सौमित्र रॉय-
पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ “डील” की पोल खुलने के बाद रक्षा मंत्रालय की सुलग गई है। खासकर कांग्रेस के जवाबी हमले के बाद मोदी सरकार यह ढोल पीटती फिर रही है कि भारत ने अपनी ज़मीन नहीं गंवाई।
मोदी सरकार से दलाली खा रहे चिम्पू संपादक और उनकी हां में हां मिलाने वाले ” भयंकर बौद्धिक” पत्रकार तो सवाल पूछेंगे नहीं। इसलिए मैं ही पूछ लेता हूँ। कल भी पूछा था, जवाब नहीं मिला।
- पिछले अप्रैल में चीन की सेना पेंगोंग के उत्तर और देपसांग में 800 से 1000 वर्ग किमी भीतर घुस आई थी और हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था- न कोई घुसा और न ही हमारी कोई पोस्ट छीनी गई। अगर नहीं घुसा तो चीन से 9 दौर की बातचीत मौसम का हाल जानने के लिए हुई?
- अब ज़ोर-शोर से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट रहीं हैं। लेकिन रक्षा मंत्रालय यह नहीं बता रहा है कि डील के तहत कितना बफर एरिया छोड़ा गया है, जहां कोई सेना तैनात नहीं रहेगी और भारत की सेना गश्त नहीं करेगी?
- रक्षा मंत्री बताएंगे कि डील से चीन को क्या फायदा हुआ? इस डील से चीन को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उसने चीन के पहले पीएम झोउ एन लाइ की 1959 वाली LAC को ज़मीन पर लागू करवा ही लिया है। बिना लड़े।
- रक्षा मंत्री यही बात संसद में कह दें कि अब भारत और चीन के बीच की नई LAC मैकमोहन लाइन नहीं, नवंबर 1959 की रेखा होगी? क्यों नहीं कह पाएंगे?
- डील के तहत जो नया बफर ज़ोन बना है, उसमें क्या कोई भी निर्माण भारत की ओर से हो सकेगा? बिल्कुल नहीं। चीन तो बीते 10 महीने में बहुत से निर्माण कर चुका है। भारत ही पीछे है। रक्षा मंत्री साफ़ करें।
- खासकर भारतीय सीमा में ऐसे निर्माण जिनसे अक्साई चिन को खतरा हो, नहीं हो पाएंगे। रक्षा मंत्रालय डील के बारे में जितना बता रहा है, उससे ज़्यादा छिपा क्यों रहा है?
- अगर भारत और चीन के बीच भविष्य में कोई सीमित युद्ध हुआ तो 1959 वाली नई सीमा रेखा के साथ चीन अब रणनीतिक रूप से ज़्यादा मज़बूत है। क्या इस पर सफाई पेश की जाएगी?
- रक्षा मंत्रालय यह ज़रूर कह रहा है कि चीन ने 1962 की जंग में हमसे 38 हज़ार वर्ग किमी से ज़्यादा ज़मीन छीनी है। पर यह नहीं बताया कि 800-1000 वर्ग किमी ज़मीन इस डील के बाद भी उसी के कब्जे में रहेगी, क्योंकि भारत उस पर काबिज नहीं ही सकेगा?
- भारत चीन से जीत नहीं सकता और चीन भारत से लड़ना नहीं चाहता। क्या मौजूदा डील का आधार यही है?
- 1959 वाली रेखा के बफर और असैन्य जोन देमचोक में लागू नहीं हो सकते। इसी तरह देपसांग में भी बफर जोन बने तो शांति बहाली मुमकिन है। क्या डील ऐसी ही है?
- इससे भारत को क्या मिला? और चीन दुनिया को क्या दिखायेगा? चीन 1959 वाली लाइन लागू करवाकर दुनिया को अपनी जीत दिखायेगा, लेकिन भारत की 56 इंच सरकार को अपमान की कड़वी गोली ही मिलेगी और वह भी अपनी ज़मीन गंवाकर?
अगले 10 हफ़्ते में यह भी साफ हो जाएगा।