नवीन कुमार-
आज फेसबुक ने इस तस्वीर की याद दिलाई। मन अजीब सा हो गया। ये तस्वीर याद दिलाती है कि टेलीविजन अतिरिक्त रूप से मेधावी लोगों को बर्दाश्त नहीं कर पाता। इसपर बौद्धिक तौर पर दिवालिया और मीडियोकर किस्म के गिरोह का कब्जा हो चुका है। ऐसे में अगर कोई जेन्यूनली बौद्धिक आदमी इस गिरोह में पहुंच जाता है तो वो उसका घेरकर शिकार करते हैं। अनुशासन और सिस्टम के नाम पर उसे अनफिट साबित करने की कोशिश करते हैं।
मुझे अच्छी तरह याद है। जब मुझे आजतक से निकाला गया तब पहला फोन मैने Nikhil को किया था। मुझे विश्वास था वो मेरी ज़हनी हालत को समझेगा। उसने कहा मन नहीं तो छोड़ दो। तुम अपने ऊपर जबरदस्ती करके काम नहीं कर पाओगे।
तब यह आश्वस्ति थी की निखिल जैसे लोग वहां हैं। ये लोग टेलीविजन को इस अंधे और गंदे कुएं से देर सबेर निकाल लेंगे। मेरा दावा है कि उससे ज्यादा प्रतिभाशाली प्रोड्यूसर/संपादक पूरी टीवी इंडस्ट्री में कोई नहीं। खबरों को लेकर उसका नजरिया स्तब्ध कर देता है। लेकिन उसकी प्रतिभा ने कभी किसी को आतंकित नहीं किया। हमेशा अपनी छांव में नई पौध को पाला। उन्हें सींचा। कई बार मैने उससे कहा कि जिन लोगों पर तुम इतनी मेहनत कर रहे हो उनकी समझ बहुत संदिग्ध है। इनकी पढ़ाई लिखाई चेतना का स्तर बहुत स्तरीय नहीं है। वो कहता ये एक ऐसा सिस्टम है जो अपनी चयन प्रक्रिया में काबिल और बौद्धिक लोगों को सबसे पहले ठिकाने लगाता है। और इसी को अपना हुनर मानता है। जो लोग तुम्हारे सामने आएंगे उन्ही को तो ग्रूम करोगे? निखिल जहां भी रहा, न्यूजरूम का एक शानदार शिक्षक रहा। अपनी सेहत और समय दोनो को लुटाता रहा टीवी को एक बेहतर माध्यम बनाने में।
बड़े बड़े क्रांतिकारी ‘चेहरों’ के दौर में निखिल स्वाभिमान के पक्ष में खड़ा एक ऐसा खामोश योद्धा है जिसका विद्रोह किसी सत्ता के पक्ष या विपक्ष में नहीं, इस माध्यम के पक्ष में था। एक ताकतवर माध्यम के तौर पर टीवी की शालीनता के की खातिर बार-बार अपनी कुर्बानियां देने वाला एक भी उदाहरण हमारे सामने नहीं है। बिना यश और पुरस्कार की कामना के।
वो किसी भी स्त्री की तरह अथाह दर्द लिए मुस्कुराता रहेगा और आपको भनक तक नहीं लगने देगा। ये सब इसलिए नहीं लिख रहा कि निखिल मेरा दोस्त है। दोस्त वो किसका नहीं है? लेकिन मेरे लिए वो हमेशा ऐसा शख्स रहा जिसके साथ खबरों और दुनिया के दर्शन पर बिना उकताए हुए घंटों घंटों बात कर सकता हूं। गूगल सर्च को गलत साबित करने के लिए भी गूगल की शरण में जाने वालों के जमाने में निखिल एक प्यारा इंटलक्चुअल है। आत्मनिर्भर बौद्धिक।
मुझे नहीं पता टेलीविजन के संपादकों की समझ क्या कहती है। लेकिन ये सच है कि वो निखिल को स्वीकार भले न करें लेकिन किसी निखिल का निर्माण नहीं कर सकते। सवाल ही नहीं। अगर कर सकते तो निखिलों की भरमार होती और मुझे ये पोस्ट न लिखनी पड़ती।
निखिल टेलीविजन का गुरूर है और उससे सीवी मांगना गुनाह। मुझे विश्वास है ये दुनिया एक दिन अपने अपराध का प्रायश्चित करेगी। निखिल को मनुहार के साथ आमंत्रित करेगी। इस माध्यम की इतनी गहरी और सूक्ष्म समझ मेरी पीढ़ी में किसी के पास नहीं।
मैं यह लिखने पर मजबूर हूं कि निखिल जैसे लोग होते हैं, होते नहीं रहते हैं।