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सियासत

विपक्ष के पास बीजेपी के हिंदुत्व का क्या है जवाब?

कर्नाटक में बीजेपी का हिंदुत्व फेल हो गया। क्या राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में या आगे 2024 के आम चुनाव में परवान चढ़ेगा? बीजेपी के हिंदुत्व को रोकने की क्या है विपक्ष के पास योजना? आज के राष्ट्रीय सहारा के हस्तक्षेप में वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र राय का लेख।

कर्नाटक चुनाव के बाद से ही सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही पूरी तौर पर 2024 के आम चुनाव के लिए मैदान में उतर चुके हैं। कर्नाटक में चुनाव नतीजों के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान का रुख किया और एक बड़ी रैली की। जबकि प्रियंका गांधी कर्नाटक के पड़ोसी राज्य तेलंगाना में पहुंची। दोनों की चिंताएं एक ही हैं। लोकसभा के आम चुनाव में जीत हासिल करना। लेकिन उसका रास्ता इस साल होने वाले कुछ राज्यों के विधान सभा चुनावों से होकर गुजरने वाला है।

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कांग्रेस चाहती है कि कर्नाटक चुनाव में हुई बंपर जीत से बने माहौल को बाकी राज्यों में जीत के साथ बनाए रखा जाए तो बीजेपी कर्नाटक की हार से हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ विधान सभाओं के चुनाव जीतना चाहती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में साल के अंत तक चुनाव होने हैं। इनमें बीजेपी की जीत की अगर सबसे ज्यादा संभावना कहीं है तो वो राजस्थान ही है। इसीलिए पीएम ने राजस्थान को ही रैली के लिए चुना। बुधवार को पीएम ने फिर राजस्थान के अजमेर में एक रैली को संबोधित किया। बहरहाल दोनों दल अपने-अपने ढंग से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं।

बीजेपी का मुद्दा हिंदुत्व और विकास

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे नौ साल की गतिविधियों को देखें तो उससे साफ हो जाएगा कि बीजेपी ने अपने शासन काल में हिंदुत्व के एजेंडे को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। खासकर 2019 के आम चुनावों में जीत के बाद। आप देखेंगे कि मोदी जी ने तमाम विरोधों और शुभ दिन न होने के बावजूद अयोध्या में भूमि पूजन कराया और राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया। बताया जा रहा है कि नव निर्मित मंदिर में आम चुनावों से पहले राम लला के दर्शन शुरू हो जाएंगे। अयोध्या के साथ ही वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का कायाकल्प किया गया। इस हद तक कि अब वह देखते ही बनता है।

इसी दौरान उज्जैन में महाकाल के मंदिर को भी भव्य रूप दिया गया। केदारनाथ के मंदिर का विकास और सौंदर्यीकरण पहले ही किया जा चुका है। हिंदुओं के एक और प्रमुख तीर्थ बद्रीनाथ के विकास के लिए भी कार्य शुरू कर दिया गया है। मोदी सरकार ने हिंदू समुदाय की एक बहुत बड़ी इच्छा को धारा 370 हटाकर भी पूरा कर दिया है। इस तरह हम देखें तो बीजेपी और सरकार ने बहुत साफ-साफ संकेत दे दिया है कि वह अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर 2024 का चुनाव लड़ने जा रही है। वह हिंदुओं के बताएगी कि हमने सारे प्रमुख हिंदू आस्था वाले मंदिरों का कायाकल्प किया है, उन्हें बेहतर बनाया है। इसमें विकास का एक और एजेंडा भी जोड़ दिया गया है।

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इस एजेंडे के तहत सड़कों के विकास बताने पर जोर दिया जाएगा। इसके तहत पूर्वांचल एक्सप्रेस, दिल्ली से देहरादून की सड़क, दिल्ली से मुंबई की सड़कों की महत्वाकांक्षी योजना विशेष तौर पर लोगों को बताई जाएगी। विकास में ही नए संसद भवन को भी जोड़ दिया जाएगा। कुछ लोग कह रहे हैं कि आम चुनावों से पहले समान नागरिक संहिता भी लागू की जा सकती है। मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर पार्टी और सरकार ने अपने इन कार्यों को जनता तक पहुंचाने की विशद योजना तैयार की है। उस योजना के तहत ही प्रधानमंत्री अजमेर में रैली कर रहे हैं।

