मुकुंद सिंह-
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले ‘पत्रकार’की परिभाषा अब पूरी तरह बदल चुकी है। एक वह भी वक्त था जब लोग आंख बंद कर पत्रकार पर भरोसा करते थे और उन्हें अपना पक्ष धर मानते थे लेकिन हालात अब बदल चुका है। पत्रकार सरकार के पक्ष में रिपोर्टिंग करना शुरू कर दिया है जिससे सरकार के नीतियों के खिलाफ आक्रोशित लोगों का पत्रकारों से भरोसा उठता जा रहा है। हालांकि अभी भी कुछ वैसे पत्रकार हैं जो चर्चित मंच नहीं मिल मिलने की वजह से यूट्यूब पर जनता के हितों को लेकर आवाज उठाते हैं पर उनकी आवाज सीमित जगहों तक ही सिमट कर रह जाती है। देश की मीडिया चैनल और अखबार की हालात किसी से छुपी हुई नहीं है किस तरह उनके पत्रकार टीवी चैनल पर अपना एजेंडा चलाते हैं और विरोध कर रहे लोगों को anti-national बताते हुए उनकी मांग को खारिज कर देते हैं।
उन चर्चित पत्रकारों की हिम्मत ही नहीं जो सरकार से सीधा सवाल पूछे… सवाल पूछने के बजाय हिंदू मुस्लिम और चीन पाकिस्तान में उलझा कर लोगों की समस्या दबाने का काम काफी जोरों से चल रहा है। चाहे वह शाहीन बाग प्रोटेस्ट हो या किसान आंदोलन सीधा सरकार से सवाल करने वाले पत्रकार नजर नहीं आए। नजर आए भी तो वही जिनकी सुबह की शुरुआत मोदी से होते हुए चीन पाकिस्तान हिंदू मुसलमान के बाद मोदी पर ही खत्म हो गया। ताजा हालात देखने के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश के उन चर्चित मीडिया के सुपर संपादक मोदी ही है। मोदी सरकार की कई ऐसी नीति जिसके खिलाफ जनता का आक्रोश के बाद भी इस नीति का खंडन किसी भी मीडिया हाउस के द्वारा नहीं किया गया।
शाहीन बाग पर धरना प्रदर्शन करने वाले उन लोगों को मुसलमान और पाकिस्तान से जोड़ने वाले न्यूज़ चैनल इस बार किसान आंदोलन को भी कुछ उसी तरह का रूप देने की कोशिश में लगे हुए थे लेकिन उनकी कोशिश नाकाम हुई और अब हालात ऐसे हैं कि आंदोलन स्थल पर उन चर्चित चैनल के पत्रकार को वहां से खदेड़ा जा रहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है। आंदोलन कर रहे किसानों की बात सुनने के लिए सरकार तैयार तो हुई पर अब तक बात नहीं बनी है। धीरे-धीरे यह आंदोलन उग्र रूप धारण करने लगा है अब कई विपक्षी पार्टियों के द्वारा भी भारत बंद का ऐलान किया गया है ।
मुकुंद सिंह
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