दिलीप मंडल-
मीडिया में ठाकुर/राजपूत कहाँ है? मीडिया की ताक़त तो आप जानते ही हैं। खासकर इंग्लिश मीडिया में ठाकुर तो नज़र ही नहीं आ रहे हैं। English Newspapers में सिर्फ 1% ! TV न्यूज़ में 4%!
सुप्रीम कोर्ट में 32 जज हैं। एक भी जज क्षत्रिय यानी ठाकुर नहीं है। वीपी सिंह और अर्जुन सिंह ने ओबीसी के लिए जो काम किया, उसके बाद ठाकुरों की निर्णायक पदों पर नियुक्ति लगभग बंद है।
दो ठाकुरों की न्याय भावना ने पूरी बिरादरी को अविश्वसनीय बना दिया है। माना गया कि पावर मिलने पर कब उनमें न्याय या सहानुभूति की भावना जग जाएगी, कहा नहीं जा सकता।
प्रधानमंत्री कार्यालय यानी PMO के शिखर पदों पर आज एक भी ठाकुर नहीं है। भारत के सबसे बड़े अफ़सर यानी कैबिनेट सेक्रेटरी की बात करें तो आज़ादी के बाद अब तक 32 लोग इस पद पर आए। सिर्फ 1 सुरेंद्र सिंह ठाकुर थे।
अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट में एक भी ठाकुर नहीं। अयोध्या राज परिवार के सदस्य के तौर पर भी मिश्रा को मिली जगह। शिखर पदों से ठाकुरों की विदाई क्यों और कब हुई, विचार करें।
वीपी सिंह और अर्जुन सिंह ने ओबीसी कल्याण के लिए जो कदम उठाए क्या वह निर्णायक क्षण था? क्या ठाकुर अब ब्राह्मण हितों की रक्षा के लिए भरोसेमंद नहीं रहे?
लैटरल एंट्री हो या EWS की नियुक्तियाँ। ठाकुरों का नाम ढूँढोगे तो बस ढूँढते रह जाओगे। कब तक आप गाएँगे कि राणा प्रताप का भाला 200 किलो का था।
टॉप 500 कंपनियों के CEO की लिस्ट देखिए। सुप्रीम और हाई कोर्ट के जजों की लिस्ट देखिए। नेशनल लेबल पर संपादकों की लिस्ट ही देख लीजिए। सेंट्रल यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर की लिस्ट देखिए। PSU के MD और चेयरमैन देखिए।
किधर छिपे हैं राणा साहब?
ठाकुरों को अगर नॉलेज इकनॉमी में सेट होना है तो जाटों, अहीरों, मेघवालों और मीणाओं की तरह बच्चों और बच्चियों के लिए खूब हॉस्टल खोलिए। बच्चे विदेश भेजिए। AI और Blockchain सिखाइए। घोड़ी में कुछ नहीं रखा है। कोई चढ़ता है तो चढ़ने दो। कहीं भी झगड़ा हो रहा है तो सबसे आगे मत खड़े हो जाओ।
Comments on “मीडिया, जूडिशियरी, पीएमओ में ठाकुर कहाँ हैं?”
100 फीसद सही,इस बार उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी नजर आया कि सवर्ण में केवल क्षत्रिय हैं।
आपने तो जैसे हम ठाकुरों को आईना ही दिखा दिया। अब न सुधरे तो जड़ से उखड़ जाएंगे।
दिलीप मंडल मानसिक रूप से बीमार हैं। इन्हें हर जगह जाति के अलावा कुछ नहीं दिखता।
दिलीप मंडल बिल्कुल सही कह रहे हैं। आप उनसे सहमत हों या न हों लेकिन आप उनकी बात सोचने को एकदफा मजबूर जरूर होंगे।
….ठाकुर लोग न्यायप्रिय होते हैं।