वाराणसी के ईश्वरगंज निवासी विजय बहादुर सिंह की पुत्री प्रिया सिंह उर्फ प्रियंका, की शादी पंकज सिंह के साथ हुई थी. विवाह के पश्चात् जून, 2012 में वह गर्भवती हुई और 28 जून 2012 को प्रेगनेंसी टैस्ट किया जिससे इस बात की पुष्टि हुई. तत्पश्चात वह अपने पिता के पास रहने चली आयी. यहां प्रिया ने गांधी नगर वाराणसी की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सरोज पाण्डेय (एमबीबीएस, डीजीओ) को दिखाया. उनके कहने के अनुसार कई परीक्षण कराये और लगातार उनके उपचार में रही.
इसके बाद पीड़िता 30 जनवरी 2013 को डॉ सरोज के नर्सिंग होम गईं, जिन्होंने उसे उसी दिन शाम को अपने यहॉं भर्ती कर लिया और लोवर (यूटेरिन) सेगमेण्ट सिजेरियन सेक्सन के माध्यम से आपरेशन किया. इस दौरान प्रिया को प्राइवेट रूम में रखा. जहां पर वह अचेत अवस्था में थीं. बार-बार अनुनय, विनय करने के बाद भी उसकी उचित देखभाल नहीं की गयी. उसकी हालत गम्भीर होने पर पीड़िता के पिता डॉ सरोज पाण्डेय के पास गए, जो उसी परिसर में रहती थीं. उन्होंने स्वयं आ कर अपने स्टाफ को हिदायत दी, लेकिन उचित उपचार न होने के कारण परिवादी की बेटी की मृत्यु दिनांक 31 जनवरी 2023 हो गयी और उसी दिन उसका पोस्टमार्टम हुआ, जिसमें यह पायागया कि पेट में अत्यधिक रक्त श्राव हुआ और खून के थक्के बनने के कारण मुत्यु हुई. उसकी बेटी की आयु मात्र 25 वर्ष थी और डॉ सरोज पाण्डेय एवं उनके स्टाफ की लापरवाही के कारण परिवादी की बेटी की मृत्यु हुई.
प्रिया सिंह को पहली बार दिनांक 28 जून 2012 को दिखाया गया था जिसमें उसके सारे परीक्षण सामान्य थे. इस सिजेरियन सेक्सन में दो तरह की प्रक्रिया होती है. एक यूटेरस पर चीरा लागया जाता है और दूसरा उस लोवर यूटेरिन सेगमेण्ट सेक्सन में चीरा लगाकर प्रसव कराया जाता है. इस मामले में यह स्पष्ट हुआ कि इस प्रक्रिया के दौरान् डॉ सरोज पाण्डेय की लापरवाही से मृतका के पेट में अत्यधिक रक्त श्राव हुआ और खून के थक्के जम गये, जिससे उसकी मृत्यु हुई.
इस मामले में मृतका के पिता विजय बहादुर द्वारा परिवाद संख्या-202/2013 के तहत, राज्य उपभोक्ता आयोग, उप्र, लखनऊ में प्रस्तुत किया गया. जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के माननीय श्री राजेन्द्र सिंह एवं श्री विकास सक्सेना द्वारा की गयी.
प्रिसाइडिंग जज ने विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों का सन्दर्भ लेते हुए और यह देखते हुए कि मृतका को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी और इस समय वह लगभग 10 वर्ष का होगा. उसके रख-रखाव और जीवन की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखते हुए विपक्षीगण के विरूद्ध अपने 141 पृष्ठ के निर्णय में निम्नलिखित आदेश पारित किया-