सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा पिछले सप्ताह एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिये जाने के बाद पहली बार केंद्र सरकार की किसी कद्दावर शख्सियत व न्यायपालिका के शीर्ष पर रही शख्सियत ने आमने सामने टीवी पर बहस की है. अंगरेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ के प्रस्तोता अरिंदम गोस्वामी के साथ केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा ने यह बहस की है, जिसमें दोनों ने अपनी-अपनी संस्थाओं (जिनसे वे जुड़े रहे हैं) के पक्ष में जोरदार दलील दी है अौर एक-दूसरे के फैसलों पर आपत्ति दर्ज करायी है.
अरुण जेटली ने जहां इस बहस में एजीएसी अधिनियम को रद्दे करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अनिर्वाचित लोगों द्वारा निर्वाचित लोगों के फैसले को नियंत्रित करने का प्रयास बताया है, वहीं आरएम लोढा ने अरुण जेटली के तर्कों को 1975 76 जैसी भाषा बताया है. अरुण जेटली ने इस परिचर्चा में अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि सरकार मुख्य निर्वाचन आयुक्त का, सीएजी का व सीवीसी की नियुक्ति सरकार करती है, तो क्या वह सरकार के लिए समझौता करती है क्या? इस पैनल को दो प्रख्यात कानून विशेषज्ञ व प्रख्यात पत्रकारों ने और दिलचस्प बनाया है. पूर्व अटर्नी जनरल सोली सोराबजी व जानेमाने वकील राजीव धवन एवं वरिष्ठ पत्रकार स्वप्न दासगुप्ता व दिलीप पडगांवकर इस परिचर्चा में शामिल हुए.
टाइम्स नाउ चैनल पर शनिवार रात नौ बजे प्रसारित होने वाले इस बहस में वकील राजीव धवन जेटली के सरकार के पक्ष में तर्कों का उपहास करते हुए यह कहते हुए नजर आते हैं कि जब जेटली बोलते हैं तो बड़ा मजा आता है और जब गलत बोलते हैं तो और भी ज्यादा मजा आता है. वे विधायिका से जुड़े लोगों पर यह कह कर आक्षेप करते हैं कि आप एक एमपी से मिलने जायें तो दलाल का सहारा लेना होता है. धवन के अाक्षेपों पर जेटली यह कहते नजर आते हैं कि वे एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं.
लोढा और जेटली की राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की परिचर्चा आरटीआइ का भी जिक्र होता है, जब जेटली लोढा से यह पूछते हैं कि क्या वे न्यायपालिका में आरटीआइ के लिए राजी है. इस पर आरएम लोढा सधा जवाब देते हैं कि नियुक्तियां हो जाने के बाद वे सबकुछ पब्लिक डोमेन में लाने के पक्ष में हैं. बहरहाल, पैनल में शामिल एक शख्स जेटली से यह भी पूछ लेता है कि क्या आप राजनीतिक दलों के लिए आरटीआइ के पक्षधर हैं?