उत्तरप्रदेश की बागडोर जब से सपा ने संभाली है, तब से कानून व्यवस्था को लेकर उसकी किरकिरी होती रही है। लूट, हत्या, डकैती, चोरी, बलात्कार जैसे संगीन अपराध रोक पाने में पुलिस फिसड्डी साबित हो रही है। बेलगाम पुलिस सदैव कटघरे में नजर आती है। बढ़ते अपराधो और कार्यशैली को लेकर पुलिस महकमा एक बार फिर चर्चा में है।
सूबे की राजधानी के व्यस्ततम इलाके में शुक्रवार को दिनदहाड़े जिस तरह से तीन लोगो की हत्या कर पचास लाख रुपए की लूट हुई, उससे साफ है कि अपराधियों के हौसले बुलंद है। इससे लगभग दो माह पूर्व भी राजधानी के अति सुरक्षित क्षेत्र में राजभवन के ठीक सामने से अठारह लाख रुपए लूट लिए गए थे। पुलिस ने इस घटना का जिस तरीके से पर्दाफाश किया, उस पर भी सवाल उठे थे। शनिवार को वाराणसी के अति सुरक्षित इलाका कैन्टोमेंट में हमला कर दिनदहाड़े आठ लाख की लूट हुई। इतना ही नहीं, इसी माह मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद की अदालतों में कुछ लोगो को गोलियों से भून दिया गया। गाजीपुर में अदालत से एक केस में गवाही देकर घर लौट रहे एक व्यक्ति को गोली से उड़ा दिया गया। मथुरा की जेल में गैंगवार की घटना भी कम चैकाने वाली नहीं रही। उस घटना में एक बर्खास्त सिपाही और बंदी रक्षक को जेल भेजा गया।
आखिर प्रश्न यह उठता है कि जब एक सीमित दायरे में पुलिस अपराध रोकने में असफल है तो फिर बाहर अपराध कैसे रुकेगा? यह जगजाहिर है कि जेल में गैंगवार की घटना की योजना बाहर बनी मगर पुलिस को भनक तक नहीं लगा। अति सुरक्षित क्षेत्र में लूट, भरी अदालत में हत्याएं यह बताती हैं कि अब जनता को अपनी सुरक्षा के खुद बंदोबस्त कर लेने चाहिए। पुलिस के आलाधिकारी विभाग की छवि सुधारने के प्रति गंभीर होते तो इन घटनाओ से सबक लेकर अपनी कार्यशैली में बदलाव लाते लेकिन लगता है कि पुलिस महकमे ने आत्मालोचन करना बंद कर दिया है। यदि सरकार अपनी किरकिरी होने से बचना चाहती है तो पुलिस तंत्र में अब अामूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि भ्रष्ट और अयोग्य पुलिस अधिकारियो के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करे और स्वच्छ व ईमानदार अफसरों को काम करने की पूरी छूट दे। सरकार को खास लोगो को उनकी योग्यता परखे बगैर महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती देने की कवायद पर भी पूरी तरह से रोक लगानी होगी।