स्थिति वही है और इसका एक और प्रमाण अभी मिला, जब गुजरात दंगों की लड़ाई लडऩे वाली तीस्ता सितलवाड़ के मुंबई स्थित निवास पर सीबीआई ने छापे डाले और इसके पहले गुजरात पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के प्रयास भी कर चुकी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर रोक लगाई थी।
व्यापमं महाघोटाले में शिवराज के समर्थन में कूदी भाजपा तथ्यों की बजाय सिर्फ बयानबाजी ही कर रही है। इंदौर आए केन्द्रीय वन पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में व्यापमं महाघोटाले पर तथ्यों को रखने की बजाय चुनावी भाषणों की तरह कांग्रेस पर वे ही पुराने घीसे-पीटे 2-जी स्पैक्ट्रम, कोयला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले से लेकर दामादजी रॉबर्ट वाड्रा के मामले ही गिनाते रहे, लेकिन इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि मध्यप्रदेश में 12 साल से भाजपा की सरकार है और व्यापमं जैसा महाघोटाला कैसे हो गया? मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी इसकी जांच शुरू करवाकर नया काम क्या किया? जो भी पद पर रहता है वह इस तरह के घोटालों या अनियमितताओं की जांच करवाता ही है। भाजपा के पास इन सवालों का भी जवाब नहीं है कि जब व्यापमं का मामला 2007 में ही उजागर हो गया था और बकायदा विधानसभा में रतलाम के निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा ने इसे उठाया, जिस पर विभागीय मंत्री होने के नाते मुख्यमंत्री ने भी गोलमोल ही जवाब दिए और लगातार ये घोटाला चलता रहा। मुख्यमंत्री ने तो दबाव पडऩे पर जुलाई 2013 में इस घोटाले की जांच का काम एसटीएफ को सौंपा और यह सबके सामने है कि एसटीएफ ने किस तरह की दिखावटी जांच की।
जावड़ेकर इस बात का भी जवाब नहीं दे पाए कि शिवराज के पूरे कार्यकाल में घोटाला दिनों दिन बढ़ता रहा और यहां तक कि अभी 12 जुलाई को होने वाली डीमेट की परीक्षा में भी एक हजार करोड़ रुपए के लेन-देन की शिकायतें सामने आईं और 52 लाख रुपए के लेन-देन का तो एक ऑडियो भी हाईकोर्ट से लेकर न्यूज चैनलों तक जनता ने सुना, जिसके चलते डीमेट की परीक्षा ही रद्द करना पड़ी। जब 8-9 साल से अनवरत व्यापमं महाघोटाला चलता रहा और संदिग्ध परिस्थितियों में कई मौतें होती रही, बावजूद इसके शिवराज से लेकर पूरी भाजपा क्लीन चिट देने की जो हड़बड़ी फिलहाल दिखा रही है उससे तो यही साबित होता है कि दाल में कुछ काला नहीं, अपितु पूरी दाल ही काली है।
पर्चियों पर नियुक्तियां करने वालों को भेजें जेल
मध्यप्रदेश के कांग्रेस राज में भाजपा सिगरेट की पर्चियों पर नियुक्तियां कर देने के आरोप लगा रही है। उल्लेखनीय है कि 10 साल तक कांग्रेसी राज के दौरान मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे और उनके कार्यकाल में हुई भर्तियों तथा नियुक्तियों की जांच भी व्यापमं महाघोटाले पर हल्ला मचने पर खिसियाहट में शिवराज सरकार ने शुरू करवाई, जबकि 12 साल से भाजपा का ही राज है, तब इसकी जांच करवाने की याद नहीं आई। कल इंदौर आए केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी स्वीकार किया कि अगर पर्चियों पर कांग्रेसी राज में नियुक्तियां की गईं तो वाकई उसकी जांच होना चाहिए।
सवाल यह है कि कांग्रेस के राज में अगर ऐसे घोटाले हुए तो 12 साल तक भाजपा की सरकार सोई क्यों रही? ऐसे तमाम घोटालेबाजों को जेल क्यों नहीं भेजा, भले ही उसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी शामिल क्यों ना हो? अब कांग्रेस के पापों को गिनाकर भाजपा अपने पापों को पुण्य कैसे बता सकती है? क्या दूसरों के पाप गिनाने से खुद के पाप कम हो जाते हैं?
अब सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं हो रही?
व्यापमं महाघोटाले की सीबीआई जांच करवाने की हर मांग पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से लेकर पूरी भाजपा का रटारटाया जवाब यह होता था कि चूंकि इस मामले की जांच मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में एसटीएफ द्वारा की जा रही है और उसकी मॉनिटरिंग भी एसआईटी कर रही है। ऐसे में सीबीआई जांच की मांग करना हाईकोर्ट की अवमानना होगी। ये तर्क सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखने के 24 घंटे पहले तक दिए जाते रहे मगर मजबूरी में जब शिवराज ने हाईकोर्ट को सीबीआई जांच करवाने का अनुरोध पत्र लिखा तब क्या हाईकोर्ट की अवमानना नहीं हुई? क्योंकि हाईकोर्ट पहले ही सीबीआई जांच की मांग ठुकरा चुका था और सुप्रीम कोर्ट ने भी यही किया था मगर जब देश और दुनिया में हल्ला मचा और मीडिया ट्रायल संदिग्ध मौतों और घोटाले को लेकर शुरू हुआ तब शिवराज ने हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट को सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखा, तो क्या इससे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं हुई जो पहले सीबीआई जांच से इनकार कर चुका था?
अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को जांच सौंप चुका है तो भाजपा उसके पहले क्लीन चिट बांटकर क्या सीबीआई पर दबाव नहीं बना रही और यह भी तो एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना ही है, क्योंकि आज नहीं तो कल सीबीआई की जांच भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होना तय है।
इंदौर के लेखक-पत्रकार राजेश ज्वेल से सम्पर्क – 9827020830, [email protected]