स्वप्निल श्रीवास्तव-
चुनाव में ब्लैकमनी, 28 साल पहले आई रिपोर्ट का चुनावी कनेक्शन, यूपी विधानसभा चुनाव में खर्च होंगे 2लाख करोड़…
आज से 28 साल पहले वोहरा कमेटी की एक रिपोर्ट आई थी, जो चुनाव में खर्च होने वाली ब्लैक मनी पर सवाल खड़ा करती थी. वोहरा कमेटी ने 1993 में अपनी रिपोर्ट में ये बताया था कि इस देश में एक नेक्सस काम करता है जो ब्लैक मनी को चुनाव में खर्च कराता है. इस नेक्सस में नेता, ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपति और अपराधियों के शामिल होने की बात की गयी थी. अब पश्चिम बंगाल के चुनाव में हुए औसतन खर्च के साथ-साथ आगामी 5 राज्यों के चुनाव में होने वाले संभावित खर्चों को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है.
क्या कहती थी वोहरा कमेटी की रिपोर्ट!
1993 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने तत्कालीन गृह सचिव एन एन वोहरा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था जिसकी जिम्मेदारी थी कि वो राजनेताओं, अपराधियों और उद्योगपतियों के आर्थिक सांठ-गाँठ की जाँच करे.
इस कमेटी ने 5 अक्टूबर 1993 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और जिसने सरकार के कान खड़े कर दिए, नतीजतन इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया. हालांकि 28 साल बाद अब ये रिपोर्ट सार्वजनिक हुयी है जो ये बताती है कि आज से 28 साल पहले भी इस देश में नेक्सस काम करता था जो ब्लैक मनी को वाइट करने का काम करता था.
इस नेक्सस में देश के राजनेताओं से लेकर उद्योगपतियों और अपराधियों तक के सम्मिलित होने की बात कही गयी थी. ये रिपोर्ट ये भी बतलाती थी, कि इस नेक्सस के जरिये चुनाव में भी फंडिंग की जाती है.
28 साल बाद तो चुनाव और महंगे हो गये हैं
बीते 28 सालों में चुनाव और भी महंगे हो चुके हैं, बीते दिनों हुए पश्चिम बंगाल के चुनाव को लेकर ऑर्बिट मीडिया ने एक आंकड़ा जारी किया था. ये आँकड़ा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हुए चुनावी खर्चों की बात करता था. ऑर्बिट मीडिया के अनुसार पश्चिम बंगाल में सौ से दो सौ करोड़ रूपये औसतन प्रति सीट पर प्रत्याशियों द्वारा खर्च किये गये, यानी औसतन पुरे राज्य में 30 से 60 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए. क्या इस आंकड़े को देखने और समझने के बाद और वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को पढने के बाद हम इस बात का दावा कर सकते हैं कि इन चुनावी खर्चों में ब्लैक मनी का इस्तेमाल नहीं हुआ होगा.
यूपी विधानसभा चुनाव में खर्च होंगे ढाई लाख करोड़!
ऑर्बिट मीडिया ने आने वाले विधानसभा चुनाव के संभावित खर्चों पर भी बात करी है, ख़ास तौर पर देश के सबसे बड़े राजनितिक सूबे उत्तर प्रदेश की. ऑर्बिट की माने तो 403 विधानसभा क्षेत्रों वाले इस राज्य में प्रति सीट 500 करोड़ रूपये खर्च होने की उम्मीद है. यानी औसतन दो लाख करोड़ रूपये आगामी चुनाव में चुनाव प्रचार की भेंट चढ़ जायेंगे. अब यहाँ तो कहने की आवश्यकता भी नहीं लगती कि आखिर ये दो लाख करोड़ रूपये कितने ब्लैक होंगे और कितने वाइट.
एक मजेदार तथ्य ये भी है कि यूपी सरकार के पिछले 5 सालों में आये हुए कुल निवेश भी 2 लाख करोड़ के लगभग ही हैं.
चलते चलते क्या कहें बस इतना समझिये कि इस देश में 28 साल पहले जिस नेक्सस की बात वोहरा कमेटी ने की थी और जिसके बाद उस रिपोर्ट को सरकार ने दबा दिया था, आज भी वो रिपोर्ट पूरी तरह प्रासंगिक है.
ऑर्बिट मीडिया ने इस रिपोर्ट की प्रासंगिकता पर मुहर लगाने का काम किया है. कुल मिलकर ये कहा जा सकता है कि एक तरफ जहाँ देश आर्थिक व्यवस्था लगातार चरमराती हुयी नजर आती है वहीँ दुसरी तरफ ये चुनावी खर्चे देश की आर्थिक प्रणाली पर सवाल खड़ा करते हैं.
ये स्थिति कब सुधरेगी ये तो राम ही जाने पर हम इतना कह सकते हैं, कि जिन चुनाव को हम लोकतान्त्रिक पर्व की संज्ञा देते हैं, उन्हीं चुनाव में एक नेक्सस लोकतंत्र का गला घोंट रहा होता है.