Pawan Lalchand : सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सात मई को पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्थाई आवास जैसी सुविधाओं वाला यूपी विधानसभा में पारित क़ानून निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि “Public Office becomes history after a person demurs the office and it can not be the basis for giving government residential accommodation for rest of his life.” यानी आपने सरकारी ऑफिस छोड़ा तो इतिहास का हिस्सा बने पूर्व मुख्यमंत्री जी तुरंत सरकारी आवास, धन-संसाधन खर्च मीटर पर ब्रेक लगाकर अपने घर पहुँचे.
इसी साल फरवरी में पटना हाईकोर्ट भी पूर्व मुख्यमंत्रियों के ताउम्र सरकारी बंगले क़ब्ज़ाये रहने को असंवैधानिक करार दे चुका. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूपी तक था क्योंकि फैसला सपा सरकार के 2016 के क़ानून के खिलाफ आया था लेकिन क्या उत्तराखंड सरकार को भान नहीं कि उसके अध्यादेश जिस पर वह जल्द विधानसभा से मुहर लगाकर कानूनी जामा भी पहनाएगी, इसे शीर्ष अदालत में चुनौती मिली तो संकट होगा!
Rajiv Nayan Bahuguna : घोर आपत्तिजनक है कि सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों की अय्याशी के लिए चोर दरवाज़े से रास्ता निकाला है। अदालत ने इनकी सुविधाओं को फ़िज़ूल खर्ची मानते हुए रोक लगा दी थी। अब अध्यादेश लाकर इनका गाड़ी, घोड़ा, कोठी बंगला, नौकर चाकर की सुविधा बहाल की जा रही। एक नए, छोटे और साधन विहीन राज्य में यह कवायद आपत्तिजनक और अश्लील है।
राज्य की छाती पर अभी छह पूर्व मुख्यमंत्री दनदना रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने पर मनुष्य अंधाधुन्ध सेवा टहल, बेहतर खाद ख़ुराक़ और माले मुफ्त मिलने के कारण जल्दी मरता भी नहीं है। उसकी उम्र कमसे कम दस साल बढ़ जाती है।
अभी तक केवल दो पूर्व मुख्यमंत्री मरे हैं। वो भी काफी ओवर एज होकर और झिला कर मरे हैं। अपवाद को छोड़ कोई मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ, जिसने राज्य को लूट कर अरबों रुपये न बनाये हों। इनके पास साधन सम्पन्नता की कोई कमी नहीं। फिर भी लूटपाट से मन नहीं भरता।
आने वाले समय मे इस राज्य में दर्जनों पूर्व मुख्यमंत्री होंगे, जो बेरोज़गार युवकों का हक़ छीन कर ऐश कर रहे होंगे। समाज प्रतिरोध करे। सरकार को अनर्थ करने से रोके। कृपया हलचल करें। अगर ये नहीं मानते, तो इनके जल्दी मरने की दुआ करें। लोक देवताओं में घात लगाएं।
वरिष्ठ पत्रकार पवन लालचंद और राजीव नयन बहुगुणा की एफबी वॉल से.