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उत्तराखंड

वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल ने देहरादून के किस अखबार का लंबा-चौड़ा पोस्टमार्टम कर डाला

Ved Uniyal : उस ईश्वर का धन्यवाद जिसने अपने इस प्यारे राज्य उत्तराखंड के हित में सच लिखने कहने का साहस दिया है। प्लीज जानिए कि मैं कहना क्या चाहता हूं । मेरा निवेदन कि अखबार के मालिक इस पोस्ट को जरूर पढें। मान्यवर कुछ समय तक हम देखते रहे कि शायद ठीक हो जाएगा। लेकिन अब बहुत गंद मच गई है। आपसे निवेदन पत्रकारिता के जरिए इस पहाड को बचाइए। आपके संस्थान का और पहाड का एक नाता रहा है। यह विवशता में लिखना पडा रहा है। कोई और चारा नहीं है हमारे पास।

<p>Ved Uniyal : उस ईश्वर का धन्यवाद जिसने अपने इस प्यारे राज्य उत्तराखंड के हित में सच लिखने कहने का साहस दिया है। प्लीज जानिए कि मैं कहना क्या चाहता हूं । मेरा निवेदन कि अखबार के मालिक इस पोस्ट को जरूर पढें। मान्यवर कुछ समय तक हम देखते रहे कि शायद ठीक हो जाएगा। लेकिन अब बहुत गंद मच गई है। आपसे निवेदन पत्रकारिता के जरिए इस पहाड को बचाइए। आपके संस्थान का और पहाड का एक नाता रहा है। यह विवशता में लिखना पडा रहा है। कोई और चारा नहीं है हमारे पास।</p>

Ved Uniyal : उस ईश्वर का धन्यवाद जिसने अपने इस प्यारे राज्य उत्तराखंड के हित में सच लिखने कहने का साहस दिया है। प्लीज जानिए कि मैं कहना क्या चाहता हूं । मेरा निवेदन कि अखबार के मालिक इस पोस्ट को जरूर पढें। मान्यवर कुछ समय तक हम देखते रहे कि शायद ठीक हो जाएगा। लेकिन अब बहुत गंद मच गई है। आपसे निवेदन पत्रकारिता के जरिए इस पहाड को बचाइए। आपके संस्थान का और पहाड का एक नाता रहा है। यह विवशता में लिखना पडा रहा है। कोई और चारा नहीं है हमारे पास।

देहरादून का एक अखबार…

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-फिर माफीनामा। आए दिन गलत खबर, बार बार खबरों का दोहराव। कभी कभी गलती होना स्वभाविक है। मगर बार बार गलत तथ्य। उदाहरण के लिए – उत्तराखंड 16 साल पहले आजाद हुआ था इनके लिए।

वजह – अति बडे पदो पर एकदम छलांग। बीच की सीढी गायब। दरअसल यह योग्यता नहीं,अयोग्यता और तिकडम की पहचान है। साथ में लाए आए, बुलाए लोगों को भी बिना अनुभव , ज्ञान, पर्याप्त योग्यता के हैसियत से कहीं ऊंचा पद मिल जाना। जैसे आम सैनिक से सीधे तिकडम लगाकर कोई ब्रिगेडियर बन जाए। फिर वो सीमा पर क्या करेगा जान लीजिए। पत्रकारिता में कुछ पद ऐसे ही हासिल किए गए हैं। उनका खामियाजा पाठक या दर्शक भुगतता है। एक गांव , क्षेत्र के लोग पूरे अखबार पर जकड बनाए हुए हैं। न ये बाढ में जाते न भूकंप में जाते, न किसी दूरस्थ गांव में जाते, न किसी सामाजिक सरोकर से जुडते। न ये इस राज्य में आकर इसे जानने की कोशिश करते, न अध्ययन करते न अध्ययन की जरूरत समझते। केवल देहरादून में बैठकर इनकी तिकडमी पत्रकारिता।

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नतीजा –  समाज को आए दिन गलत तथ्यों पर खबरें मिलना, गलत जानकारी मिलना। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य के साथ खिलवाड करना ।

सोच – क्षेत्रीयता कूट कूट कर भरी। पहाडियों के प्रति इतनी नफरत और अविश्वनीयता कि ब्यूरो के पांच पद और महत्वपूर्ण पदों पर एक भी पहाडी नहीं। भले ही योग्यता में कम अपने लोग बिठा दिए हों। जरा महसूस तो कीजिए कि जिन्हें लखनऊ में प्राइमरी कामों में अयोग्य होने के नाते दरवाजा दिखाया गया हो वो पिछली खिडकी से देहरादून में आकर स्टेट ब्यूरो चीफ बना हुआ हैं। जिन्हें उत्तराखंड का कुछ भी पता नहीं वो पोलिटिकल काम देख रहे हैं। दिखाने के लिए ही सही, एक पहाडी को तो रखते ब्यूरों में.।

