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वर्धा विश्वविद्यालय में ‘आध्यात्मिक मीडिया’ पर तीन दिवसीय संगोष्ठी 28, 29, 30 जुलाई को

वर्धा (महाराष्ट्र) : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के संचार एव मीडिया अध्ययन केंद्र की ओर से (आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा) 28, 29, 30 जुलाई, 2015 को तीन दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। गोष्ठी का विषय बड़ा अनोखा सा है – ‘आध्यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव’। गोष्ठी के सूचना-पटल पर लिखा गया है – ‘पत्रकारों को मीडिया एथिक्स पर ध्यान देना जरूरी है। आध्यात्मिकता का आशय मूल्य आधारित पत्रकारिता से है।’

<p>वर्धा (महाराष्ट्र) : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के संचार एव मीडिया अध्ययन केंद्र की ओर से (आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा) 28, 29, 30 जुलाई, 2015 को तीन दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। गोष्ठी का विषय बड़ा अनोखा सा है - 'आध्यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव'। गोष्ठी के सूचना-पटल पर लिखा गया है - 'पत्रकारों को मीडिया एथिक्स पर ध्यान देना जरूरी है। आध्यात्मिकता का आशय मूल्य आधारित पत्रकारिता से है।'</p>

वर्धा (महाराष्ट्र) : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के संचार एव मीडिया अध्ययन केंद्र की ओर से (आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा) 28, 29, 30 जुलाई, 2015 को तीन दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। गोष्ठी का विषय बड़ा अनोखा सा है – ‘आध्यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव’। गोष्ठी के सूचना-पटल पर लिखा गया है – ‘पत्रकारों को मीडिया एथिक्स पर ध्यान देना जरूरी है। आध्यात्मिकता का आशय मूल्य आधारित पत्रकारिता से है।’

संगोष्ठी की अवधारणा कुछ इस प्रकार है – ‘ मीडिया को प्रारंभ से ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता रहा है लेकिन वर्तमान समय में इसकी भूमिका केंद्रीय स्तंभ और आधार स्तंभ के रूप में भी हो गई है। ऐसा सिर्फ भारत के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के जो वैश्विक ग्राम की अवधारणा में नजर आता है। ऐसे में मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गयी है। यह भी कहा जाता है कि वैश्विक ग्राम की अवधारणा को स्थापित करने में सबसे व्यावहारिक भूमिका मीडिया की ही रही है। मीडिया के बदलते स्वरूप और बढ़ते दायरे के कारण इस दौर में जनमानस को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले माध्यम के रूप में भी मीडिया को देखा और आंका जाता है। सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्तर पर जो बदलाव हालिया वर्षों में हुए हैं, उसमें मीडिया की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है। हालांकि मीडिया पर यह आरोप भी लगता रहा है कि यह लोकतंत्र की बजाए मीडिया तंत्र स्थापित करने में लगी है। 

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‘मीडिया ने बदलाव के नाम पर जितने बनाव किये हैं, उससे ज्यादा बिगड़ाव भी किए हैं। आर्थिक व संस्थागत संसाधन के तौर पर बाजार पर निर्भर मीडिया ने बाजारवाद के जरिये व्यक्तिवाद को मानवीय समुदाय के यांत्रिकीकरण की प्रक्रिया को भी बढ़ावा दिया है। नतीजा यह हुआ है कि जितनी तेज तरक्की हुई है, सामाजिक स्तर पर जितने बदलाव हुए हैं, उतनी ही तेजी से सामाजिक, पारिवारिक व व्यक्तिगत संस्थाओं व मूल्यों में गिरावट भी हुई है। ऐसे में मीडिया के साथ आध्यात्मिकता के सामंजस्य की भूमिका बढ़ती हुई दिखायी पड़ती है क्योंकि आध्यात्मिकता ही आज मूल्यों को बनाये-बचाये रखने व तनावरहित दुनिया बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है। यहां जब आध्यात्मिकता की बात हो रही है तो यह धार्मिकता जैसी कोई बात नहीं है बल्कि इसका संबंध मूल्य आधारित पत्रकारिता से है। इसका मतलब ज्ञान-विज्ञान से लेकर चेतना के विकास में सरोकारों व मूल्यों से है। ऐसे में उक्त प्रस्तावित विषय पर चर्चा नये आयामों को उभारेगी और नये तर्कों के जरिये तथ्यों को भी स्थापित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ायेगी।

राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी के उप-विषय हैं- मीडिया शक्ति का सार्थक हस्तक्षेप, जनमाध्यमों के सरोकार, मीडिया, संस्कृति और बाजार, आध्यात्मिकता और मीडिया, अभिव्यक्ति का विस्तार: सोशल मीडिया और वैकल्पिक मीडिया की भूमिका, मीडिया का राजनैतिक अर्थशास्त्र। राष्ट्रीय संगोष्ठी के अन्य आयाम होंगे – मीडिया के नामचीन चेहरों के साथ परिचर्चा, मीडिया की सांस्कृतिक संध्या, वर्धा दर्शन/ बापू कुटी दर्शन (सेवाग्राम)। संगोष्ठी के लिए प्रतिभागियों से शोध-पत्र भी आमंत्रित किए गए हैं।

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