जनता तक सरकार के इन कार्यों को पहुंचाने के लिए पूरे एक महीने का अभियान शुरू किया गया है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी सहित अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी आदि पार्टी के वरिष्ठ नेता 51 जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इस दौरान पीएम मोदी एक डिजिटल रैली को भी संबोधित करेंगे। पार्टी के सदस्य देश भर में पांच लाख प्रतिष्ठित परिवारों से संपर्क करेंगे। हर लोक सभा क्षेत्र में एक हजार प्रतिष्ठित परिवारों से संपर्क किया जाएगा। पार्टी ने 543 लोक सभा सीटों को 144 क्षेत्रों में बांटा है। एक क्षेत्र में तीन से चार निर्वाचन क्षेत्रों को रखा गया है।

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विपक्ष कैसे देगा जवाब

विपक्ष बीजेपी की इन तैयारियों और मंशा से वाकिफ है। वह यह भी जानता है कि संसाधनों के मामले में वह बीजेपी का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए वह मुद्दों के आधार पर ही बीजेपी को घेर सकता है। वह लगातार महंगाई, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य, सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा आदि का मुद्दा उठाता है। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में देखा गया कि इसके वो मुद्दे काम नहीं आए। इन्हीं मुद्दों पर विपक्ष ने यूपी, गुजरात, हिमाचल और पूर्वोत्तर के राज्यों में चुनाव लड़े। लेकिन सफलता सिर्फ हिमाचल में मिली। उसमें भी इन मुद्दों से ज्यादा योगदान पुरानी पेंशन बहाल करने के वादे को माना गया। गुजरात और यूपी में तो बीजेपी ने हिंदुत्व के मुद्दे पर ऐसा चुनाव लड़ा कि विपक्ष चारो खाने चित्त हो गया। यह विपक्ष के लिए चिंता का विषय था।

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विपक्ष लगातार सोचता रहा कि बीजेपी के हिंदुत्व के कार्ड का मुकाबला कैसे किया जाए। तभी विपक्षी एकता की कोशिशों में जुटे नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को समझाया कि हिंदुत्व का मुकाबला जातीय जनगणना से किया जा सकता है। कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने हिंदुत्व के एजेंडे को और आगे बढ़ाया। टीपू सुलतान, हिजाब से लेकर हनुमान चालीसा पढ़ने और बजरंग बली तक को सामने कर दिया। लेकिन कांग्रेस ने जातीय जनगणना के आधार को शामिल करके बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को सफल नहीं होने दिया। पहले भी बीजेपी ने जब लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में रथ यात्रा निकाली थी तो वीपी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को आगे कर दिया था।

नतीजा ये हुआ कि लालू यादव ने बिहार में आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया और बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को सफल नहीं होने दिया। और तो और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जब बीजेपी की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और यूपी में चुनाव हुए तो वहां भी उसकी सरकार नहीं बन पाई। 2015 के चुनावों में भी बिहार में राजद, जेडी यू और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को फेल किया था। कर्नाटक की जीत के बाद तो विपक्ष को लगता है कि पिछड़ी जातियों की एकजुटता ही हिंदुत्व की काट है।

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जिस तरह से बीजेपी 2024 में हिंदुत्व और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाती दिख रही है उसी तरह से विपक्ष भी इसकी काट के लिए पिछड़ी जातियों की एकजुटता और महंगाई, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाते हुए दिख रहा है। देखना है पिछड़ी जातियों के गठजोड़ के आधार का ब्रह्मास्त्र बीजेपी के हिंदुत्व के बाण को काट पाता है या बाण विपक्ष के खेमे को तहस-नहस कर देता है।

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1 Comment

1 Comment

  1. Akhilesh Mishra

    June 4, 2023 at 12:00 am

    सर मोदीजी की जीत का सबसे बड़ा कारण विपक्ष का किसी भी राज्य में एक न हो पाना हैं, तभी नीतीश कुमार, केजरीवाल और अन्य नेता कभी शरद पवार तो कभी किसी और नेता से मजबूत विपक्ष की पैरवी कर रहे है। इसमें शायद ही कोई पार्टी पीछे हो। सबको सत्ता चाहिए लेकिन सबको सीट में भी मनमानी करनी है। दिल्ली ही देख लीजिए, कांग्रेस और केजरीवाल साथ तो आ सकते हैं लेकिन मुद्दा हैं ट्रस्ट इश्यू और दोनो को 7 में से ज्यादा सीट चाहिए। पहले ये एक होने की बात तो माने फिर सत्ता की सोचे।
    प्रणाम सर।

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