जेल में 1000 दिन पूरे होने पर उमर खालिद के लिए प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया पहुँचे रवीश कुमार, अरुंधति राय और अन्य!

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अरुण माहेश्वरी-

न कोई बेल, न कोई ट्रायल और जेल में 1000 दिन! जवाहरलाल नेहरू के जेल रेकर्ड से 41 दिन कम। और पता नहीं ये हुकूमत और कितने दिन उसे इसी तरह जेल में रखेगी !

उमर ख़ालिद! जेएनयू का एक प्रतिभाशाली युवक जिसने आदिवासियों के जीवन पर पीएचडी की है। जो इंसाफ़ के लिये आवाज़ उठाने में कभी पीछे नहीं रहा। वो नौजवान इसी बात की सजा काट रहा है कि उसने जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई।

क्या उमर ख़ालिद को इसीलिये सजा दी जा रही है कि कोई जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत न करें। इस सरकार को न नौजवानों के भविष्य की चिंता है, न ही बुजुर्ग लोगों की उम्र का, उनकी बीमारी का कोई लिहाज है।

कल प्रेस क्लब में रवीश कुमार , अरुंधति राय , प्रभात पटनायक, मनोज झा, शबनम हाशमी, सैइदा हमीद सहित हज़ारों लोग उमर ख़ालिद के साथ एकजुटता ज़ाहिर करने जमा हुए।

रवीश कुमार ने कहा कि जो 1000 दिन बीते हैं, उसे याद रखिए। याद रखिए कि ये महज खालिद के जेल के महज 1000 दिन नहीं है बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए शर्म के 1000 दिन हैं।”
उमर के पिता ने कहा कि उनका बेटा देश और जनतंत्र के लिये लड़ रहा है। उन्होंने माँग की कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाय।

हम भी उमर ख़ालिद के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हैं और उसके साथ सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई की माँग करते हैं।

वो लड़का !

वो लड़का जो झूठे इल्जामों की बारिश के बाद भी
चेहरे पर सच की चमक लिये मुस्कुराता है

वो लड़का जो डर से नहीं डरता
जुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा रहता

वो लड़का जो मुट्ठी तानकर नारे लगाता
धर्म-मज़हब के नाम पर मत बाँटों इन्सान को

वो लड़का जिसके लिये बड़े प्यार से कोई हाथ से लिखकर लगाता है पोस्टर !
‘तुमको हमारी “उमर “ लग जाए, ख़ुदा दिलजलों की नज़र से बचाए’

वो तेज-तर्रार जेएनयू का, प्रतिभाशाली लड़का
सरकार कहती है कि यह है उसकी सुरक्षा के लिये खटका !

वो लड़का जिसके हाथ में धर्मनिरपेक्षता का झंडा और संविधान की पोथी है
बहुसंख्यकों के समाज में अल्पसंख्यक, भागती भीड़ में अकेला है ।

वो लड़का जिसका नाम उमर ख़ालिद है !
सरकार के पास उसके ख़िलाफ़ लाखों प्रमाण है !

वो लड़का जो आज बंदी है !
सच कहूँ, वो एक लड़का नहीं !

वो लड़का इंसाफ की आवाज़ है !
-सरला माहेश्वरी


उर्मिलेश-

उमर ख़ालिद Umar Khalid से मेरी पहली मुलाक़ात फ़रवरी, 2016 की JNU वाली विवादास्पद घटना के बाद कहीं किसी कैफ़े में हुई थी. दोनों को जानने वाले किसी व्यक्ति ने परिचय कराया. पहली मुलाक़ात के बाद भी उससे दो-एक बार मिलना हुआ. कभी प्रेस क्लब में तो कभी किसी अन्य सार्वजनिक स्थल पर आयोजित संगोष्ठियों में. हर मुलाक़ात में वह मुझे बहुत सहज और मद्धिम आवाज़ में बोलने वाला बौद्धिक मिज़ाज का एक शालीन युवा लगा.

