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सुख-दुख

उर्दू पत्रकारिता के दो सौ वर्ष पूरे हुए!

उर्मिलेश-

उर्दू पत्रकारिता के दो सौ वर्ष पूरे हुए..27 मार्च, 1822 को ही उर्दू का पहला अख़बार जाम-ए-जहां नुमा कलकत्ता(अब कोलकाता) से प्रकाशित हुआ था. इसके संपादक थे हरिहर दत्ता.

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हिन्दी का पहला अख़बार उदन्त मार्तण्ड उसके चार साल बाद, सन् 1826 में छपना शुरू हुआ. इसके संपादक थे जुगल किशोर शुक्ला. यह भी बंगाल के कलकत्ता से ही छपा था.

उर्दू पत्रकारिता के दो सौवें वर्ष के मौके पर दिल्ली और हैदराबाद सहित देश के कई स्थानों पर आयोजन हो रहे हैं. हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशंस विभाग की तरफ से इस वर्ष कई कार्यक्रमो की सूचना मिली है. भारतीय समाज और पत्रकारिता के लिए यह महत्वपूर्ण मौका है. इस मौके पर उर्दू पत्रकारों-लेखकों और पाठकों को खासतौर पर हमारी बधाई और शुभकामनाएं.

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भारत में उर्दू सहाफत की बहुत महान् और गौरवशाली विरासत है. मुल्क में पत्रकारिता के पहले शहीद एक उर्दू पत्रकार ही थे. वह थे: मौलवी मो. बाकर.

मौलवी मोहम्मद बाकर देहली उर्दू अखबार के संपादक और दिल्ली के प्रतिष्ठित नागरिक थे. 1857 में विदेशी हुकूमत के विरुद्ध हुई बड़ी बगावत, जिसे स्वतंत्रता का पहला संग्राम कहा गया है; में बाकर साहब की भूमिका के चलते अंग्रेज शासकों ने उन्हें सजा-ए-मौत दी. उन्हें गोलियों से उड़ा दिया गया. दुखद है कि इस ऐतिहासिक तथ्य को हमारे देश की पत्रकारिता में कम याद किया जाता है.

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हमे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महान् विरासत के बावजूद उर्दू सहाफत आज मुश्किलों के दौर से गुज़र रही है. कई बड़े और प्रतिष्ठित अखबारों और पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया और कइयों के सामने भारी चुनौतियां हैं. उर्दू पाठकों की गिरती संख्या भी चिंता का विषय है. मुझे लगता है, उर्दू सहाफत के ‘दो सौ वर्ष’ के मौके पर होने वाले आयोजनों में इन मुश्किलों और चुनौतियों पर भी बात होनी चाहिए.

एक बार फिर आप सबको मुबारकबाद!

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