प्रभात डबराल-
देहरादून- नई दिल्ली शताब्दी मेरी पसंदीदा ट्रेन रही है. अब इसी रूट पर एक वंदे भारत नाम की ट्रेन चलने लगी है. सान्नू की… आप कुछ भी नाम रख लो. हमे क्या फ़र्क़ पड़ता है. लेकिन थोड़ा दिमाग़ तो लगाओ… मैं हमेशा सोचता था कि ये देहरादून शताब्दी सहारनपुर होते हुए क्यों जाती है…
सहारनपुर टच करने के लिए शताब्दी को रास्ता बदलना पड़ता है. वहाँ इंजन की दिशा बदलनी पड़ती है. इसके लिए पच्चीस मिनट तक ये ट्रेन सहारनपुर में खड़ी रहती है.
देश में किसी भी शताब्दी ट्रेन का ये सबसे बड़ा स्टॉप है… मैंने मालूम किया तो पता चला कि १९८९ में जब ये ट्रेन शुरू हुई उस समय रशीद मसूद केंद्र में मंत्री थे. सहारनपुर के थे. उनके दबाव पर रेलवे ने ये चूतियापा किया.
दिल्ली से मेरठ मुज़फ़्फ़रनगर होते हुए बिना सहारनपुर गये देहरादून जाया जा सकता है. सहारनपुर के लिए उलटा जाना पड़ता है. चालीस मिनट एक्स्ट्रा लगते हैं.
चलो उस समय शताब्दी में जो हुआ सो हुआ … लेकिन अब जब नये नाम की ट्रेन चला रहे थे तब तो समझ से काम लेते. हम भी क्या करें.. जब अपने यहाँ ही रीढ़ विहीन चिरकुट क़ाबिज़ हैं तो कोई भी क्या कहे…
Comments on “ये देहरादून शताब्दी और वंदे भारत ट्रेनें सहारनपुर होते हुए क्यों जाती है?”
कल इसी ट्रेन के उद्घाटन के लिए बाकी सभी ट्रेनों को घंटों आगे पीछे रोक दिया गया। हजारों मुसाफिर परेशान हुए। कईयों की आगे की गाड़ी छूट गई।
क्यों क्या सहारनपुर में आदमी नहीं रहते!?? क्या सहारनपुर के लोग टिकट ले के नहीं चलते..!?? चिढ़ सहारनपुर से है या रशीद मसूद से या 10 पंद्रह मिनट के स्टॉपेज से!??? अब तो रशीद मसूद भी दुनिया में नहीं हैं क्यों न किसी सांसद के दबाव में सहारनपुर को बीच से हटवा दिया जाए… आप इतने वरिष्ठ पत्रकार हैं आपकी अपनी बहुत चलती होगी.. रेलवे को मुनाफा बढ़ाने का कोई बेहतर मशवरा दीजिए और सहारनपुर को देहरादून जाने वाली गाड़ियों के मानचित्र से हटवा दीजिए…