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लेकिन मन में खुराफात भरी हो तो कैसे संभव है। ऐसे अयोग्य उत्तराखंड पर लादने के लिए हैं। खुद स्थानीय मुखिया कभी अपने अखबार में दो लाइन नहीं लिख पाए जबकि पहाड के पत्रकारों का इस अखबार से गहरा नाता रहा है। इस अखबार ने भी हमेशा पहाडी पत्रकारों को अपना माना। अखबार के मालिक और पहाडों की जनता के बीच भावनात्मक लगाव रहा है। अच्छे अच्छे पहाडी और पहाड के पत्रकारों ने इस अखबार में जुडकर अपना योगदान दिया। उत्तराखंड आंदोलन में भी इस अखबार ने उत्तराखंड की जनता की भावनाओ का सम्मान किया।

लेकिन अब यहां देहरादून में गंदे सर्कीण लोग आकर अखबार के मालिक को यहां के सच से दूर ऱखने की कोशिश करते हैं। अपने साथ एक दो लोग तो हर कोई मुखिया लाता है पर यहां तो पूरा चक्रव्यूह ही बिछाया है, कोई बडा पद, कोई बडा काम किसी पहाडी पत्रकार के लिए नहीं छोडा। और जिन लोगों को काम सौंपा है वो अयोग्य हैं, पात्रता भी नहीं रखते। ये राज्य से दूर बैठे उच्च संपादकों को गुमराह कर रहे हैं। इस तरह यहां के पहाडी पत्रकारों पर अविश्वास किया जा रहा है।

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काम-  अपनी ही तरह गैर अनुभवी, जुगा़डू लोगों की बडे संवेदनशील महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करना। उनके जरिए अक्सर भ्रमपरक, तथ्यरहित खबरें लिखा जाना। उनकी खबरों को देख पाने का कौशल न होना।

कुशलता – अपने पत्रकारिय काम की क्षमता की कमी को दूसरे आयोजनों के प्रबंधन से छुपाना। अपने नंबर बढाना। मालिकों और अपने से उच्च संपादकों को एक्टिव, दक्ष – कुशल होने का आभास कराना। लेकिन इसका पाठक और समाज को कोई सीधा फायदा नहीं।

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परिणाम – अखबार की बनी बनाई प्रतिष्ठा को निंरतर आघात पहुंचना।

अखबार के जरिए अच्छी रिपोर्टिंग न हो पाना। ढंग के विश्लेषण न हो पाना, गांववदूर दराज की संवेदनशील जरूरी चीजों का अखबार में समावेश न हो पाना। हर चीज कुछ नेता ,अधिकारियों तक सीमित हो जाना।

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शातिरता – स्टेट ब्यूरो प्रमुख देहरादून बिराजता हैं तो कई बीजापुर गेस्ट हाउस में ठहराया जाता हैं। संस्थान किसी आने -जाने, बदली में बाकायदा पैसा देता हैं। लेकिन संस्थान के मालिक को नहीं बताया जाता कि मान्यवर कई दिन बीजापुर में रुके हैं।

निष्कर्ष – राज्य भर में ऐसे कई पत्रकार फेले हैं। ऐसे लोगों को पत्रकारिता छोडकर कोई दूसरा काम करना चाहिए। अपनी कई तरह की कमजोरियों के साथ वो इस अच्छे पेशे के साथ खिलवाड करते हैं। उत्तराखंड की राजधानी मैं बैठकर इस संवेदशील और कठिन हालात में चल रहे राज्य को रौंदते हैं। दबाव, धमकी, ब्लेकमैलिंग को अपना जरिया बनाते हैं। फिर शहर राज्य में तरह तरह की खबरें उड़ती हैं।

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समय आया है कि इन बातों की तरफ हमें सबका ध्यान खींचना पडेगा। वरना राज्य खत्म हो जाएगा। उस अखबार के लिए भी ये शुभ है कि ऐसे लोग छोडकर जाए। देश में कहीं के भी रहने वाले हो लेकिन मेधावी , पढे लिखे, क्षेत्रीय आग्रहों से दूर संवेदनशील लोग उत्तराखंड , देहरादून की मीडिया में आएं। और सौभाग्य से कुछ ऐसे लोग हैं भी। उनका स्वागत।

मैंने स्वयं महाराष्ट्र, राजस्थान , पंजाब उप्र , हरियाणा तमाम राज्यों में पच्चीस साल पत्रकारिता की। आज भी पूरे समर्पण से दूसरे राज्य में मीडिया में हूं। लेकिन जहां भी रहा , वहां के लोगों के प्रति मन में रखा है।

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वहां के बडे -छोटे पत्रकारों की इज्जत की। उनसे आज भी हमारे पारिवारिक संबंध हैं। पहाडों के हर पत्रकार ने इसी भावना से काम किया है। लेकिन स्वयं अपने राज्य में इन लोगों का ये बर्ताव बहुत खेदजनक हैं। इस पर सोचा ही जाना चाहिए। जब पानी सिर से ऊपर चला गया तब हमें यह खुला पत्र लिखने को मजबूर होना पडा।

अमर उजाला में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल की एफबी वॉल से. वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल पच्चीस साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रहे हैं. वे आठ राज्यों में और कई बड़े अखबारों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं.

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