2016 के फ़रवरी महीने में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में Kanhaiya Kumar, Anirban और Umar Khalid सहित दो दर्जन से ज़्यादा छात्रों पर देश-विरोधी नारेबाज़ी के आरोप लगाये गये. गिरफ़्तारी हुई. पर कथित राजद्रोह के आरोप इतने आधारहीन थे कि छात्रों को कुछ समय बाद ज़मानत मिल गई. इन छात्रों पर ऐसे-ऐसे ‘अपराध के आरोप’ लगाये गये थे जो उन्होंने कभी किये ही नहीं. ‘टुकड़े टुकड़े होने वाले’ कथित नारे इन्होंने लगाये ही नहीं थे! यही कारण था कि कोर्ट में वह झूठा आरोप टिक नहीं सका और इन छात्रों को कुछ समय बाद ज़मानत मिल गई. लेकिन सत्ता और सरकारी मशीनरी में बैठे कुछ लोगों ने इन्हें बदनाम करने और इनके शैक्षिक जीवन को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साज़िश रचने वाले ऐसे लोग थे, जिनकी अपनी कोई उल्लेखनीय शैक्षिक पृष्ठभूमि नहीं रही.

इसके बाद 2020 में उमर ख़ालिद को फिर निशाना बनाया गया.
आख़िर वह मुस्लिम जो था. उसे 2020 के कुख्यात नार्थ वेस्ट दिल्ली के दंगे के अभियुक्त के रूप में फँसाया गया और यूएपीए लगाया गया. तबसे वह जेल में है. एक विचाराधीन क़ैदी के रूप में. उसके जेल प्रवास के 1000 दिन पूरे होने के मौक़े पर शुक्रवार को दिल्ली के प्रेस क्लब परिसर में बड़ी संगोष्ठी हुई. अनेक गणमान्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये और उमर ख़ालिद जैसे बेहद प्रतिभाशाली युवक की ज़िन्दगी तबाह करने की सियासी मंशा पर गंभीर सवाल उठाये.

उमर को जिन दिनों दिल्ली दंगों में अभियुक्त बनाकर गिरफ़्तार किया गया, किसी जगह मेरी मुलाक़ात उसको बहुत अच्छी तरह जानने वाले JNU के एक शिक्षक से हो गयी. उक्त प्रोफ़ेसर ने बताया कि उमर न सिर्फ़ प्रतिभाशाली रिसर्चर है, अपितु प्रगतिशील जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध एक शालीन युवा भी है. ढेर सारे आम मुस्लिम युवाओं से कुछ अलग भी नज़र आता है. मसलन, JNU में उसकी छवि वाम रूझान वाले एक युवा बुद्धिजीवी की रही है.

मुझे उसके कुछ दोस्तों ने बताया कि उमर के पीएचडी शोध का विषय रहा हैः Contesting claims and contingencies of the rule on Adivasis of Jharkhand”. इससे भी उसके सरोकार और विचार का संकेत मिलता है. अभी हाल में अपने जेल प्रवास के दौरान मशहूर इतिहासकार Ranajit Guha के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप लिखा उसका लेख ‘द टेलीग्राफ’ ने बहुत प्रमुखता से छापा.

कैसी विडम्बना है, ‘दुनिया का विशाल लोकतंत्र’ कहे जाने वाले इस देश के एक बेहद प्रतिभाशाली रिसर्चर और ज़हीन इंसान जिसे किसी प्रमुख विश्वविद्यालय या संस्थान में कम से कम असिस्टेंट प्रोफ़ेसर होना चाहिए था, उसे हमारी शासकीय एजेंसियों ने दंगे का आरोपी बनाकर जेल में रखा है! क्यों? क्योंकि वह भारतीय संविधान के प्रियेंबुल में दर्ज लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समता भ्रातृत्व और सेक्युलरिज्म जैसे महान् मूल्यों में यक़ीन रखने वाला एक प्रगतिशील युवा है, क्योंकि उसका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ है और क्योंकि उसने विचारों और मूल्यों पर किसी तरह का समझौता नहीं किया.

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