62 साल की उम्र में ठेला लगाने वाला वृद्ध सबसे ज्यादा किसी से डरता है तो वो है कमाई का जरिया बंद होने से। ऐसा ही डर अशोक बुनियां की आंखों में दिखा जो व्यथा बताते-बताते गला भरने तक पहुंच गया। और उठा गया वो सवाल जिसने मुझे मजबूर कर दिया उन जैसे तमाम गरीबों का डर और इंदौर नगर निगम की कार्यप्रणाली या कहूँ गुंडागर्दी बताने पर।
अपनी जीविका चलाने कुल्फी का ठेला लगाते हैं अशोक बुनियां। स्वाद ऐसा कि जुबां पर बना रहे और दाम एकदम कम। 5-10 रुपये में ऐसा स्वाद आपको पूरे शहर में नहीं मिलेगा। यानी उतनी ही कमाई का मकसद जितने में घर चल सके। पहले अशोक मेन रोड (ग्राहकी के लिए) के किनारे ठेला खड़ा करते थे। फिर कुछ दिनों से साइड वाली गली में अंदर आ गये। आज एकदम ही अंदर दिखे। मैंने पूछा तो बोले नगर निगम का अमला कभी भी आ जाता है। ठेला तोड़ देंगे। सारा सामान फेंक देंगे तो दुबारा कहां से ठेला लगाऊंगा? 9 साल पहले 10 टका ब्याज पर पैसे लेकर ठेला लगाया। कर्जा कैसे चुकाया मेरा दिल जानता है। रोड किनारे खड़ा होकर बेचता हूं क्योंकि बूढ़ा हो गया हूं ज्यादा चल फिर नहीं सकता। लेकिन मेरी स्थिति से किसी को क्या शहर तो स्मार्ट बन रहा है। जिसमें ठेले दिखाई नहीं देने चाहिये।
दरअसल हमारे देश में 2 तरह के गरीब बसते हैं। एक जिनके घर में AC होता है और दीवार पर गरीबी रेखा का क्रमांक। और दूसरे हैं अशोक बुनियां और उनके जैसे करोड़ो… जो ईमानदार और मेहनत से सिर्फ इतना कमाना चाहते हैं जिससे जिंदगी का गुजर बसर हो सके। पहले वाले गरीब सरकारी योजनाओं की मलाई चांटकर मजे में हैं। और अशोक जैसे रोज इस डर में कि कहीं निगम का अमला न आ जाये और मेरी रेहड़ी (ठेला) न तोड़ दे। या सारा सामान न फेंक दे। एक तरह सरकार गरीबों के विकास की बात करती है और दूसरी तरह जो चोरी, फरेब, अपराध न करके इज्जत की कमाई खाना चाहते हैं उनकी जीविका पर खतरा बन रही है।
मुझे यह बात समझ नहीं आई कि स्मार्ट सिटी की होड़ में लगा इंदौर शहर और उसके शुभचिंतक यह कैसी कार्रवाई कर रहे हैं? क्या किसी को हटाने का मतलब है उसको आर्थिक तौर पर बर्बाद कर देना? विस्थापन की एक प्रक्रिया होती है कि आप उनको ऐसी जगह मुहैया करा दीजिये जहां वो 4 पैसे कमा सके। और अगर वे शांतिपूर्वक, बिना गंदगी किये धंधा कर रहे हैं तो कोई खाली स्थान देकर मदद ही कर दीजिये। सामान फेक देना, ठेला तोड़ देना, मार मारकर अधमरा कर देना यह तरीका किस नियम की किताब में लिखा है? और अगर लिखा नहीं है और आप लिखना चाहते हैं तो आपको बता दूं आप इंसान हैं अपने कद से ऊपर मत उठिये। वरना गरीब की बद्दुआ आपको स्तरहीन बना देगी।
आशीष चौकसे
पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और ब्लॉगर
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