गिरीश मालवीय-
राफ़ेल दलाल का नाम सुषेण गुप्ता है! रॉफेल के मामले में मोदी सरकार का झूठ पकड़ा गया है। फ़्रांस की वेबसाइट मीडियापार्ट ने रविवार को ‘राफेल पेपर्स’ नाम की रिपोर्ट जारी की है जिसमें राफेल सौदे को लेकर कई और खुलासे किए। इस रिपोर्ट में बेहद स्पष्ट रूप से कहा गया कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट को भारत में एक बिचौलिये को करीब 8 करोड़ 62 लाख रुपये ‘बतौर गिफ्ट’ देने पड़े थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी ने फ्रांस की जांच एजेंसी के सामने कहा है कि 23 सितंबर 2016 को राफेल डील फाइनल होने के बाद भारत की एक दलाल संस्था डेफसिस सॉल्यूशन को एक निश्चित अमाउंट देने पर तैयार हो गई थी।
दसॉल्ट के मुताबिक इन पैसों का इस्तेमाल राफेल लड़ाकू विमान के 50 बड़े ‘मॉडल’ बनाने में हुआ था, लेकिन वास्तव में ऐसे कोई मॉडल बने ही नहीं!
यह जानकारी तब सामने आई है जब फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी एएफए ने रॉफेल की निर्माता कंपनी दसॉल्ट के खातों का ऑडिट किया है।
फ्रांस की वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा करते हुए डेफसिस सॉल्यूशन के सुषेण गुप्ता का नाम लिया। अब यहाँ खास बात यह समझना चाहिए कि इस व्यक्ति का नाम एक डिफेंस डील से जुड़े घोटाले में आ चुका है हम अगस्ता वेस्टलैंड की बात कर रहे हैं।
अगस्ता वेस्टलैंड मामले की जांच UPA 2 में ही शुरू हो गयी थी इसलिए यह साफ है कि इस मामले से जुड़े हर शख्स का रिकॉर्ड मोदी सरकार के पास उपलब्ध था। मार्च 2019 में भारत की इनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट यानि ईडी ने अगस्ता वेस्टलैंड डील में गिरफ्तार किया था। सुशेन गुप्ता के ऊपर अगस्ता वेस्टलैंड डील में मनी लॉन्डरिंग का आरोप लगाया गया, बाद में उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया गया।
आज यह व्यक्ति कहाँ है, कोई खबर नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब मोदी सरकार को यह मालूम था कि यह व्यक्ति संदिग्ध है तो ऐसे व्यक्ति को सौदे में शामिल ही क्यों किया।
यहाँ हो यह रहा है कि जिस पार्टी ने माल बेचा उसके कागजो में लिखा है कि हमने इस दलाल को माल बिकवाने के लिए इतनी रिश्वत दी है लेकिन जिसने माल खरीदा यानी भारत की मोदी सरकार वह बोल रही है कि हम इस आदमी को जानते ही नहीं जबकि एक दूसरे मामले में वह उसे गिरफ्तार कर रिहा भी कर चुके हैं।
साफ है कि पर्दा डाला जा रहा है मोदी सरकार यह मामला इसलिए छुपा रही है कि एक बार यदि सुषेण गुप्ता ने मुँह खोल दिया तो हजारों करोड़ के घोटाले से जुड़े सारे फैक्ट बाहर आ जाएंगे।
नितिन ठाकुर-
राफेल सौदे में इतने झोल हैं जितने बोफोर्स में भी नहीं थे लेकिन फिर भी मंत्रमुग्ध होना नया राजकीय धर्म है तो हुए रहिए। फ्रांस में ‘मीडियापार्ट’ नाम के पब्लिकेशन ने कुछ ऐसा छापा कि फिर से राफेल की दाल में काला दिखने लगा है। अब ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’, ‘राष्ट्रीय गौरव’, ‘राष्ट्रीय सम्मान’ जैसे जुमलों का झुरमुट छांट दें तो जो उसमें जो दिखेगा तो वह है बोफोर्स जैसी दलाली का शक़।
फ्रांस वालों ने छापा है कि 2016 में जब भारत-फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान को लेकर समझौता हुआ तो उसके बाद विमान बनाने वाली दसॉ कंपनी ने भारत में एक बिचौलिये को 1 मिलियन यूरो (यानी 8 करोड़ 62 लाख रुपये) की राशि बतौर ‘गिफ्ट’ दी। साल 2017 में दसॉ ग्रुप के अकाउंट से 5,08,925 यूरो ‘गिफ्ट टू क्लाइंट्स’ के तौर पर ट्रांसफर हुए थे। हुआ यह कि दसॉ कंपनी का ऑडिट तब कराया गया जब 2018 में एक एजेंसी Parquet National Financier (PNF) ने इस डील में गड़बड़ी की बात कही। फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी AFA ने दसॉ के खातों का ऑडिट किया था। मीडियापार्ट की रिपोर्ट कह रही है कि अपनी सफाई में दसॉ ने कहा कि इन पैसों का इस्तेमाल राफेल लड़ाकू विमान के 50 कार साइज़ मॉडल बनाने में हुआ था लेकिन ऐसे कोई मॉडल बने हों इसका सबूत ही नहीं ! मज़ा देखिए कि दसॉ ने अपने ही राफेल के मॉडल एक इंडियन कंपनी से क्यों बनवाए? यह वह बता नहीं पा रही। (कृपया सफाई देना हमारे वालों से सीखें)।
दावा किया गया है कि ऑडिट में खुलासे के बावजूद कोई अपेक्षित लीगल एक्शन नहीं लिया गया। इसका मतलब? मतलब यह कि खेल भारत से लेकर फ्रांस तक फुल मिली-भगत का है। जिस भारतीय कंपनी Defsys Solutions का नाम इसमें आया है, उसके इनवॉइस से दिखाया गया कि जो 50 कार बराबर साइज़ के मॉडल तैयार हुए, उसकी आधी राशि उन्होंने अदा कर दी। हालांकि किस आदमी को पैसा दिया, उसका नाम कोई बता नहीं रहा है। कहा जा रहा है कि जिसका नाम बताया नहीं जा रहा वह Defsys का मालिक सुशेन गुप्ता है जो मार्च 2019 में अगस्ता वेस्टलैंड केस में ईडी के हाथों जेल जा चुका है। फिलहाल गुप्ता बेल पर बाहर है।
अब एक बार फिर से राफेल खरीदने की वो हड़बड़ी, ‘हिन्दू’ के एन. राम का खुलासा कि पीएमओ अलग से हस्तक्षेप कर रहा था, लोकसभा का हंगामा, बोफोर्स से लेकर सारे रक्षा सौदे याद आने लगे हैं। हालांकि कोई नई ख़बर फिर इसे ढक देगी इसमें क्या शक़ है?
