
गर्मियों में जिस धनौती नदी में अब धूल उड़ने लगी है बरसात में अब वही धनौती फूंफकारती है। अमवा मझार के हाई स्कूल के फील्ड में रोजाना लगने वाली शाखा से लौटते वक्त प्रमोद काका थोड़ी देर के लिए धनौती किनारे खड़े होते हैं। तिवारी टोले वाले चौर का पानी बारी पर धनौती से मिलता है। जाल में गरई, पोठिया और टेंगरा मछलियां खूब फंसती हैं। वैसे तो प्रमोद काका कभी मछली खरीदते नहीं हैं लेकिन रोजाना वहां जाने का फायदा ये होता है कि बाबूलाल दुसाध कभी-कभार उन्हें एक-आध पाव मछली दे दता है। प्रमोद काका के लिए वही दिन सबसे अच्छा होता है जिस दिन बाबूलाल दुसाध उनके हाथ में मछली थमाते हुए कहता है कि ‘लीं तिवारी जी मछरी खाईं’।
प्रमोद काका की ये खुशी संकट में है। वो शाखा समाप्ती के बाद घर के रास्ते में हैं। बगल में धनौती उफना रही है। सामने कुछ दूरी पर बारी है। वही बारी जहां से न जाने कितनों सालों से वो मुफ्त की मछली बड़े चाव से खा रहे हैं। बड़ा असमंजस है। शाखा में अजय जायसवाल ने बताया कि पटना वाले एक शुक्ला जी असली हिंदु निकले। एकदम हिंदुत्व के शिवाजी। शेर, सवा शेर। दुकान वाले ने मुसलमान के हाथों खाना भेजा तो लेने से इनकार कर दिया। सनातन धर्म की रक्षा के लिए भूखे सो गए। इतना ही नहीं सोए हिंदुओं को जगाने के लिए सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार भी खूब किया।
प्रमोद काका असमंजस में हैं। मुसलमान के हाथों भेजा गया खाना खा लेने भर से हिंदुत्व खतरे में आ जाता है ! काका का माइंड सुन्न हुआ जा रहा है। वो तो कई बार रोज देवान के घर की बनी रोटी खा चुके हैं। छोटे थे तो रोज देवान उन्हें गोदी में खेलाया करते थे। कई बार अपने हाथों अपने घर की बनी रोटी भी खिलाई है रोज देवान ने। रोज देवान तो मुसलमान थे। प्रमोद काका का धर्म संकट बढ़ता जा रहा है। सिर्फ मुसलमान के हाथों खाना भेजने भर से हिंदु धर्म जब खतरे में आ जाता है तो फिर ये तो कई बार मुसलमान के घर की रोटी मुसलमान के ही हाथों खा चुके हैं। मतलब इनके हिस्से का हिंदुत्व तो बचा ही नहीं है। वो तो कब का मिट गया है। मतलब अब ये हिंदु नहीं रहे।
काका का कनफ्यूजन बढ़ता जा रहा है। पैर लड़खड़ाने लगे। धम्म से बैठ गए महुआनी में। काका कोई बुद्ध तो हैं नहीं कि तपस्या करने लगते। बरसात में महुआ के पेड़ के नीचे बैठे तो चींटियों ने जहां-तहां शरीर पर रेंगना शुरू कर दिया। बदन झाड़कर उठे तो सामने वही बारी जहां से वो वर्षों से हर बरसात में मछली लाते, पकाते और खाते रहे हैं। हर साल बारी का ठेका बाबूलाल दुसाध और हातिम अंसारी ही लेते रहते हैं। साझे का ठेका सालों से चला आ रहा है। जाल में फंसी मछलियां हातिम अंसारी निकाल-निकाल कर टोकरी में रखते जाते हैं और बाबूलाल दुसाध सब बेचने के बाद जो थोड़ा बचता है उसी में से थोड़ा प्रमोद काका को दे देते हैं।
हाय! मुसलमान के हाथों पकड़ी गई मछली खाते रहे हैं प्रमोद काका। मुसलमान के घर की रोटी भी खाई है प्रमोद काका ने। एक कदम भी नहीं चल पाए कि धम्म से महुआनी में ही गिर पड़े प्रमोद काका। होश आया तो देखा कि बारी पर पुल के किनारे लेटे पड़े हैं। कई लोग उनको घेरे खड़े हैं। बाबूलाल दुसाध सिर की मालिश कर रहे हैं और हातिम अंसारी तलवों की मालिश कर रहे हैं। कोई सीने की मालिश कर रहा है कोई पानी के छींटे मार रहा है। हड़बड़ा कर उठ बैठे प्रमोद काका। थोड़ी देर में सबकुछ ठीक हो गया। बाबूलाल दुसाध ने एक किलो से भी ज्यादा मछली एक उनके गमछे में बांध दी, हातिम अंसारी ने अपनी साइकिल से प्रमोद काका को उनके घर तक पहुंचा दिया। सारा कनफ्यूजन दूर हो गया। न तो हिंदुत्व खतरे में है और ना ही हिंदु खरते में है। खतरे में है तो बस हिंदु-हिंदु जपने वाले नेताओं की कुर्सी।
लेखक असित नाथ तिवारी टीवी पत्रकार और एंकर हैं. संपर्क : asitnath@hotmail.com
Comments on “उनके हिस्से का हिंदुत्व ख़तरे में है!”
Bahut shandar
very nice
Good thinking sir