कृष्ण कांत-
फ्रांस की मीडिया ने दावा किया है कि राफेल डील में एक भारतीय दलाल को 11 लाख यूरो (करीब 9.48 करोड़ रुपए) की दलाली दी गई. फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी ने अपने आडिट में पाया है कि कुछ बोगस पेमेंट किए गए जिनका कोई स्पष्टीकरण मौजूद नहीं है. आडिट में पाया गया कि ये पेमेंट गिफ्ट के तौर पर दर्ज हैं. जाहिर है कि ये गिफ्ट/दलाली/घूस/प्रसाद आदि जो भी दिया गया, वह सरकार में बैठे किसी आका को ही दिया गया होगा.
राफेल सौदे में दलाली किसने खाई? क्या सरकार को इस बारे में नहीं पता है? अगर नहीं तो दलाली खाई किसने? क्या दो सरकारों के बीच हुए समझौते में मोदी सरकार ने दलाल की मदद ली? क्या राफेल सौदे की जांच इसीलिए नहीं कराई गई कि दलाली उजागर हो जाएगी?
राफेल सौदे को लेकर अनगिनत जायज सवाल थे. एचएएल से छीनकर अंबानी की बोगस कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट देने से लेकर मूल्यों और विमानों की संख्या तक. दर्जनों सवालों में से किसी का भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. कोर्ट ने पल्ला झाड़ लिया, ये कहकर कि हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, संसदीय जांच हो सकती है. चुनाव हारने के बाद विपक्ष भी चुप मारकर बैठ गया.
सरकार की तरफ से अब तक जो बता रहे थे कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप झूठे हैं, अब उनको ये भी प्रचार करना चाहिए कि फ्रांस वाले झूठे हैं और भारत के खिलाफ साजिश कर रहे हैं. भारत में अब तर्क की चरम परिणति यही है. बड़े बड़े नामी लोग सरकार की दलाली में ऐसे ही कुतर्क करते हैं.
आपको याद होगा कि भारत में राफेल सौदे के पहले प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट को बदलकर कमजोर किया गया था. लोकपाल कानून को बदलकर लुंजपुंज बनाकर लागू किया गया. प्रशांत भूषण को इन सवालों को लगातार उठाते रहे लेकिन गोदी मीडिया कान में तेल डालकर सोया रहा. राफेल सौदे को लेकर जितने सवाल उठे थे, सब अपनी मौत मर गए थे. क्योंकि भारत में सरकार पर नकेल कसने वाली संस्थाओं को ‘पिंजड़े का तोता’ बना दिया गया.
क्या राफेल खरीद की प्रक्रिया में अनिवार्य प्रक्रियाओं और नियमों का उल्लंघन इसीलिए किया गया था ताकि भ्रष्टाचार की राह आसान हो सके? क्या देश की सुरक्षा के मामलों में कथित राष्ट्रवादी कुनबा दलालों के हाथ की कठपुतली है? क्या रक्षा मंत्रालय, संसदीय समितियों और अन्य एजेंसियों को दरकिनार करके जैसे प्रधानमंत्री ने ये सौदा अपने स्तर पर किया था, अब वैसे ही वे इस दलाली की जिम्मेदारी भी अपने सिर लेंगे?
सरकार ने अब तक इस सौदे को लेकर हर सवाल को नकारा है. भारत का गोदी मीडिया भी ऐसे हर मसले पर सरकार के साथ है. राफेल के धतकरमों का ज्यादातर खुलासा फ्रांस के मीडिया से ही हुआ या फिर प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने शोर मचाया था. सरकार और मीडिया दोनों ने इस तिकड़ी को नजरअंदाज करने की रणनीति अपनाई और वे कामयाब भी रहे.
सबसे अंतिम और अहम सवाल है कि क्या इस अहम रक्षा सौदे में हुए इस भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जांच होगी? क्या इसमें किसी की जवाबदेही तय होगी? क्या कंपनी और दलाल दोनों पर कार्रवाई होगी?
सरकार में बैठे लोगों को शायद अब भी ये विश्वास है कि बड़े से बड़े भ्रष्टाचार को कथित राष्ट्रवाद की चादर से ढंक दो तो जनता सवाल नहीं करती.